''सद्भावना दर्पण'

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गीत/ पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल.

>> Thursday, June 3, 2010

कल रात नाली में गिरकर एक गर्भवती गाय की जान चली गयी. मै अपने आँसूं नहीं दिखा सकता लेकिन इस घटना ने मुझे कितना दुःख दिया, वह मेरी आहत-भावना को देख कर समझ सकते है. अब तक उबर नहीं पाया हूँ इससे. कल बेटे साहित्य ने आकर बताया कि घुप्प अँधेरे के कारण एक गाय नाली में गिर गयी.बेटे और कुछ लोगों ने मिलकर गाय को किसी तरह बाहर निकाला.गाय की टांग टूट गयी थी.वह वही बैठ गयी. आगे बढ़ ही नहीं सकती थी. नाली में गिरने के कारण पेट में पलने वाला उसका बछडा भी शायद मर गया हो. बाद में बेचारी गाय भी चल बसी. पता नहीं किस कसाई गो-पालक की गाय थी. क्या रायपुर, क्या कोई दूसरा शहर, हर जगह गाय को लोग लावारिस-सा छोड़ देते है. दुःख होता है यह सोच कर कि, गाय का दूध तो लोग शान से पीते है, दूध बेचकर कमाई भी करते है मगर गैया को पर्याप्त चारा-पानी नहीं देते. अजीब लोग है. गाय से अमृत प्राप्त करते है, और उसे जहर खाने के लिए इधर-उधर भेज देते है. गाय की दुर्दशा पर एक उपन्यास लिख रहा हूँ, अब इसमे गर्भवती गाय की मृत्यु का दुःख अध्याय भी जुड़ जाएगा. कई बार सोचता हूँ, कि अगर मेरे पास कुछ न्यायिक अधिकार होता तो गाय की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा देता. और सज़ा मिलनी ही चाहिए. बहुत-से गो-सेवक हिन्दू है, ये नकली लोग है, पाखंडी नंबर वन. वक्त आने पर अपनी बीमार गाय कसाई को बेच देते है. कितना कुछ लिखू, दुर्दशा पर 220 पृष्ठों का उपन्यास लिख लिया है. इसमे मैनें गाय की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार खलनायको की खबर ली है, लेकिन इससे होगा क्या. गायें तो कटती रहेंगी. सडकों पर घूम-घूम कर दुर्घटनाओं का शिकार भी होती रहेंगे. कल अकाल मौत मरने वाली गाय को याद करते हुए एक गीत लिखा जो आपके सामने प्रस्तुत है. 

पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल.
चाहे लाख करे वो पूजा, नरक मिले उसको हर हाल..

नीच कहेंगे उसको जिसने, गौ को लावारिस कर डाला,
दूध निकाला माँ का अपनी, मगर नहीं दे सका निवाला.
गौ सेवक पाखंडी जितने, मरेंगे इक दिन वो बदहाल.
पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल.

काहे की गौ माता वह तो, नोट कमाने का सामान,
दोहन कर लो चाहे जितना, मूक बेचारी है अनजान.
जीते-जी वह सुख देती है, मर कर भी दे जाती खाल..
पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल.

तुम हो घटिया-से पशुपालक, गाय नहीं माता-वाता,
बहुत हो गया पाप बंद हो, तेरा क्या गऊ से नाता?
गाय रखी है घर में तुझको, होना है बस मालामाल.
वह गौपालक तो है पापी, जिसकी गैया हुई हलाल.

सडकों पर मरती-कटती है, खून के आँसू पीती है,
कैसा है यह देश हमारा, गैया मर-मर जीती है.
मरता हुआ समाज हमारा, निर्मम कितना है कंगाल. 
पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल.

उठो-उठो ओ हिन्दुस्तानी, अपने बल को याद करो,
गाय हमारी असली माता, इसका कुछ तो ध्यान धरो.
पहले लायक तो बन जाना, फिर बेशक गैया तू पाल.
पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल.

चाहे लाख करे वो पूजा, नरक मिले उसको हर हाल.
पापी है वह गौपालक तो, जिसकी गैया हुई हलाल..  

8 टिप्पणियाँ:

दिलीप June 3, 2010 at 8:31 AM  

ek uttam sandesh samoye sundar rachna...gaay hamari maata hai...aur uska sammaan karna hamara kartavy hai..par yahan to sarkar hi gomaans khilane wali hai...

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 3, 2010 at 9:40 AM  

संवेदनशील मन से एक संवेदनशील रचना...

राज भाटिय़ा June 3, 2010 at 10:14 AM  

बहुत संवेदनशील !! होना यु चाहिये कि लावारिश जानवरो को पकड कर किसी खास जगह बन्द कर देना चाहिये, ओर जब उस का मलिक उसे ढुढता ढुढता वहा आये तो उस से जुर्माना बसुला जाये ओर जानवर को जितने दिन वहा खाना दिया जाये उस का खर्च भी लिया जाऎ, ओर अगर निश्चित समय तक उस जानवर को लेने कोई ना आये तो उस की निलामी कर दी जाये, इस से सरकार को भी आमदनी होगी, लोगो को नोकरी भी मिलेगी, ओर शहर मै आवारा जानवरो का घुमना भी बन्द होगा, दुर्घटनाये कम होगी, ओर जानवरो को खाना भी घर पर ही मिलेगा

शिवम् मिश्रा June 3, 2010 at 10:31 AM  

दुखद घटना पर एक बेहद संवेदनशील रचना...!

Udan Tashtari June 3, 2010 at 11:17 AM  

वाकई, बहुत संवेदलशील अभिव्यक्ति!!

संगीता पुरी June 3, 2010 at 11:45 AM  

सचमुच आज गायों की हालत बहुत दयनीय है .. बहुत अच्‍छी रचना है !!

आचार्य उदय June 3, 2010 at 6:10 PM  

आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !

आचार्य जी

लता 'हया' June 4, 2010 at 1:21 PM  

मेरी ग़ज़ल पर आपकी पहले तो 'काव्यात्मक टिप्पणी' अच्छी लगी .
और सफ़ाई मत दीजिये जनाब ,मैं भी इसे ग़ज़ल के लिए ही समझी थी
बहरहाल सफ़ाई देने का ये अंदाज़ भी पसंद आया
और गाय वाला हादसा तो ? आपने सही फ़रमाया

सुनिए गिरीश पंकज को

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