''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल/ सच कहना दुश्वार हुआ है...

>> Wednesday, June 2, 2010

सच कहना दुश्वार हुआ है
खुलकर अत्याचार हुआ है

बड़े-बड़े भी मात खा गए 
छिपकर जब भी वार हुआ है

झूठ बिका है सबसे ज्यादा 
अच्छा कारोबार हुआ है 

टूट गया हर सुन्दर सपना 
ऐसा बारम्बार हुआ है

हार नहीं मानी जिद्दी ने
सपना तब साकार हुआ है

खून-खराबा सहज हो गया
ज़ालिम क्यों संसार हुआ है

उतनी ही उसको है मुश्किल 
जितना जो खुद्दार हुआ है

मेहनतकश लड़ ले दुनिया से
हाथ अगर औजार हुआ है 

एक शब्द अब गायब होता 
नाम इसी का प्यार हुआ है

खरी-खरी बातें करता था
चापलूस अखबार हुआ है

उठो मशालें लेकर आओ
देखो तो अंधकार हुआ है 

लल्लोचप्पो करने वाला
हिट वो ही दरबार हुआ है

चालाकी, मक्कारी, धोखा
यही नया व्यवहार हुआ है

दुःख में जो शामिल रहता था 
गायब वो किरदार हुआ है

चोरों की तो निकल पडी है
गाफिल चौकीदार हुआ है

चलो नई बस्ती अब देखें 
शहर तो ये बेकार हुआ है 

औरों से क्या होगा जीवन
खुद से ही बेजार हुआ है

काँटों पर भी फूल हमेशा
खिलने को तैयार हुआ है

जब कुर्सी ने किया इशारा 
जमकर भ्रष्टाचार हुआ है

जब मुस्काना बंद हुआ तो
समझो रिश्ता भार हुआ है

हिम्मत अगर नहीं छोडी तो 
सबका बेड़ा पार हुआ है

स्वारथ की आँधी में अक्सर
रिश्ता तारोतार हुआ है 

ठगो सभी को काम निकालो
जीवन का यह सार हुआ है

संघर्षों ने माँजा मुझको 
उसका यह उपकार हुआ है

पंकज अब जीएगा कैसे
रूठा अपना यार हुआ है

13 टिप्पणियाँ:

राजकुमार सोनी June 2, 2010 at 9:20 AM  

धारधार गजल. पूरा तेवर बरकरार। बधाई।

Udan Tashtari June 2, 2010 at 9:33 AM  

सभी शेर सटीक..आनन्द आ गया पूरी गज़ल बांच कर,

ब्लॉ.ललित शर्मा June 2, 2010 at 9:37 AM  

खरी-खरी बातें करता था
चापलूस अखबार हुआ है

सत्य है, बहुत ही उम्दा शेर कहे हैं आपने

शुभकामनाएं
आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 2, 2010 at 9:50 AM  

झूठ बिका है सबसे ज्यादा
अच्छा कारोबार हुआ है
******************

उतनी ही उसको है मुश्किल
जितना जो खुद्दार हुआ है

****************
जब मुस्काना बंद हुआ तो
समझो रिश्ता भार हुआ है

पुरी गज़ल बेमिसाल....और आज के समय पर करारा प्रहार

दिलीप June 2, 2010 at 10:18 AM  

aaj ki poori tasveer hai ye gazal...

विनोद कुमार पांडेय June 2, 2010 at 10:19 AM  

हर एक लाइन जोरदार...आज के सामाजिक परिस्थितियों पर एकदम सटीक बैठता बढ़िया ग़ज़ल..चाचा जी बहुत बहुत धन्यवाद इतनी सुंदर ग़ज़ल पढ़वाने के लिए...प्रणाम स्वीकारें

राज भाटिय़ा June 2, 2010 at 10:28 AM  

सभी शेर एक से बढ कर एक बहुत अच्छे

शिवम् मिश्रा June 2, 2010 at 11:02 AM  

" खरी-खरी बातें करता था
चापलूस अखबार हुआ है

उठो मशालें लेकर आओ
देखो तो अंधकार हुआ है "

बहुत खूब ............एकदम सत्य कहा है आपने ......बेहद उम्दा रचना !

Ra June 2, 2010 at 11:32 AM  
This comment has been removed by the author.
Ra June 2, 2010 at 11:34 AM  

उतनी ही उसको है मुश्किल
जितना जो खुद्दार हुआ है ...इन पंक्तियों का का जवाब नहीं ....बाकी ग़ज़ल बहुत ही शानदार है ...एक -एक सच का आइना दिखा प्रस्तुति ..धन्यवाद सर aapne meri ek rachna par prashansha ke sath sujhav bhi diya tha ki chhando ko bachana jaruri hai ,,main samja nahi paya , main trutiheen likhna chata hoon ,meri madad kare ,blog par aakar athava mail me sujhav ko thoda khul kar bataye ,,,main sadiv aapak aabhari raunga ...prateeksha me

संजय भास्‍कर June 2, 2010 at 4:42 PM  

सत्य है, बहुत ही उम्दा शेर कहे हैं आपने

नीरज गोस्वामी June 3, 2010 at 7:05 AM  

इस लम्बी लेकिन पुख्ता ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें...जीवन का कोई भी पक्ष आपने छोड़ा नहीं है...आपकी लेखनी को प्रणाम..
नीरज

Sushant Jain February 11, 2011 at 11:53 AM  

aaj ke bajaroo waqt pe bahut bade prahar kiye he...

badhaai

सुनिए गिरीश पंकज को

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