साधो यह हिजड़ों का गाँव-१९
>> Sunday, June 27, 2010
कल कबीर जयन्ती थी. मुझे कल ही यह सामग्री दे देनी थी. लेकिन कबीर गोष्ठी में चला गया. एक दिनविलम्ब से हाज़िर हूँ. महीनो पहले मैंने ''साधो यह हिजड़ों का गाँव'' नामक श्रंखला शुरू की थी. रोज़-रोज़ व्यंग्य-पद पढ़वा कर मुझे अजीब-सा लग रहा था. इसलिए कभी ''व्यग्य-पद'', कभी ''महावीर वचनामृत'' देने लगा था. फिर उस अभियान को स्थगित करके अपनी ग़ज़लों,गीतों और नयी कविताओं के माध्यम से समकालीन दौर को खंगालने की कोशिश करता रहा लेकिन कल जब कबीर जी की जयन्ती आई तो लगा, कि यह बेहद सामयिक हो जाएगा, कि अपने कुछ व्यग्य-पद प्रकाशित करू. कबीर हमारे नायक है. हमारे यानी आपके और मेरे. हम सृजनधर्मियों के. कबीरदास जी ने जो कुछ लिखा, वह आज भी खरा है. हालात बदले नही, प्रवृत्तियाँ जस की तस हैं. इसीलिए कबीर तरोताजा है. समाज की विसंगतियों के विरुद्ध कड़े इस महान रचनाकार को पढ़कर प्रेरणा मिलती है और लगता है, कि उनकी चरण-रज ले कर हम भी उस परम्परा को आगे बढ़ाने की असफल कोशिशि करे. यही सोच कर मैंने कुछ व्यंग्य पद लिखने शुरू किये. वह सिलसिला कुछ रुक-सा गया था. लेकिन कबीर जयंती के एक दिन बाद पेश है ''साधो यह हिजड़ों का गाँव'' सीरीज के तहत और तीन नए व्यंग्य-पद. उम्मीद है आप जैसे समझदार ब्लागरों और पाठकों का स्नेह मिलेगा ही.
(58)
ये पट्ठा सरकारी है।
इसका चम्मच, उसका करछुल, बड़ी अजब बीमारी है।
बार-बार झुकता रहता है, यह पेटू-लाचारी है।
यहाँ झुका, फिर वहाँ झुकेगा, बड़ा बिज़ी अधिकारी है।
इस पर मत विश्वास करो तुम, ये खबर अखबारी है।
जो झुकता अब वही सफल है, ये फंडा बस जारी है।
कामचोर हो गये अब सारे, क्या नर औ क्या नारी है।
मर जाओ तो शान से जीयो, दुखी यहाँ ख़ुद्दारी है।
ये पट्ठा सरकारी है।
इसका चम्मच, उसका करछुल, बड़ी अजब बीमारी है।
बार-बार झुकता रहता है, यह पेटू-लाचारी है।
यहाँ झुका, फिर वहाँ झुकेगा, बड़ा बिज़ी अधिकारी है।
इस पर मत विश्वास करो तुम, ये खबर अखबारी है।
जो झुकता अब वही सफल है, ये फंडा बस जारी है।
कामचोर हो गये अब सारे, क्या नर औ क्या नारी है।
मर जाओ तो शान से जीयो, दुखी यहाँ ख़ुद्दारी है।
कविता-फविता कहाँ लगाये, चुटकुल्लों की बारी है.
जिसने पेड़ लगाये उसके घर में बड़ी-सी आरी है.
ये पट्ठा सरकारी है....
(59)
बस, चमचों का जलवा है।
स्वाभिमान को सूखी रोटी, चमचा खाता हलवा है।
उल्टी रीत चली है अब तो, घिसता जाता तलवा है।
सच कह दो तो इस बस्ती में, अकसर होता बलवा है।
नेता अफसर के है पीछे, क्योंकि नेता ठलवा है।
इक-दूजे की खुजलाओ तो, मिल जाता हर फलवा है।।
जाने का यह नाम न लेता, भ्रष्टाचार बेतलवा है।
(59)
बस, चमचों का जलवा है।
स्वाभिमान को सूखी रोटी, चमचा खाता हलवा है।
उल्टी रीत चली है अब तो, घिसता जाता तलवा है।
सच कह दो तो इस बस्ती में, अकसर होता बलवा है।
नेता अफसर के है पीछे, क्योंकि नेता ठलवा है।
इक-दूजे की खुजलाओ तो, मिल जाता हर फलवा है।।
जाने का यह नाम न लेता, भ्रष्टाचार बेतलवा है।
नेताजी की पूंछ पकड ली, सुन्दर बना 'महलवा' है.
बस, चमचों का जलवा है।
(60)
मिल जाए कुरसी इक बार।
तर जाएगी भावी पीढ़ी, मस्त चले अपना व्यापार।
बस सफेद कपड़े तुम पहरो, लेकिन काला कारोबार।
राजनीति अब चोखा धंधा, बैठो कहीं भी टाँग पसार।
जो नेता जितना है मीठा, मारे उतना बड़ा 'लबार'। (यानी 'झूठ')
कल जो पैदल दिखता था, पास है ढेरों मोटर कार।
(60)
मिल जाए कुरसी इक बार।
तर जाएगी भावी पीढ़ी, मस्त चले अपना व्यापार।
बस सफेद कपड़े तुम पहरो, लेकिन काला कारोबार।
राजनीति अब चोखा धंधा, बैठो कहीं भी टाँग पसार।
जो नेता जितना है मीठा, मारे उतना बड़ा 'लबार'। (यानी 'झूठ')
कल जो पैदल दिखता था, पास है ढेरों मोटर कार।
झूठ, ठगी व्यभिचार यही है, राजनीति का शिष्टाचार।
सेवा कम मेवा है ज्यादा, जीतो चाहे, जाओ हार.
सेवा कम मेवा है ज्यादा, जीतो चाहे, जाओ हार.
जितना नकली उतना हिट है, फिल्म चले बस धुँआधार.
एक भाई उद्योग लगाये, दूजा खोले 'वाइन-बार'.
राजनीति में बचकर जाना, यहाँ घुस गए हैं बटमार.
मिल जाए कुरसी इक बार...
9 टिप्पणियाँ:
behatreen !
...क्या बात है गिरीश भाई ... बाजा फ़ाड दिये हो!!!
बहुत बढिया गिरीश भैया।
कबीर जयंती की शुभकामनाएं
वाह वाह वाह। बस इतना ही कि क्या कहने। मजा आ गया। डंके की चोट पर टाइप्स। मेरी बधाई स्वीकार करें। बहुत शानदार।
साधों यह हिजड़ों का गाँव !!! व्यंग्य की भारी बौछार है ! पर सचाई को देखते हुए निराशा होती है !अब स्थिति नियन्त्रण से बाहर है ! दूसरे देश आगे बढ़ रहें हैं !और हम नये नये कीचड़ में डुबकी लगा रहें है ! आपका व्यंग्य बहुत मारक होता है !ये कविताएँ बच्चों के कोर्स में होनी चाहिए !आभार !
as usual उम्दा !!
सरकारी तंत्र और राजनीति पर करारा व्यंग....बहुत बढ़िया
धारधार रचना के लिए आपको बधाई।
चाचा जी आज कल आपको पढ़ने से ज़्यादा आपको सुनना ज़्यादा अच्छा लगता है..आनंद जी के बारे में भी जान कर बहुत अच्छा लगा...बढ़िया संयोजन...हम ऐसे आपको सुनना पसंद करते है...सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद प्रणाम चाचा जी
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