तरही ग़ज़ल/ वो कहीं पर भी कामयाब नहीं...
>> Tuesday, June 22, 2010
बहुत पहले रायपुर में मेरे शायर मित्रों ने एक मिसरा दिया था-''वो कहीं पर भी कामयाब नहीं'' तरही मिसरा के बारे में सुधी पाठक जानते ही है, कि एक लाइन दे दी जाती है, फिर उसको शामिल करके कुछ शेर कहने पड़ते है. उर्दू साहित्य की इस रोचक-परम्परा के कारण अनेक ग़ज़लें तैयार हो जाती है. मैं भी कुछ कोशिशें करता रहता हूँ.''वो कहीं पर भी कामयाब नहीं'' को आगे बढ़ाने की कोशिश में कुछ शेर बन गए. एक सुखद संयोग देखिये, कि ''वो कहीं पर भी कामयाब नहीं'' की अगली पंक्ति मैंने लिखी ''जिसकी आँखों में कोई ख़्वाब नहीं'' मज़े की बात, जब नशिस्त(गोष्ठी) हुई, तो एक वरिष्ठ शायर राजा हैदरी भी बिल्कुल यही पंक्ति लिख कर लाए थे. सारे लोगों को अच्छा लगा कि दो लोगो, ने एक जैसा सोचा और एक जैसे शब्द भी लिखे. शेरोशायरी में रूचि रखने वाले मित्र भी शेर कहें. क्योंकि इसमे अभी भरपूर गुंजाइश है. रदीफ़ के लिए बहुत-से शब्द अभी बाकी हैं. बहरहाल, कई साल पहले कही गयी ग़ज़ल आज अचानक मिल गयी, सो उसे प्रस्तुत करने का मोह संवरण नहीं कर पाया. देखे....
ग़ज़ल
वो कहीं पर भी कामयाब नहीं
जिसकी आँखों में कोई ख्वाब नहीं
ये जो शब है करूंगा पार इसे
हाथ दीपक है माहताब नहीं
हर सवालों का है ज़वाब यहाँ
पर तेरे हुस्न का ज़वाब नहीं
रूखी-सूखी भी खा के मस्ती है
यार माना के हम नवाब नहीं
सबके हिस्से में बस रहें खुशियाँ
आया अब तक वो इन्कलाब नहीं
वो भी इनसान है भला कैसा
जिसके जीवन में गर सवाब नहीं
है मुकद्दर भरा ये खारों से
मेरे हिस्से में इक गुलाब नहीं
ज़िंदगी है खुली किताब मेरी
आओ पढ़ लो कोई नकाब नहीं
फूल को अब निहारे क्यों दुनिया
उसमें पंकज अगर शबाब नहीं
17 टिप्पणियाँ:
"सबके हिस्से में बस रहें खुशियाँ
आया अब तक वो इन्कलाब नहीं"
बेहद उम्दा!
है मुकद्दर भरा ये खारों से
मेरे हिस्से में इक गुलाब नहीं
-वाह!! बहुत खूब..आनन्द आ गया.
ज़िंदगी है खुली किताब मेरी
आओ पढ़ लो कोई नकाब नहीं...
कवि अपनी जिंदगी ही तो बयां कर देता है कविताओं में ..
वो कहीं पर भी कामयाब नहीं
जिसकी आँखों में कोई ख्वाब नहीं ...
ख्वाब जरुर होने चाहिए ...जीने के लिए ...
अर्थपूर्ण ग़ज़ल ...आभार ...!!
चाचा जी , आज सुबह की शुरुआत आप की इस बेहतरीन ग़ज़ल को पढ़ कर रहा हूँ..बहुत बढ़िया ग़ज़ल हर पंक्तियाँ सुंदर भाव लिए हुए है...
और हाँ चाचा जी आप बहुत देर तक आपकी विचार और बातें सुनी भी ..बहुत बढ़िया लगा....प्रणाम चाचा जी..
यूँ तो हर शेर लाजवाब है लेकिन पाश का स्मरण कराता मतला खूब है
वो कहीं पर भी कामयाब नहीं
जिसकी आँखों में कोई ख्वाब नहीं
shahroz
गिरीशजी ,
क्या शे'र दिया है … तबीयत ख़ुश हो गई !
हर सवालों का है ज़वाब यहां
पर तेरे हुस्न का ज़वाब नहीं
मत्ला तो शानदार है ही ।
पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बेहतरीन ग़ज़ल...सकारात्मकता को बताती हुई
बेह्द उम्दा और खूबसूरत प्रस्तुति।
वो कहीं पर भी कामयाब नहीं
जिसकी आँखों में कोई ख्वाब नहीं
आप की सारी गजल ही लाजवाब है जी, बहुत सुंदर, बिना ख्वाब देखे कोन मंजिल तक पहुचेगा??
है मुकद्दर भरा ये खारों से
मेरे हिस्से में इक गुलाब नहीं!!!
मर्म को छूते ये शेर ,हृदय में गहरी पैठ बना लेते हैं !
और दर्द के तार छेड़ देतें हैं ! शब्द साथ छोड़ देते हैं ! आभार !
वो कहीं पर भी कामयाब नहीं
जिसकी आँखों में कोई ख्वाब नहीं
बेहतरीन ! उम्दा शेर कहे हैं भाई !!
बहुत अच्छा लगा .अशोक बजाज
...अब क्या कहें ... जय हो!!!!
ras pan kiya, lekin saras tippani apne bute ki nahi. aneko badhaiya.
बहुत बढिया गज़ल है गिरीश जी। मज़ा आ गया। वो कहीं पर भी कामयाब नहीं, जिसकी आंखों में कोई ख़्वाब नहीं। ख़्वाबों के दिये जलाये रखना ही कवि की सफलता है।
bahut hi umda rachna...
हर सवालों का है ज़वाब यहाँ
पर तेरे हुस्न का ज़वाब नहीं
क्या बात है !
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