नई ग़ज़ल/ अगर रोता है बच्चा छातियों में दूध आता है
>> Wednesday, August 18, 2010
माँ पर बहुत-सी कविताएँ लिखी गई है.सदियों से लिखी जाती रही है. शायद भविष्य में भी लिखी जायेंगी. माँ है ही ऐसी शख्सियत.. अपने ब्लॉग पर मैं इसके पहले भी माँ पर, धरती माँ पर और गौ माता पर कविताएँ लिखी है. मुझे लगता है, एक लेखक को कुछ इस तरह के काम भी करते रहने चाहिए. इस तथाकथित नए ज़माने में ''माँ-वां'' पर लिखना पिछडापन भी कहलाता है. फिर भी मै ''पिछड़ा'' हुआ बना रहना चाहता हूँ. और समय-समय पर हर माँ पर (यानी धरती, गंगा, गौ) लिखना चाहता हूँ. आज मै उस माँ पर फिर एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ, जो मानव की जननी है. देखें, शायद कुछ शेर आपको पसंद आ जाएँ.
इसे अम्मी कहो, मम्मी कहो माता तो माता है
ये है देवी कि जिसके सामने सिर झुक ही जाता है
बड़ी ''माडर्न'' हो जाए मगर माँ कब बदल पाई
अगर रोता है बच्चा छातियों में दूध आता है
वो रहती है हमारे साथ हरदम इक दुआ बन कर
लगे जब चोट कोई लब पे माँ का नाम आता है
बड़ी तकदीर वाले हैं वो जिसके साथ माँ रहती
असल में माँ का बरकत से बड़ा दिलचस्प नाता है
कभी गैया, कभी गंगा, कभी धरती हमारी माँ
मगर सबसे बड़ी है वो जो अपनी जन्मदाता है
जो माँ का दूध पीकर के भी माँ की गलियाँ देता
न जाने किस जनम में किस तरह वो मुक्ति पाता है
अगर माँ को पुकारोगे बलाएँ टल ही जाएंगीं
ये है नुस्खा पुराना क्यों न तू भी आजमाता है
बड़ी तकदीर खोटी है कि जिसकी माँ नहीं पंकज
मित्रो, २२ अगस्त तक गोवा में रहूँगा. साहित्य अकादेमी, दिल्ली की बैठक है और पुरस्कार वितरण समारोह है. २३ को दोपहर को लौट आऊँगा. रात को तब बात होगी. तब तक के लिये...विदा ले रहा हूँ.
15 टिप्पणियाँ:
कभी गैया, कभी गंगा, कभी धरती हमारी माँ
मगर सबसे बड़ी है वो जो अपनी जन्मदाता है,,
बहुत भावपूर्ण रचना..चाचा जी प्रणाम..
बड़ी'माडर्न'हो जाए मगर माँ कब बदल पाई
अगर रोता है बच्चा छातियों में दूध आता है
वाह बहुत गहरी बात कही है भैया आपने।
ममत्व ही मां और बच्चे को जोड़ता है।
आभार
गिरीश जी
नमस्कार तो हमेशा करता हूं आपको ,
आज तो प्रणाम करने को मन कर रहा है ।
क्या लिखा है आपने आज तो… !
एक तो मेरी पसंद का विषय
दूसरे मेरी पसंद की बह्र
फिर इतनी शिल्पगत परिपक्वता
इसे अम्मी कहो, मम्मी कहो माता तो माता है
ये है देवी कि जिसके सामने सिर झुक ही जाता है
वो रहती है हमारे साथ हरदम इक दुआ बन कर
लगे जब चोट कोई लब पे मां का नाम आता है
कभी गैया, कभी गंगा, कभी धरती हमारी मां
मगर सबसे बड़ी है वो जो अपनी जन्मदाता है
अगर मां को पुकारोगे बलाएं टल ही जाएंगीं
ये है नुस्खा पुराना क्यों न तू भी आजमाता है
मै ''पिछड़ा'' हुआ बना रहना चाहता हूं
भाईजी , आप की तरह सभी ''पिछड़ा''बनने के रास्ते पर आ जाए तो धरती स्वर्ग हो जाए ।
पूज्य माताश्री के चरणों में शत शत वंदन !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सुन्दर रचना, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
सुन्दर रचना , बढ़िया पोस्ट.......पर ज़रा यह भी देखें !
नेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ के दिन किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।
बड़ी'माडर्न'हो जाए मगर माँ कब बदल पाई
अगर रोता है बच्चा छातियों में दूध आता है
achchha hai
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! खासकर ये पंक्तियाँ दिल को छू गयी!
बड़ी तकदीर वाले हैं वो जिसके साथ माँ रहती
असल में माँ का बरकत से बड़ा दिलचस्प नाता है..
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
बस माँ की गोदी, और प्यार की थपकी,
बुरा वक़्त 'मजाल' और क्या चाहता है.
bahut khoobsurat maa ki tarah nichhal rachna
आप की कविता बहुत अच्छी लगी, अति सुंदर भाव लिये है आप की कविता. धन्यवाद
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बहुत ही गहन संवेदनशील अभिव्यक्ति ...धन्यवाद !
जो माँ का दूध पीकर के भी माँ की गलियाँ देता
न जाने किस जनम में किस तरह वो मुक्ति पाता है
अगर माँ को पुकारोगे बलाएँ टल ही जाएंगीं
ये है नुस्खा पुराना क्यों न तू भी आजमाता है
बड़ी तकदीर खोटी है कि जिसकी माँ नहीं पंकज
बेचारा ठोकरें ही ठोकरें हर बार खाता है....
बहुत बढिया !!
जो माँ का दूध पीकर के भी माँ की गलियाँ देता
न जाने किस जनम में किस तरह वो मुक्ति पाता है
लाजवाब ग़ज़ल है ...
ये शेर तो ख़ास कर बहुत ही उम्दा है ... दिल में उतार गया ....
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