''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल/ 'अहम्' क्या है वो हमारे अंत की शुरुआत है

>> Wednesday, May 12, 2010

'अहम्' का अर्थ होता है-''मै'' और ''अहंकार''. इस शब्द का उपयोग हम लोग करते ही रहते है, जैसे,''उसमे तो आजकल बहुत अहम् आ गया है''. यानी घमंड आ गया है. पिछले दिनों फेसबुक पर किसी मित्र ने ''ईगो'' उर्फ़ अहम् पर चर्चा छेड़ी. 'ईगो' में जीने वाले अंततः पछताते है. उनके साथ कोई नहीं रहता. प्यार से रहने वालों के साथ दुनिया चलती है. मैंने एक पाठिका को ज़वाब देते हुए अचानक दो शेर कह दिए. उसके बाद मुझे लगा कि शायद कुछ और शेर हो सकते है. फिर संयोगवश वे बन भी गए. लगा इन्हें आप तक भी पहुचा दिया जाये. सो,हाजिर है...
'अहम्' क्या है वो हमारे अंत की शुरुआत है
गर इसे समझे कोई तो यह नई सौगात है

आ गया पैसा ज़रा-सा ज्ञान भी कुछ पा गए
प्यार से जीवन जिया तो खूबसूरत बात है

पेड़-सा हम भी बनें फलदार थोड़ा झुक गए
बेवजह तनकर चलें तो बस हमारी मात है

ज़िंदगी में अब सफलता का यही है फलसफा
साजिशें, धोखाधड़ी, कुछ घात, कुछ प्रतिघात है

जो रहा ना आदमी बस हो गया शैतान तो
वक़्त ही उसको बताए क्या तेरी औकात है

मिल गयी उसको ज़रूरत से अधिक दौलत यहाँ 
देख लो उसकी अकड़ ये आदमी की जात है

मैं अँधेरे से कभी डरता नहीं क्योंकि सदा
हौसलों का एक जलता दीप मेरे साथ है 

आज बस इतना ही....

9 टिप्पणियाँ:

शिवम् मिश्रा May 12, 2010 at 11:24 AM  

"जो रहा ना आदमी बस हो गया शैतान तो
वक़्त ही उसको बताए क्या तेरी औकात है"



उम्दा ग़ज़ल ............बधाइयाँ !!

विनोद कुमार पांडेय May 12, 2010 at 11:29 AM  

सुंदर सुंदर विचारों को समेटे एक बेहतरीन ग़ज़ल वैसे आपकी ग़ज़ल हमेशा ही लाज़वाब होती है...धन्यवाद स्वीकारें इस भतीजे का..प्रणाम

वीनस केसरी May 12, 2010 at 11:37 AM  

ज़िंदगी में अब सफलता का यही है फलसफा
साजिशें, धोखाधड़ी, कुछ घात, कुछ प्रतिघात है

वाह

आप तो बात बात में भी गजल निकाल लेते हैं

बहुत बढ़िया

ये शेर खूब पसंद आया

Udan Tashtari May 12, 2010 at 12:24 PM  

पेड़-सा हम भी बनें फलदार थोड़ा झुक गए
बेवजह तनकर चलें तो बस हमारी मात है


-वाह!! गिरीश भाई, बहुत खूब कहा!!


एक विनम्र अपील:

कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

दिलीप May 12, 2010 at 12:58 PM  

waah sir bahut khoob ...deep mere sath hai...lajawaab

M VERMA May 12, 2010 at 4:41 PM  

मैं अँधेरे से कभी डरता नहीं क्योंकि सदा
हौसलों का एक जलता दीप मेरे साथ है
फिर क्या डरना
बहुत सुन्दर

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" May 12, 2010 at 7:57 PM  

पेड़-सा हम भी बनें फलदार थोड़ा झुक गए
बेवजह तनकर चलें तो बस हमारी मात है

वाह बहुत सुन्दर रचना है !

vandana gupta May 12, 2010 at 11:21 PM  

वाह वाह ………………बहुत ही उम्दा शेर्।

अनूप शुक्ल May 13, 2010 at 1:21 AM  

आ गया पैसा ज़रा-सा ज्ञान भी कुछ पा गए
प्यार से जीवन जिया तो खूबसूरत बात है

ये सुन्दर लगी!

सुनिए गिरीश पंकज को

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