''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल/ जख्म दिया करते हैं फिर थोड़ा मुसकाते हैं

>> Wednesday, September 8, 2010

पाँच दिन बाद फिर हाज़िर हूँ. यानी फिर वही दिल लाया हूँ. पेश है बिल्कुल नई ग़ज़ल.देखे शायद इन शेरों में सच्चे लोगों का दर्द उभरा हो शायद. भले लोगों को दुर्जन हमेशा तकलीफ ही देते है. लेकिन अनुभव यही बताता है कि दुर्जन नष्ट हो जाते हैऔर सज्जन महकते रहते है. अपने सद्गुणों के कारण बने रहते हैं. देखे कुछ शेर---

पहले जख्म दिया करते हैं फिर थोड़ा मुसकाते हैं
ऐसे ही कुछ लोग यहाँ केवल शैतान कहाते हैं. 

अपने दुर्गुण देख न पाए कोस रहे हैं दुनिया को
ऐसे ही नकारे इक दिन मिट्टी में मिल जाते हैं. 

तन से वह तो सुन्दर है पर मन से कितना काला है
तन-मन जिनका सुन्दर-निर्मल वे इंसां कहलाते हैं.

जो केवल निंदा करता है वह इक दिन मर जाता है
छुद्र नहीं, केवल सर्जक इक दिन इतिहास बनाते हैं.

पहले हम काबिल बन जाएँ फिर सबको पथ दिखलाएँ 
कैसी है वो बस्ती जिसमें अंधे राह दिखाते हैं

मैंने सच्ची बात कही है शायद कुछ कड़वी होगी
सेहत भली रहे इस खातिर कड़वी दवा पिलाते हैं

शब्दों के हम आराधक हैं अपनी राह बनाते हैं
खून सुखाया जाग-जाग कर फिर परसाद चढ़ाते हैं. 

निंदा ही जिनका जीवन है उनको माफ़ करो पंकज 
जो हैं दिल से बड़े वही दुनिया को प्यार लुटाते हैं.

19 टिप्पणियाँ:

Majaal September 8, 2010 at 7:53 AM  

औरों का शैतान, तो पता नहीं कहाँ है,
अनुभव तो हमें ही दर्पण दिखाते है !

सुलेखन ...

ब्लॉ.ललित शर्मा September 8, 2010 at 8:00 AM  

बहुत बढिया गजल कही है भैया
एकदम सम सामयिक है,वर्तमान पर निशाना लगाया।

इसीलिए कहा भी गया है,

"दु्र्जनं प्रथम वन्दे सज्जनम् तदनंतरम्।"

संगीता स्वरुप ( गीत ) September 8, 2010 at 8:01 AM  

मैंने सच्ची बात कही है शायद कुछ कड़वी होगी
सेहत भली रहे इस खातिर कड़वी दवा पिलाते हैं

सही बात कहती सुन्दर गज़ल

समयचक्र September 8, 2010 at 8:01 AM  

जो केवल निंदा करता है वह इक दिन मर जाता है
छुद्र नहीं, केवल सर्जक इक दिन इतिहास बनाते हैं.

बहुत बढ़िया शेर सर .... आभार

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') September 8, 2010 at 9:20 AM  

"मैंने सच्ची बात कही है शायद कुछ कड़वी होगी
सेहत भली रहे इस खातिर कड़वी दवा पिलाते हैं "
कितना सुन्दर ग़ज़ल कहा है भईया. बधाई और प्रणाम.

राज भाटिय़ा September 8, 2010 at 9:56 AM  

वाह पंकज जी बहुत सुंदर गजल ओर सभी शेर धन्यवाद

विनोद कुमार पांडेय September 8, 2010 at 7:15 PM  

अपने दुर्गुण देख न पाए कोस रहे हैं दुनिया को
ऐसे ही नकारे इक दिन मिट्टी में मिल जाते हैं

बेहतरीन..

आज सच्चाई यही है लोग अपने अंदर झाँकते नही और दूसरों को शिक्षा देते है..बहुत सही कटाक्ष..हर लाइन एक सीख देते हुए आयेज बढ़ती है बहुत ही सुंदर एवं सामाजिक रचना...चाचा प्रणाम

Udan Tashtari September 8, 2010 at 8:08 PM  

"मैंने सच्ची बात कही है शायद कुछ कड़वी होगी
सेहत भली रहे इस खातिर कड़वी दवा पिलाते हैं "


गज़ब!

arvind September 8, 2010 at 11:59 PM  

निंदा ही जिनका जीवन है उनको माफ़ करो पंकज
जो हैं दिल से बड़े वही दुनिया को प्यार लुटाते हैं.
.....bahut sundar gajal..prasansaniy...aabhaar.

कडुवासच September 9, 2010 at 6:37 AM  

... behatreen gajal !!!

अनामिका की सदायें ...... September 9, 2010 at 11:11 AM  

आप की रचना 10 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com


आभार

अनामिका

Kusum Thakur September 9, 2010 at 4:54 PM  

बेहतरीन ग़ज़ल ......बहुत बहुत बधाई !!

विवेक रस्तोगी September 9, 2010 at 7:03 PM  

एक से बढ़कर एक शेर, मजा आ गया।

DR.ASHOK KUMAR September 10, 2010 at 6:32 AM  

पंकज जी नमस्कार! बहुत ही प्रभावशाली गजल कही हैँ आपने। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा हो किसी सफर मेँ............. गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।

ZEAL September 10, 2010 at 9:17 AM  

.
निंदा ही जिनका जीवन है उनको माफ़ करो पंकज
जो हैं दिल से बड़े वही दुनिया को प्यार लुटाते हैं.

Pankaj ji,
बहुत खरी-खरी लिख दी। बेहद पसंद आयी।
आभार
.

Anonymous September 11, 2010 at 12:22 AM  

मैंने सच्ची बात कही है शायद कुछ कड़वी होगी
सेहत भली रहे इस खातिर कड़वी दवा पिलाते हैं
!!!!!!
कबीर बनने की दिशा में अग्रिम बधाई !!!

JanMit September 11, 2010 at 12:42 AM  

शब्दों के हम आराधक हैं अपनी राह बनाते हैं
खून सुखाया जाग-जाग कर फिर परसाद चढ़ाते हैं.
.. मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए कोटिशः आभार एवं
1 हरितालिका तीज ,
2.नवाखाई .........
3.इदुल फितर......
4 गणेश चतुर्थी ..
......
इन सभी पावनपर्वो की ....
आपको ढेर सारी बधाई ..
एवं शुभकामनाए ......

दीपक 'मशाल' September 11, 2010 at 4:21 AM  

आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..

रंजना September 13, 2010 at 3:33 AM  

सत्य कहा....
बहुत बहुत सुन्दर रचना.....

सुनिए गिरीश पंकज को

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