नई ग़ज़ल/ आंकड़ों में मुल्क ये खुशहाल लगता है
>> Thursday, May 20, 2010
आंकड़ों में मुल्क ये खुशहाल लगता है
पर हकीकत में बहुत कंगाल लगता है
अब यहाँ आलोचनाएँ कौन सुनता है
सच तनिक-सा बोलिए मुंह लाल लगता है
झूठ की बुनियाद पर हैं कुरसियों के घर
सत्य बेचारा बड़ा बदहाल लगता है
प्यार से जो बोलता है वह बड़ा मूरख
बम दिखाए वो ही मालामाल लगता है
कैसे आगे आये कोई रास्ता भी हो
हर तरफ कितना भयानक जाल लगता है
रौशनी क्यों कर न आई अब तलक सोचो
तंत्र अपने लोक का जंजाल लगता है
देखिये अफसर को ये बर्बादी-ए-दौलत
कौन-सा घर से किसी के माल लगता है.
सब्र करना सीख ले पंकज सुखी होगा
काम होने में तो सालोंसाल लगता है
12 टिप्पणियाँ:
हज़ल बहुत ही दमदार है.. आखिर है किसकी!!!! :) सर कभी आपकी एक नज़र इस नाचीज़ के ब्लॉग पर पहुँच, मार्गदर्शन करेगी क्या? bas ek baar
" सब्र करना सीख ले पंकज सुखी होगा
काम होने में यहाँ तो साल लगता है "
सत्य वचन !!
Bahut achhi ghazal aaj ke haalat par
सटीक अभिव्यक्ति
बढ़िया गजल
"सब्र करना सीख ले पंकज सुखी होगा
काम होने में यहाँ तो साल लगता है"...
साल भर में भी काम हो जाए तो गनीमत समझिए...
बहुत भी बढ़िया कटाक्ष करती रचना ....
waah sir nanga sach hai aaj ka aapki ghazal...bahut hi sateek aur chot karti...
प्यार से जो बोलता है वह बड़ा मूरख
बम दिखाए वो ही मालामाल लगता है
सही फर्माया
आंकड़ों में मुल्क ये खुशहाल लगता है
पर हकीकत में बहुत कंगाल लगता है
-एक शेर ही भरपूर है महाराज जी..हर शेर की अदा निराली है. लूट लिया जी आपने!!
प्यार से जो बोलता है वह बड़ा मूरख
बम दिखाए वो ही मालामाल लगता है
एक एक लाइन में सच्चाई भरी हुई है सामाजिक पहलुओं को उजागीर करती एक बेहतरीन ग़ज़ल...चाचा जी जी बहुत बहुत बधाई...प्रणाम
झूठ की बुनियाद पर हैं कुरसियों के घर
सत्य बेचारा बड़ा बदहाल लगता है
क्या बात है ... क्या बात है !
बहुत बढ़िया लगा ... एकदम सच कहा है आपने ... और किस तरह !
बहुत भी बढ़िया कटाक्ष करती रचना .
वाह!
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