ग़ज़ल/ मै उजियारा बाँट रहा था मगर हवा को रास न आया
>> Saturday, June 12, 2010
मै उजियारा बाँट रहा था मगर हवा को रास न आया
उसने आँधी को भेजा और मेरा जलता दीप बुझाया
एक दीप बुझ जाने पर भी हार नहीं मानी मैंने
फिर से दीप जलाकर मैंने बस आँधी को सबक सिखाया
नेक राह पर चलना भी क्या अब इतना आसान रहा
फिर भी कांटें चुन-चुन मैंने हरदम आगे कदम बढ़ाया
आओ हम सब मिल करके अब अंधकार पर हल्ला बोलें
देखो साथ निभाने खातिर नन्हा दीपक आगे आया
जिसने अपनी राह बनाई मेहनत करके जीवन में,
उस राही को इस दुनिया में सचमुच कोई भूल न पाया
असफलताएँ और नहीं कुछ इम्तिहान है पंकज का
लगता है जी भर कर मैंने अभी नहीं कुछ जोर लगाया
10 टिप्पणियाँ:
वाह .. बहुत प्रेरणादायक रचना !!
waah sakaratmakta jeevan me safalta ke liye bahut zaruri hai...badhiya sandesh
बेहतरीन शिक्षाप्रद, रास्ता दिखानेवाली रचना , शुभकामनायें गिरीश भाई !
प्रेरणा देती सुन्दर रचना
प्रेरणादायक खूबसूरत रचना....
चाचा जी बराबर आप की ग़ज़ल पढ़ता आया हूँ शायद ही कभी कोई छूट पता हो वैसे तो हर ग़ज़ल बढ़िया होती है पर आज की ग़ज़ल हमें कुछ ज़्यादा ही खास लगी एक प्रेरणा देती हुई जो खुद में आत्मविश्वास भर दे...बहुत ही भावपूर्ण और लाज़वाब रचना ..इस भतीजे का प्रणाम स्वीकार करें
हवा को पीता है
तभी तो जीता है
सार्थक पोस्ट
सहज सरल सकारात्मक भावयुक्त रचना !
आभार ।
असफलताएँ और नहीं कुछ इम्तिहान है पंकज का
लगता है जी भर कर मैंने अभी नहीं कुछ जोर लगाया
... बेहतरीन !!!
Post a Comment