ग़ज़ल/ बस चलना है...यानी लिखना
>> Sunday, August 29, 2010
ऐसी एक जवानी लिखना
तुम आँखों में पानी लिखना
दुहराती हैं जिसको सदियाँ
ऐसी कोई कहानी लिखना
इंसां बन कर ही रहना है
खुद को तू मत ज्ञानी लिखना
देख ज़ुल्म को चीख जरा तू
या जीवन बेमानी लिखना
दूजे की गलती देखी है
अपनी भी नादानी लिखना
वो घमंड में क्यों डूबा है
ये जीवन है फानी लिखना
राणा का विष अमृत होगा
मीरा इक दीवानी लिखना
कविता को वो युग लौटेगा
तू कबिरा की बानी लिखना
कलम हमारी है गर पूजा
बातें ना बचकानी लिखना
अगर लिख रहा है तू पावस
टूटी छप्पर-छानी लिखना
लोकतंत्र गर ज़िंदा है तो
न राजा, ना रानी लिखना
जब तक ज़िंदा है तू पंकज
बस चलना है...यानी लिखना
16 टिप्पणियाँ:
दुहराती हैं जिसको सदियाँ
ऐसी कोई कहानी लिखना
वह भईया. शानदार ग़ज़ल. प्रणाम.
दूजे की गलती देखी है
अपनी भी नादानी लिखना
बहुत बढ़िया रचना गिरीश जी...आभार
अच्छी ग़ज़ल है .....आभार
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/
एक एक शब्द दिल की गहराइयोँ मे बस गया है ।
आपकी ये गजल ,गजल नही एक संदेश है उस हर युवा के लिए जो कुछ करना चाहता है ,आप वो इबारत लिख रहे हैँ जिसे हर युग मे दुहराया जाएगा ।
मै भी एक कहानी लिखूँगा
न राजा न रानी लिखूँगा
जो चिख-2 कर पुकारता है वतन,
हर वो जिन्दगानी लिखूँगा ।
जिसे देखकर चलते रहेँ लोग ,ऐसी एक लिक निशानी लिखूँगा ।
इंसां बन कर ही रहना है
खुद को तू मत ज्ञानी लिखना
बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
कलम हमारी है गर पूजा
बातें ना बचकानी लिखना
अगर लिख रहा है तू पावस
टूटी छप्पर-छानी लिखना
खूबसूरत गज़ल...सीख देती हुई
हर शेर जबरदस्त!! वाह! मजा आ गया.
नया तो क्या लिखोगे 'मजाल',
हाँ, पर अपनी जुबानी लिखना.
खूबसूरत गज़ल...सीख देती हुई
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बहुत ही बेहतरीन रचना!
जब तक ज़िंदा है तू पंकज
बस चलना है...यानी लिखना ......behatareen ghajal...aabhaar.
gagar me sagar jaisi kawita. sagar me jahaan jaisi kawita aur jahaan me ek alag pahchan kawita. prerak margdarshak kawita
जब तक ज़िंदा है तू पंकज
बस चलना है...यानी लिखना
जीवन चलने का नाम,
चलते रहो सुबह शाम !
रचते रहो नए आयाम !
आपको प्रणाम ! प्रणाम !!
बेहतरीन रचना ! मन प्रसन्न हो गया !
बहुत बहत बधाई .............................
उम्दा गजल के लिए गिरीश भैया आभार
खोली नम्बर 36......!
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