अगर बचाना है भारत को, गऊ को आज बचाएं हम
>> Friday, May 14, 2010
एक लेखक के नाते सामाजिक सरोकारों से जुडा रहता हूँ. सामाजिक मोर्चे पर लेखक को एक नागरिक की तरह तैनात रहना चाहिए लेकिन कुछ लोग केवल लेखन तक सीमित रहते है. मै विनम्रतापूर्वक आगे बढ़कर समाज के लिए कुछ करना चाहता हूँ. वैसे घोर नास्तिक हूँ, फिर भी गौ-सेवा के लिए खुलकर सामने आ जाता हूँ. मै हिंदूवादी भी नहीं हूँ, लेकिन गाय के सवाल पर अगर कोई मुझे हिंदूवादी या दकियानूस भी समझे तो मुझे फर्क नहीं पडेगा. गाय हमारे जीवन का अहम् हिस्सा है. ऐसा कौन अभागा होगा जिसने गाय का ढूढ़ न पीया हो? हम तो अपनी माँ दूध दो साल तक पीते है, लेकिन गो-माता का दूध मरते दम तक पीते हैं. खैर....जो लोग माँस या गो-मांस खाने के शौकीन है, उनको यह जानकर दुःख होगा, कि मैंने गाय की दुर्दशा पर एक उपन्यास पूर्ण कर लिया है. उसका नाम है-''देवनार के दानव'' लगभग दो सौ पृष्ठों के अपने इस चौथे उपन्यास में मैने भारत में बढ़ते जा रहे कसाईखाने, गौ शालाओं की दुर्दशा पर फोकस किया है. मैंने यह भी बताया है कि मुस्लिम शासनकाल में लगभग सभी शासकों ने गो-ह्त्या पर रोक लगा दी थी. कुरआन में भी गोवंश की हिंसा पर रोक है. आज भी देश के अनेक मुस्लिम भाई गो-रक्षण के काम में लगे हुए है. उपन्यास पता नहीं कब आएगा, कभी उपन्यास अंश भी दिया जा सकता है लेकिन वह बहुत बड़ा हो जाएगा. मुझे लगता है ब्लॉग में छोटी-छोटी चीज़े ही आनी चाहिए. पाठको पर अत्याचार न हो. इसीलिए शायद अंश भी न दू. हाँ, उपन्यास को आनलाईन पढ़ने के लिए ज़रूर उपलब्ध कराऊंगा. खैर, ये तो बाद की बात है. आज गाय पर एक गीत सूझ गया तो उसे दे रहा हूँ.
गीत
अगर बचाना है भारत को, गऊ को आज बचाएं हम,
गो-वंश की रक्षा कर के, निज कर्तव्य निभाएं हम..
कितनी हिंसा प्यारी हमको, इसका ही कुछ भान नहीं,
आदिमयुग से निकले हैं हम, क्या इसका भी ज्ञान नहीं?
सभ्य अगर हम कहलाते हैं, कुछ सबूत दिखलाएं हम.
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम...
एक जीव है इस दुनिया में, जो पवित्र कहलाता है,
'पंचगव्य' हर गौ माता का, हमको स्वस्थ बनाता है.
दूध-मलाई, मिष्ठानों का, कुछ तो मूल्य चुकाएँ हम.
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम...
जिस तन में सब देव विराजें, उस गायों को करें नमन,
भूले से वो कट ना पाए, मिलजुल कर हम करें जतन.
वक्त पड़े तो माँ के हित में, अपनी जान लुटाएं हम.
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम...
एक गाय भी अगर पले तो, हमको करती है खुशहाल,
गो-धन बढ़े निरंतर हम सब, होते जाते मालामाल.
गाय हमारी पूँजी इसको, कभी नहीं बिसराएँ हम.
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम...
माँस हमारा प्रिय भोजन क्यों, ऐसी क्या लाचारी है,
सोचे ठन्डे दिल से भाई, घर-घर हिंसा जारी है.
करुणा, प्यार-मोहब्बत वाला अपना देश बनाएँ हम.
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम...
उठो-उठो सब भारतवासी, सुनो गाय की करुण-पुकार,
कटता है गो-वंश कहीं तो बढ़ कर रोकें अत्याचार.
स्वाद और धनलोभी-जन को, गो-महिमा बतलाएं हम.
अगर बचाना है भारत को, गऊ को आज बचाएं हम...
भटक रही भूखी माँ दर-दर, पालीथिन, कचरा खाए,
कैसे हैं गो सेवक उनको, लज्जा तनिक नहीं आए.
मुक्ति मिलेगी, इन गायों को पहले मुक्ति दिलाएँ हम.
अगर बचाना है भारत को, गऊ को आज बचाएं हम...
गैया, गंगा, धरती मैया, सब पर संकट भारी है,
हम ही अपने माँ के शोषक, बुद्धि की बलिहारी है.
माँ बिन कैसे हम जीएंगे, पुत्रों को समझाएँ हम...
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम,
गो वंश की रक्षा कर के, निज कर्तव्य निभाएं हम..
6 टिप्पणियाँ:
एक बहुत ही सटीक और जरूरी मुद्दे को गीत के रूप में प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत साधुवाद के पात्र है आप !! आभार आपका इस ओर हम सब का धयान दिलाने के लिए !
बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने , सार्थक ।
sahi kaha........
anupam kavita.......
आपका आलेख जितना महत्वपूर्ण है कविता भी उतनी ही । यह सवाल भी उतना ही । मैं इन दिनो अपनी गली में , आसपास विचरण करने वाली गायों को पानी पिला रहा हूँ ।
हम बचपन में गाय - बछड़े को देख कर गाते थे
- "गाय माता गोमती ,टोगड़ियो गणेश"
गिरीशजी , गौ माता के लिए मेरे मनके भावों की भी सह अभिव्यक्ति है आपके इस गीत में …
पूरा गीत मन को छू रहा है ।
गैया, गंगा, धरती मैया, सब पर संकट भारी है,
हम ही अपने माँ के शोषक, बुद्धि की बलिहारी है.
माँ बिन कैसे हम जीएंगे, पुत्रों को समझाएँ हम...
गीत में उठाए प्रश्नों का उत्तर जिन्हें देना चाहिए , उन तक गीत पहुंचे ।
"सभ्य अगर हम कहलाते हैं, कुछ सबूत दिखलाएं हम."
"माँस हमारा प्रिय भोजन क्यों, ऐसी क्या लाचारी है?"
'देवनार के दानव' पढ़ने की इच्छा रहेगी ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
....सही मुद्दा उठाया है
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