''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल/ मै उजियारा बाँट रहा था मगर हवा को रास न आया

>> Saturday, June 12, 2010

मै उजियारा बाँट रहा था मगर हवा को रास न आया 
उसने आँधी को भेजा और मेरा जलता दीप बुझाया

एक दीप बुझ जाने पर भी हार नहीं मानी मैंने 
फिर से दीप जलाकर मैंने बस आँधी को सबक सिखाया 
                                          
नेक राह पर चलना भी क्या अब इतना आसान रहा
फिर भी कांटें चुन-चुन मैंने हरदम आगे कदम बढ़ाया

आओ हम सब मिल करके अब अंधकार पर हल्ला बोलें 
देखो साथ निभाने खातिर नन्हा दीपक आगे आया

जिसने अपनी राह बनाई मेहनत करके जीवन में,
उस राही को इस दुनिया में सचमुच कोई भूल न पाया 

असफलताएँ और नहीं कुछ इम्तिहान है पंकज का
लगता है जी भर कर मैंने अभी नहीं कुछ जोर लगाया                                                                                                                                                  

10 टिप्पणियाँ:

संगीता पुरी June 12, 2010 at 10:06 AM  

वाह .. बहुत प्रेरणादायक रचना !!

दिलीप June 12, 2010 at 10:07 AM  

waah sakaratmakta jeevan me safalta ke liye bahut zaruri hai...badhiya sandesh

Satish Saxena June 12, 2010 at 10:14 AM  

बेहतरीन शिक्षाप्रद, रास्ता दिखानेवाली रचना , शुभकामनायें गिरीश भाई !

राजीव तनेजा June 12, 2010 at 10:19 AM  

प्रेरणा देती सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 12, 2010 at 10:29 AM  

प्रेरणादायक खूबसूरत रचना....

विनोद कुमार पांडेय June 12, 2010 at 10:32 AM  

चाचा जी बराबर आप की ग़ज़ल पढ़ता आया हूँ शायद ही कभी कोई छूट पता हो वैसे तो हर ग़ज़ल बढ़िया होती है पर आज की ग़ज़ल हमें कुछ ज़्यादा ही खास लगी एक प्रेरणा देती हुई जो खुद में आत्मविश्वास भर दे...बहुत ही भावपूर्ण और लाज़वाब रचना ..इस भतीजे का प्रणाम स्वीकार करें

अविनाश वाचस्पति June 12, 2010 at 10:37 AM  

हवा को पीता है
तभी तो जीता है

Jandunia June 12, 2010 at 10:52 AM  

सार्थक पोस्ट

Himanshu Pandey June 13, 2010 at 9:58 AM  

सहज सरल सकारात्मक भावयुक्त रचना !
आभार ।

कडुवासच June 13, 2010 at 7:52 PM  

असफलताएँ और नहीं कुछ इम्तिहान है पंकज का
लगता है जी भर कर मैंने अभी नहीं कुछ जोर लगाया
... बेहतरीन !!!

सुनिए गिरीश पंकज को

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