''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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जब्बार ढाकवाला को याद करते हुए एक ग़ज़ल ..

>> Saturday, May 8, 2010

मेरे बेहद आत्मीय मित्र-लेखक जब्बार ढाकवाला और उनकी पत्नी ''तरन्नुम'' का चंबा के पास एक हादसे में कल ७ मई को निधन हो गया. उस भयानक हादसे की कल्पना कीजिये, कि उनकी कार पांच सौ मीटर गहरी खाई में जा गिरी. पल भर में जीवन का खेल ख़त्म....ढाकवाला जी के पर्स से उनका पता-ठिकाना मिला. फोन नंबर मिले तो वहां की पुलिस ने भोपाल उनके कुछ मित्रों को सूचित किया.फिर मध्यप्रदेश के राजकीय विमान से उनके शव आज अपरान्ह ३-४ रायपुर लाए गए. रात ९ बजे मौदहापारा के कब्रिस्तान में दोनों सुपुर्देखाक हो गए. केवल ४-५ लेखक मैयत में शरीक हुए. बाकी उनके रिश्तेदार आदि ही थे. मैं भी वही से लौटा तो जब्बार भाई का चेहरा बार-बार सामने आता रहा तो लगा कुछ शेर आकार ले रहे है. बस, बैठ गया, तो कलम चलने लगी. कल मैंने अपने एक और ब्लॉग ''सद्भावना दर्पण'' में जब्बार जी पर एक लेख लिखा था. समय मिले तो एक बार देख ले.खैर. अब दो लोग इतिहास हो गए. आज जब्बारजी पर लिखे गए कुछ शेर दे रहा हूँ. 

कहा अलविदा और छोड़ संसार अचानक चला गया..
सबके दिल में रहता था वो यार..अचानक चला गया
'ढांक' गाँववाला अपना जब्बार..अचानक चला गया

जब तक ज़िंदा था उसने बस प्यार लुटाया दुनिया को
कैसे अब पाएंगे हम जो प्यार..अचानक चला गया

'कोई गीत उदास नहीं रहते थे उसके पास' कभी
साथ ''तरन्नुम'' को ले कर फनकार..अचानक चला गया

कितना कुछ अब भी रचना था लेकिन अल्ला की मर्जी
कहा अलविदा और छोड़ संसार..अचानक चला गया


पहली बार लगा है दिल को यार किसे हम कहते हैं 
तुम क्या रूठे लगता है संसार..अचानक चला गया

क्या छोटे क्या बड़े सभी को गले लगाया था तुमने 
सचमुच था वो बहुत बड़ा दिलदार..अचानक चला गया

धर्म और मज़हब से उठ कर इंसानों की बात लिखी 
मस्तकलंदर, वो फक्कड़ किरदार..अचानक चला गया
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जब्बार ढाकवाला  की नयी कविताओं का एक संग्रह कुछ साल पहले आया था, ''कोई उदास गीत नहीं है उनके पास''. मैंने एक शेर में उसी शीर्षक का जिक्र है, ''कोई गीत उदास नहीं रहते थे उसके पास कभी''

5 टिप्पणियाँ:

शिवम् मिश्रा May 8, 2010 at 2:09 PM  

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से श्रध्दासुमन !!

ब्लॉ.ललित शर्मा May 8, 2010 at 6:48 PM  

विनम्र श्रद्धांजलि

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" May 8, 2010 at 6:54 PM  

आपके मित्र वियोग से हम भी दुखी हैं ... हमारी तरफ से उनके लिए विनम्र श्रद्धांजलि स्वीकार करें !

विनोद कुमार पांडेय May 8, 2010 at 8:35 PM  

पंकज जी मैने भी सुना बेहद दुखद समाचार ...साहित्य की बहुत बड़ी क्षय....कविट पढ़ कर आँखे नम हो गई...पंकज जी जब्बार जी श्रद्धांजलि !!!

संजय भास्‍कर May 12, 2010 at 12:49 AM  

हमारी तरफ से उनके लिए विनम्र श्रद्धांजलि स्वीकार करें !

सुनिए गिरीश पंकज को

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