एक ग़ज़ल गाय पर / जब मरती गाय...
>> Friday, September 3, 2010
लेखन मेरे लिये अभियान है. छवि चमकने की मैंने कभी नहीं सोची. मुझे यही लगता है, कि कुछ ऐसा लिखूं कि लोकमंगल हो. मेरे लेखन से किसी की सोच बदले. किसी का मन आनंदित हो. बहरहाल,क्या होता है, इसका पता नहीं. पर लिखना मेरा कर्त्तव्य है. यही मं कर लिखता जाता हूँ. कल जन्माष्टमी थी. खूब धूम से मनी यहाँ, कुछ लोगो ने गाय की पूजा की. उत्सव मनाया. लेकिन सैकड़ों गायें सड़कों पर लावारिस घूमती रही. कुछ हिन्दू ईमानदारी से काम नहीं करना चाहते. उनको पाखण्ड में ही बड़ा मज़ा आता है. यही कारण है कि जिस गाय की वे पूजा करते है, उसी गाय को भूखा भी रखते है. बहरहाल,गाय पर एक ग़ज़ल पेश है. बहुत पहले दो पंक्तियाँ कहीं पढ़ी थी. जिए कौन जब मरती गाय/ मरे कौन जब जीती गाय. लगा इस दो पंक्ति को आगे बढ़ाया जा सकता है, सो पेश है,
''मरे कौन जब जीती गाय
जिए कौन जब मरती गाय''
जीते-जी कितना कुछ देती
काम अनोखे करती गाय
बस केवल पापी हाथों से
रह-रह कर है बचती गाय
अंग-अंग जिसका फलदायी
देवी बनी उतरती गाय
उसको मालामाल करे है
जिसके घर में रहती गाय
दूध पियो और काटो उसको
इसी भाव से डरती गाय
हमें संवारा हर पल उसने
खुद न कभी सवरती गाय
कहाँ गया है उसका चारा
दर-दर आज विचरती गाय
पाल-पोस कर इसको देखो
कष्ट सभी के हरती गाय
मेरी-तेरी सबकी माता
लगती जैसे धरती गाय
12 टिप्पणियाँ:
गावो विश्व मातर:
उम्दा गजल के लिए आभार
लेखन तो लोकमंगल के लिए ही होना चाहिए -सुन्दर सुरभि रचना
बेहतरीन लेखन के बधाई
पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
माँ के द्वारा पहली रोटी,
आज भी वास्ते बनती गाय !
सुन्दर तुकबंदी ...
बिल्कुल सही कह रहे हैं मगर आज जो हश्र हो रहा है वो भी किसी से छुपा नही है………………सुन्दर लेखन्।
... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय !!!
vichaarniy post !
बहुत सार्थक और प्रभावशाली रचना.
भाव विहल कर दिया भईया.
प्रणाम और आभार.
मेरी-तेरी सबकी माता
लगती जैसे धरती गाय ..
चाचा जी आज तो दिल भर आया गाय की महिमा आप ने बेहतरीन ढंग से कही इस ग़ज़ल में सुंदर प्रस्तुति.....जो लोग गऊ माता के साथ अत्याचार करते है उन्हे भगवान कभी माफ़ नही करेगा...
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई...प्रणाम चाचा जी
बहुत खूब लिखा है ,आपने । बधाई । "जिनके मन है बसती गाय , उनको लक्ष्मी सदा सहाय ।
गाय को गज़ल का विषय बनाना अद्भुत है भई ।
Post a Comment