''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल/ आंकड़ों में मुल्क ये खुशहाल लगता है

>> Thursday, May 20, 2010


आंकड़ों में मुल्क ये खुशहाल लगता है  
पर हकीकत में बहुत कंगाल लगता है 

अब यहाँ आलोचनाएँ कौन सुनता है
सच तनिक-सा बोलिए मुंह लाल लगता है
 
झूठ की बुनियाद पर हैं कुरसियों के घर 
सत्य बेचारा बड़ा बदहाल लगता है

प्यार से जो बोलता है वह बड़ा मूरख 
बम दिखाए वो ही मालामाल लगता है

कैसे आगे आये कोई रास्ता भी हो
हर तरफ कितना भयानक जाल लगता है 

रौशनी क्यों कर न आई अब तलक सोचो
तंत्र अपने लोक का जंजाल लगता है

देखिये अफसर को ये बर्बादी-ए-दौलत
कौन-सा घर से किसी के माल लगता है.

सब्र करना सीख ले पंकज सुखी होगा 
काम होने में तो सालोंसाल लगता है

12 टिप्पणियाँ:

दीपक 'मशाल' May 20, 2010 at 12:04 PM  

हज़ल बहुत ही दमदार है.. आखिर है किसकी!!!! :) सर कभी आपकी एक नज़र इस नाचीज़ के ब्लॉग पर पहुँच, मार्गदर्शन करेगी क्या? bas ek baar

शिवम् मिश्रा May 20, 2010 at 12:15 PM  

" सब्र करना सीख ले पंकज सुखी होगा
काम होने में यहाँ तो साल लगता है "
सत्य वचन !!

Rajeev Bharol May 20, 2010 at 12:29 PM  

Bahut achhi ghazal aaj ke haalat par

वीनस केसरी May 20, 2010 at 12:31 PM  

सटीक अभिव्यक्ति

बढ़िया गजल

राजीव तनेजा May 20, 2010 at 1:24 PM  

"सब्र करना सीख ले पंकज सुखी होगा
काम होने में यहाँ तो साल लगता है"...
साल भर में भी काम हो जाए तो गनीमत समझिए...
बहुत भी बढ़िया कटाक्ष करती रचना ....

दिलीप May 20, 2010 at 1:30 PM  

waah sir nanga sach hai aaj ka aapki ghazal...bahut hi sateek aur chot karti...

M VERMA May 20, 2010 at 4:17 PM  

प्यार से जो बोलता है वह बड़ा मूरख
बम दिखाए वो ही मालामाल लगता है
सही फर्माया

Udan Tashtari May 20, 2010 at 5:34 PM  

आंकड़ों में मुल्क ये खुशहाल लगता है
पर हकीकत में बहुत कंगाल लगता है

-एक शेर ही भरपूर है महाराज जी..हर शेर की अदा निराली है. लूट लिया जी आपने!!

विनोद कुमार पांडेय May 20, 2010 at 5:52 PM  

प्यार से जो बोलता है वह बड़ा मूरख
बम दिखाए वो ही मालामाल लगता है

एक एक लाइन में सच्चाई भरी हुई है सामाजिक पहलुओं को उजागीर करती एक बेहतरीन ग़ज़ल...चाचा जी जी बहुत बहुत बधाई...प्रणाम

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" May 21, 2010 at 3:07 AM  

झूठ की बुनियाद पर हैं कुरसियों के घर
सत्य बेचारा बड़ा बदहाल लगता है

क्या बात है ... क्या बात है !
बहुत बढ़िया लगा ... एकदम सच कहा है आपने ... और किस तरह !

संजय भास्‍कर June 2, 2010 at 4:47 PM  

बहुत भी बढ़िया कटाक्ष करती रचना .

महेंद्र मिश्र June 28, 2010 at 3:29 AM  

वाह!

सुनिए गिरीश पंकज को

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