''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल/ इक रोज कोई आपसा मिल जाएगा..

>> Wednesday, August 25, 2010

एक सप्ताह बाद फिर एक नई ग़ज़ल के साथ हाज़िर हूँ. देखें, शायद जमे सुधी पाठकों को.

और क्या मिलना था मुझको और क्या मिल जाएगा
तुम चले आओ तो मुझको हौसला मिल जाएगा

खोजता मैं फिर रहा था एक दिन भगवान् को 
क्या पता था नैन में तेरे पता मिल जाएगा

बिन तुम्हारे ज़िंदगी ये डगमगाती नाव है 
तुम हमारे साथ हो तो नाखुदा मिल जाएगा(नाखुदा: नाविक)

हो गया हूँ गुम मगर मैं जानता हूँ एक दिन
चलते-चलते फिर मेरा वह कारवां मिल जाएगा

ज़िंदगी वैसे तो हर पल है पहाड़ों का सफ़र 
साथ गर तेरा मिले तो बस मज़ा मिल जाएगा

प्यार अपनी है इबादत, प्यार है आराधना 
तयशुदा है एक दिन मुझको खुदा मिल जाएगा

हर घड़ी मुस्कान का दीपक जला कर तुम रखो
क्या पता किस मोड़ अंधा हादिसा मिल जाएगा

टूट कर बिखरा नहीं मैं जानता हूँ सत्य को
मिल गया कोई बुरा तो इक भला मिल जाएगा

मुझको अपनी खुशनसीबी पर भरोसा है बहुत 
फिर मुझे इक रोज कोई आपसा मिल जाएगा

है अनोखा देश इसकी खासियत की क्या कहें 
दूध मुश्किल है यहाँ पर मैक़दा मिल जाएगा

यह शहर है हादसों की बदनसीबी है यहाँ 
हर कोई पंकज यहाँ तो ग़मज़दा मिल जाएगा

13 टिप्पणियाँ:

विनोद कुमार पांडेय August 25, 2010 at 9:40 AM  

वाह चाचा जी बहुत खूब....ये ग़ज़ल भी बहुत सुंदर...उम्मीद है यात्रा भी बढ़िया रहा होगा?? प्रणाम,..

दीपक बाबा August 25, 2010 at 9:45 AM  

बहुत खूब दद्दा ........

यह शहर है हादसों की बदनसीबी है यहाँ
हर कोई पंकज यहाँ तो ग़मज़दा मिल जाएगा

गमजदा तो हम भी है ... पर गज़ल नहीं लिखी जाती

ASHOK BAJAJ August 25, 2010 at 9:56 AM  

बहुत बढ़िया

ब्लॉ.ललित शर्मा August 25, 2010 at 10:24 AM  

मुझको अपनी खुशनसीबी पर भरोसा है बहुत
फिर मुझे इक रोज कोई आपसा मिल जाएगा

बस आप मिल गए है।
आभार

शिवम् मिश्रा August 25, 2010 at 7:55 PM  

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

संगीता स्वरुप ( गीत ) August 25, 2010 at 9:08 PM  

टूट कर बिखरा नहीं मैं जानता हूँ सत्य को
मिल गया कोई बुरा तो इक भला मिल जाएगा

बहुत अच्छी गज़ल ..

arvind August 26, 2010 at 2:04 AM  

प्यार अपनी है इबादत, प्यार है आराधना
तयशुदा है एक दिन मुझको खुदा मिल जाएगा
....bahut sundar...bahut acchhi gajal.

Yogesh Verma Swapn August 26, 2010 at 2:38 AM  

bahut pyari gazal hai, pankaj ji , bahut din baad aaj net par aya aur aapko padhkar ana vasool hogaya. bahut achcha laga. badhaai.

राजकुमार सोनी August 26, 2010 at 8:42 AM  

हमेशा की तरह शानदार गजल
कई दिनों से आपसे बात ही नहीं हो पा रही है
आता हूं जल्द ही

वाणी गीत August 26, 2010 at 7:19 PM  

टूट कर बिखरा नहीं मैं जानता हूँ सत्य को
मिल गया कोई बुरा तो इक भला मिल जाएगा

यही आशावादिता जीवन के हर संघर्ष को ख़ुशी ख़ुशी झेलने की ताकत देती है ...
उषा की प्रथम किरण सी नया उत्साह लिए बहुत भायी यह ग़ज़ल..!

Subhash Rai August 26, 2010 at 9:30 PM  

आइये जिद का लबादा फेंककर आगे बढ़े
जिन्दगी को इक नया सा फलसफा मिल जायेगा.
बधाई भाई गिरीश, आप के साथ और भी हैं मुसाफिर इसी राह के.

Anonymous August 28, 2010 at 5:46 AM  

नाखुदा ,अच्छा प्रयोग,गजलोँ कि क्या तारीफ करुँ ,वो तो खुद ही लाजवाब है

ट्विटर पर हमारे ग्रुप को ज्वाइन करेँ twitter.com/bhojpurikhoj

अर्चना तिवारी August 29, 2010 at 5:13 AM  

पूरी की पूरी ग़ज़ल भावविभोर कर देने वाली है..पा र्कुछ शेर प्रभाव छोड़ गए..
१-टूट कर बिखरा नहीं मैं जानता हूँ सत्य को
मिल गया कोई बुरा तो इक भला मिल जाएगा

२-है अनोखा देश इसकी खासियत की क्या कहें
दूध मुश्किल है यहाँ पर मैक़दा मिल जाएगा

सुनिए गिरीश पंकज को

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