''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

एक जून ...दो ग़ज़ले...

>> Monday, May 31, 2010

एक जून... सुधी पाठक अनुमान लगा सकें तो लगा लें, मगर मैं बताऊंगा नही, कि आज के दिन क्या हुआ था. बस इतना ही कहूंगा कि, ज़िंदगी की राह पर अच्छा-खासा अकेला चला जा रहा था, कि कोई और साथ आ गया और बोला, ''अकेले-अकेले कहाँ जा रहे हो/ हमें साथ ले लो, जहाँ जा रहे हो'' लेकिन हम रुके नहीं, तो वह फिर मीठी आवाज में बोल पडा-'' बाबूजी धीरे चलना, प्यार में ज़रा संभालना'' हम फिर भी नहीं रुके मगर उसने हार नहीं मानी और कहा-''जाइये आप कहाँ जायेंगे, ये नज़र लौट के फिर आयेगी. और...आखिर नज़र को लौटना ही पडा. हमने भी कहा- ''तुमने पुकारा और हम चले आये.'' नज़रे चार हुईं और 'अकेला' राही 'दुकेला' हो गया. वो खूबसूरत तारीख थी एक जून...उसी दिन को याद करते हुए कुछ रोमांटिक शेर पेश कर रहा हूँ अपनी फितरत के बिल्कुल विपरीत. क्या करे आज का दिन ही कुछ ऐसा है.वैसे आज बहुत शादियाँ है और आपको कहीं न कही किसी समारोह में जाना ही होगा. इसलिए अब वक्तव्य समाप्त......ज़्यादा मत सोचिये और समय निकल कर ये छोटी-छोटी ग़ज़ले पढ़ लीजिये.
(१)

तुम आते हो पास बहुत अच्छा लगता है
मिट जाते संत्रास बहुत अच्छा लगता है

जीवन के पतझर से जूझा.. बस तेरी
आँखों का मधुमास बहुत अच्छा लगता है

तुम ऐसी हो नदी कि जिसको पी कर के 
बढ़ जाती है प्यास बहुत अच्छा लगता है

तुमने संघर्षों में मेरा साथ दिया है
जीवन आया रास बहुत अच्छा लगता है

मेरी राह तका करते हो तुम अक्सर
मुझको यह अहसास बहुत अच्छा लगता है

साथ हमारा रहे सलामत बस पंकज 
हो चाहे बनवास बहुत अच्छा लगता है. 

(२)

जाने क्या है बात तुम्हारी आँखों में 
कट जाती है रात तुम्हारी आँखों में 

तुमको चाहा और भला क्या चाहूँगा
अनगिन है सौगात तुम्हारी आँखों में

दुनिया से हरदम खाया धोखा मैंने 
बस सच्चे ज़ज्बात तुम्हारी आँखों में.

तपते मौसम में भी शीतलता पाई 
इक रिमझिम बरसात तुम्हारी आँखों में
 
अन्धकार चहुओर नज़र आये लेकिन 
है ''मंजुल'' इक प्रात तुम्हारी आंखों में

27 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 31, 2010 at 11:59 AM  

गिरीश जी ,
जहाँ तक मैं समझी हूँ शादी की सालगिरह है....

बहुत बहुत मुबारक शादी की वर्षगाँठ ...

और दोनों गज़लें तो आपके दिल का आईना हैं....

श्रीमति जी को भी मेरी तरफ से बधाई दीजियेगा

पंकज मिश्रा May 31, 2010 at 12:06 PM  

साथ हमारा रहे सलामत बस पंकज
हो चाहे बनवास बहुत अच्छा लगता है.

अन्धकार चहुओर नज़र आये लेकिन
है ''मंजुल'' इक प्रात तुम्हारी आंखों में

मुझे लगता है अभी कुछ लाइनें और बढ़ सकती हैं। नहीं क्या? खैर, पंकज जी और गिरीश जी दोनों लोगों से कह रहा हूं कि कभी कभी दूसरों के ब्लॉग पर भी जाया करिए। और हां अगर वाकई शादी की सालगिरह है तो मेरी ओर से बधाई स्वीकार करें।

http://udbhavna.blogspot.com/

दादा जी May 31, 2010 at 12:08 PM  
This comment has been removed by the author.
दीपक 'मशाल' May 31, 2010 at 12:11 PM  

दोनों ही ग़ज़लें आपके लेखन का मुरीद बनाती हुई लगीं..

दादा जी May 31, 2010 at 12:26 PM  

दादाजी की तरफ से आपको बहुत-बहुत मुबारकबाद। एक समय हमें भी प्यार हुआ था लेकिन तब वैसा जमाना नहीं था। हमें अपने बेटों से पूछना पड़ता था कि प्यार करें या न करें। अब तो बड़ा बेशर्म जमाना आ चुका है औलादें मां-बाप से पूछती ही नहीं।
खैर ये ब्लागजगत है। यहां एक से बढ़कर एक लोग है। आप अच्छी गजलें लिखते हैं.. मुगले आजम के समय मिलते तो जरूर आपकी गजल को हम फिल्म में डलवा देते। खैर अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है मैं अपने छोकरों से कहता हूं कि वे इसका प्रबंध करें। वैसे एक लड़का मेरा जो पापाजी बनकर खो गया है मैं उसकी तलाश में निकला हूं पता चला है कि अमरकंटक में कहीं देखा गया है। वही अमरकंटक जहां गिरीश बिल्लौरे साधु-संतो को गांजा पीते हुए देखने गया था।

Sanjeet Tripathi May 31, 2010 at 12:34 PM  

badhai badhai aur badhai aapko salgirah ki, post se to yahi pratidhwanit ho raha hai ki shadi ki salgirah hai...

