''सद्भावना दर्पण'

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अभियान-गीत/ मेरी जात है हिन्दुस्तानी,

>> Monday, June 14, 2010

इस वक़्त देश में जातीय आधारित जनगणना को लेकर खूब चर्चा हो रही है. मैंने अपने एक लेख में पिछले दिनों लिखा था-''जाति न पूछो साधु की''. कबीर छः सौ साल पहले कह गए है. मैंने भी तीन दशक पहले -जब होश संभल रहा था, अपनी जाति विलोपित कर दी थी. मुझे भी लगता है, कि जाति नहीं, व्यक्ति की योग्यता को मान्यता मिले. हम सब भारतीय है, हिन्दुस्तानी है, यह सोच बड़ी है. देश में इन दिनों मेरी जाति हिन्दुस्तानी की लहर चल रही है. इस अभियान को अपना समर्थन करते हुए पेश है मेरा यह नया अभियान-गीत..

मेरी जात है हिन्दुस्तानी,
मैं तो हूँ इसका अभिमानी...

मै हिन्दू ना मुस्लिम हूँ मै,
ना हूँ सिख-ईसाई.
देश हमारा सबसे पहले,
हम आपस में भाई.
खून सभी का लाल यहाँ पर,
सब पीते नदियों का पानी.

मेरी जात है हिन्दुस्तानी...

जाति-धर्म के झगड़े कब तक,
अब तो बंधन टूटे.
कब तक हमको लड़वा कर ये,
दुष्ट सियासत लूटे.
समझदार हम हो जाये फिर,
लिक्खें मिलकर नयी कहानी.

मेरी जात है हिन्दुस्तानी... 

हिन्दुस्तान में रहने वाला,
है केवल हिन्दुस्तानी.
बने रहेंगे कब तक आखिर,
हम जातिगत अभिमानी.
मिलजुल कर इस महादेश को,
करें आज हम सच्चा ज्ञानी.

मेरी जात है हिन्दुस्तानी... 

बना रहेगा आखिर कब तक,
खंड-खंड ये सुन्दर देश.
गाँधी ने जो भारत चाहा,
नहीं बना है वो परिवेश.
नवभारत निर्माण करें हम,
हो करके अब नव-विज्ञानी..

मेरी जात है हिन्दुस्तानी,
मैं तो हूँ इसका अभिमानी...

7 टिप्पणियाँ:

विनोद कुमार पांडेय June 14, 2010 at 9:22 AM  

चाचा जी, सुंदर देशभक्ति से ओत-प्रोत एक बढ़िया गीत ..वास्तव में यही सच्चाई है सियासत ही है जो आपस में लड़ा रहा है वरना किसी को ये परवाह नही की हमारी धर्म और जाति क्या है सब आधुनिक विकास में लगे है और जाति धर्म से उपर सोच रहे है मगर सियासत वाले बार बार याद दिला देते है..

बहुत बढ़िया कविता..पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ..प्रणाम

दिलीप June 14, 2010 at 9:33 AM  

baatne ki taiyaari hai...kya galat hai man me to ham bante hi hue hain...

36solutions June 14, 2010 at 9:56 AM  

मेरी जात है हिन्दुस्तानी

वाह भईया. हृदय की आवाज है यह.

दीपक 'मशाल' June 14, 2010 at 1:27 PM  

काश हर हिन्दुस्तानी सोचे इसी कविता की तरह सर...

Udan Tashtari June 14, 2010 at 6:04 PM  

बहुत सही...इस मुद्दे पर उम्दा अभिव्यक्ति!

वाणी गीत June 14, 2010 at 7:23 PM  

नवभारत निर्माण करें हम,
हो करके अब नव-विज्ञानी..

मेरी जात है हिन्दुस्तानी,
मैं तो हूँ इसका अभिमानी...

सुंदर गीत ...संकल्प पूरे हों ..!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 14, 2010 at 8:29 PM  

खूबसूरत सोच...काश हर हिन्दुस्तानी यह सोचे

सुनिए गिरीश पंकज को

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