माँ दिवस नहीं, ''माँ-शताब्दी'' मनाएं ..
>> Sunday, May 9, 2010
आज हमारी चार माताएं सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं. जन्म देनेवाली माता के साथ ही भारत माता, गंगा माता और गौ माता. सबकी दशा ख़राब है. इन सबके लिए अब एक दिन नहीं,पूरी ''माँ-शताब्दी'' मनाने की ज़रुरत है.लेकिन ऐसा होगा नहीं, क्योकि बहुत से तथाकथित आधुनिक कहेंगे इन सब के लिए हमारे पास टाइम ही नहीं है.11 सितम्बर 2009 को मैंने माँ पर एक ग़ज़ल दी थी. ''दया की एक मूरत और सच्चा प्यार है अम्मा/ है इसकी गोद में ज़न्नत लगे अवतार है अम्मा/ मुझे काँटा चुभा तो दर्द से वो रो पड़ी अकसर/ मेरे हर दर्द का पहला सही उपचार है अम्मा'' पता नहीं उस दिन क्या था. माँ को केवल एक दिन याद नहीं किया जा सकता. माँ के लिए एक दिन होना भी नहीं चाहिए लेकिन अब पश्चिम की संस्कृति दिमाग पर चढ़ती जा रही है. किसी को एक दिन याद करो और साल भर अपने में ही मस्त रहो. बहरहाल, आज माँ दिवस है. बहुत से ब्लोगों में अपने-अपने ढंग से माँ को याद किया गया है. यह सब पढ़कर मैं भी मन को रोक न पाया. फिर कुछ शेर बन गए. माँ की स्मृति में प्रस्तुत है कुछ शेर दुनिया की हर अच्छी माँ के लिए. अपनी पुरानी ग़ज़ल को आगे बढ़ाते हुए आज कुछ नए शेर बने है,
पुराना शेर हैं-
दया की एक मूरत और सच्चा प्यार है अम्मा
है इसकी गोद में ज़न्नत लगे अवतार है अम्मा
कुछ आज बने शेर इस प्रकार हैं..
वो रहती है भले अनपढ़ मगर बेटा कलेक्टर है
कोई तो फन है उसके पास इक फनकार है अम्मा
दया, करुणा से लेकर त्याग या बलिदान जो भी है
इन्हें हम भूल जाएँ इन सभी का सार है अम्मा
दिया तुमने मुझे इतना कि तुमको और क्या दूं मै
मेरा जीवन है क्या यह तो तेरा उपकार है अम्मा
गढ़ा मुझको सुखाया खून तब तो मै बना हूँ कुछ
तेरी रहमत के आगे सब लगे बेकार है अम्मा
और एक बिल्कुल नयी ग़ज़ल जो आज ही कही है आप जैसे सुधी श्रोताओं के लिए.....
मंदिर में भगवान् बिराजे लेकिन घर में माँ का वास
इसीलिए मंदिर क्यों जाऊं देवी जब है अपने पास
लाख मुसीबत आन पड़े पर उसको फर्क नहीं पड़ता
पता नहीं किस मिटटी का है मेरी अम्मा का विश्वास
जब तक ज़िंदा थी तो उसकी कद्र नहीं कर पाया मै
चली गयी तो रोता बैठा लौट के माँ आ जाती काश..
सबका दुःख हो जाये उसका, सुखी रहे सारा संसार
इसीलिए जब देखो करती रहती है अक्सर उपवास
माँ, धरती, गंगा, गौ माता इन्हें बचना है अब तो
नयी सभ्यता की आंधी में ये न हो जाएँ इतिहास
उसके आँसू में बह जाता अक्सर मेरा सारा दुःख
माँ तेरे आँसू हैं अमृत कितनी इसमें भरी मिठास
दूध, खून, आँसू माँ तेरे जाने कितनी बार बहे
तब जाकर इंसान बने हम कितनो को इसका अहसास
माँ को छू पाना तो पंकज इंसानों की बात नहीं
कद उसका है बेहद ऊंचा हम धरती है वो आकाश
11 टिप्पणियाँ:
बेहद उम्दा ग़ज़लें ...मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
बहुत बढिया गजल
मातृत्व दिवस की हार्दिक शुभकामनाए
बहुत सुंदर ग़ज़ल है दोनों के दोनों !
मातृ दिवस के अवसर पर आप को हार्दिक शुभकामनायें ! मेरी ओर से दुनिया की सभी माताओं को साष्टांग प्रणाम |
nice post :)
मदर्स डे के शुभ अवसर पर ...... टाइम मशीन से यात्रा करने के लिए.... इस लिंक पर जाएँ :
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वो रहती है भले अनपढ़ मगर बेटा कलेक्टर है
कोई तो फन है उसके पास इक फनकार है अम्मा
दिल को छू गई ये पंक्तियां। कुछ ऐसा ही हाल है अपना।
मां को नमन।
bahut sunder prayas. acchha laga apko padhna.
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
वन्दे मातरम !!
आपके लेखन का नहीं है सानी
ये बात हम यानी राजकुमार कह रहे हैं जानी
उसको नही देखा हमने कभी, पर इसकी जरूरत क्या होगी
ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी......सतीश कुमार चौहान भिलाई
मातृत्व दिवस की हार्दिक शुभकामनाए
DERI SE AANE KI MAFI CHAHTA HOON
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