नई ग़ज़ल/ है बड़ा भूखा सभी को एक दिन यह खाएगा...
>> Monday, August 16, 2010
जीवन के उतार-चढ़ाव को लेकर कई बार कुछ लोगों को निराशा होती है, लेकिन जो सच है, उसका सामनाकरना ही चाहिए. सफलता-असफलता आगे-पीछे होती रहती है. कभी कोई जीवन के केंद्र मे रहता है तो कभी हाशिये पर भी चला जाता है. हमेशा कोई शीर्ष पर नहीं रहता. एक दिन उसे किनारे भी लगना पड़ता है.जीवन के इसी रंग पर आज ही कहे (लिखे) गए कुछ शेर समर्पित हैं आज- देखे,
आज है जो दृश्य में नेपथ्य मे कल जाएगा
डूबता है सूर्य लेकिन वह दुबारा आएगा
हर घड़ी रहती नहीं सत्ता उजाले की यहाँ
वह सुखी होगा जो अपने आप को समझाएगा
वक़्त है निर्मम बहुत यह मानता बिल्कुल नहीं
है बड़ा भूखा सभी को एक दिन यह खाएगा
जितना वैभव पा गया तू अब संजो कर रख ज़रा
और के चक्कर में बाकी क्या पता मिट जाएगा
तूने जो बेहतर रचा है व्यर्थ नहीं हो पाएगा
है सृजन दमदार तो हर युग उसे दुहराएगा
ज़िंदगी का गीत गर सुन्दर बना तो देखना
बाद में तेरे इसे पंकज कोई तो गाएगा.
12 टिप्पणियाँ:
mukesh yadav said....
पंकज जी एक अच्छी गजल ,बधाईया
एक अच्छी पोस्ट लिखी है आपने ,शुभकामनाएँ और आभार
आदरणीय
हिन्दी ब्लाँगजगत का चिट्ठा संकलक चिट्ठाप्रहरी अब शुरु कर दिया गया है । अपना ब्लाँग इसमे जोङकर हिन्दी ब्लाँगिँग को उंचाईयोँ पर ले जायेँ
यहा एक बार चटका लगाएँ
आप का एक छोटा सा प्रयास आपको एक सच्चा प्रहरी बनायेगा
।
बहुत आशावादी और सकारात्मक सोच लिए गज़ल ....आभार
गिरीश जी,
बहुत अच्छी गज़ल.
आपकी व्यंग्य रचनाएँ भी अच्छी लगीं.
एक -एक पंक्ति सत्य के करीब ...!
क्या बात है.....भवानी भाई का अंदाज़ और परसाई की तीक्ष्णता !!
भैया आपका हर शेर आज अमर है..दरअसल यही रचना अमर होती है जो सच के उजाले में रौशन हो.और ईमान की चाहरदीवारी से महफूज़.
हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
पर ज़रूर पढ़ें:
काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
तूने जो बेहतर रचा है व्यर्थ ना हो पाएगा
है सृजन दमदार तो हर युग उसे दुहराएगा
this is optimism.
कितनी ऊंचाई दे जाते हैं आप अपनी रचना को.
pranam.
लफ्जों में लफ्ज तो जमा देगा 'मजाल',
पर उनसा असर कहाँ आएगा?!
बहुत ही सुंदर गजल जी. धन्यवाद
तूने जो बेहतर रचा है व्यर्थ ना हो पाएगा
है सृजन दमदार तो हर युग उसे दुहराएगा
.... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!
"तुने तो बेहतर रचा है व्यर्थ न हो पाएगा
है सृजन दमदार तो हर युग उसे दुहराएगा"
वाह ....लाजवाब रचना है.... पंकज जी.
संसार में सुख और दुख आते रहते है और मनुष्य को इससे परे अपने मनुष्य जीवन को सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए ताकि दुनिया से जाते जाते और लोगों को कुछ दे कर जाए.....
चाचा जी बहुत सुंदर ग़ज़ल...आत्मविश्वास बढ़ाती हुई एक शिक्षापरक रचना..धन्यवाद
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