ब्लॉ.ललित शर्मा May 31, 2010 at 6:35 PM  

गिरीश भैया आपको और भाभी जी वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं।

बस आज एक पार्टी दे, हमें भी बुलाएं और सालगिरह मनाएं, आनंद उठाएं।

Udan Tashtari May 31, 2010 at 6:44 PM  

वाह जी, शादी की सालगिरह मुबारक हो..हमारी तो पार्टी डायरी में लिख लें..दिसम्बर में अलग से...भौजी के हाथ के बने खाने साथ. तय रहा?

Udan Tashtari May 31, 2010 at 6:45 PM  

जाने क्या है बात तुम्हारी आँखों में
कट जाती है रात तुम्हारी आँखों में


-आज तो मौके विशेष पर भाभी को यह पंक्ति गा कर सुना ही दिजिये..हिम्मत करिये, काम आयेगी. :)

Arun sathi May 31, 2010 at 6:48 PM  

आपके लिखने मे है जो बात बहुत अच्छा लगता है

श्यामल सुमन May 31, 2010 at 6:56 PM  

दोनो ही गजलें बेहतरीन। गजल के पहले की पंक्तियाँ भी रोचक हैं। बहुत पहले की लिखी निम्न पंक्तियों की याद दिला दी आपने -

जब होती चार आँखें, आँखों से होती बातें
आँखों से प्यार होता, आँखों में कटती रातें

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

अमिताभ मीत May 31, 2010 at 8:19 PM  

बेहतरीन ग़ज़ल ....दोनों ही !

राजकुमार सोनी May 31, 2010 at 8:27 PM  

हमेशा की तरह जानदार, शानदार और जबरदस्त।
ऊपर दी गई सूचना भी सुखद है आपको बधाई।
आता हूं आइसक्रीम गटकने के लिए।
मेरे ब्लाग पर आपके हंसने के लिए कुछ है।

girish pankaj May 31, 2010 at 9:24 PM  

सभी चाहने वालों को...बधाई देने वाले ब्लागर भाई-बहनों को धन्यवाद..दिल से...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार May 31, 2010 at 9:55 PM  

गिरीश जी भाई साहब और आदरणीया भाभीजी ,
विवाहोत्सव की वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं !
गर्मी के कारण स्वास्थ्य सही न होने से विलंब से आया हूं , तदर्थ क्षमा चाहूंगा ।
आज रचनाओं पर कुछ भी कहते नहीं बन रहा , मन से यही उच्चरित हो रहा है …शुभकामनाएं , …शुभकामनाएं , …शुभकामनाएं !
पुनः हार्दिक शुभकामनाएं !

दिलीप May 31, 2010 at 11:01 PM  

waah dono hi rachnaayein lajawaab...aur haan shaadi ki varshgaanth ki badhaiyan

vandana gupta June 1, 2010 at 12:10 AM  

शादी की सालगिरह मुबारक हो.

राज भाटिय़ा June 1, 2010 at 12:33 AM  

वाह वाह जी आंदाज बहुत अच्छा लगा...
आप दोनो को हमारी तरफ़ से शादी की वर्ष गांठ की बहुत बहुत बधाई.
कविता बहुत सुंदर लगी
धन्यवाद

स्वप्निल तिवारी June 1, 2010 at 3:30 AM  

varshgaanth ki bahut bahut shubhkamnayen aap ko ..achhi ghazlen hain dono

Kusum Thakur June 1, 2010 at 6:27 AM  

गिरीश जी , आप दोनों को शादी की वर्षगाँठ की ढेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएं !!

मिलकर रहिए June 1, 2010 at 9:43 AM  

कुडि़यों से चिकने आपके गाल लाल हैं सर और भोली आपकी मूरत है http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/06/blog-post.html जूनियर ब्‍लोगर ऐसोसिएशन को बनने से पहले ही सेलीब्रेट करने की खुशी में नीशू तिवारी सर के दाहिने हाथ मिथिलेश दुबे सर को समर्पित कविता का आनंद लीजिए।

Ra June 1, 2010 at 10:49 AM  

सबसे पहले तो आपको ,,बहुत-बहुत बधाई ..आप जीवन में हमेशा खुश रहे ,,ईश्वर से यही दुआ है ,,आपकी दोनों रचनाएं बहुत सुन्दर है ,,,आपके मार्गदर्शन की मुझे आवश्यकता है ...कृपया आप मेरे ब्लॉग पर पधार कर कुछ आशीष और सुझाव दे ...

Ra June 1, 2010 at 12:13 PM  

आपने मेरी रचना की प्रशंशा की ..अच्छा लगा ,,,'chhand ko bachanaa zaroori hai.'
यह बात मैं समझा नहीं थोड़ा खुलकर बताये ,,,मुझे मार्गदर्शन की आवश्यकता है ,,मैं पूर्णतया त्रुटिहीन लिखना चाहता हूँ ..चाहे छन्दों की सुन्दरता कम हो ,,,,कृपया बताने का कस्ट करे ..मैं आपक आभारी रहूँगा

शिवम् मिश्रा June 2, 2010 at 2:09 AM  

"दुकेले" होने की बहुत बहुत बधाइयाँ !!

बढ़िया लगी आज की पोस्ट !

देवेन्द्र पाण्डेय June 2, 2010 at 7:04 AM  
This comment has been removed by a blog administrator.
संजय भास्‍कर June 2, 2010 at 4:44 PM  

र दोनों गज़लें तो आपके दिल का आईना हैं.

संजय भास्‍कर June 2, 2010 at 4:44 PM  

हमेशा की तरह जानदार, शानदार और जबरदस्त

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP