नई ग़ज़ल/ निकलेंगे फिर जुल्म मिटाने
>> Sunday, September 12, 2010
जो प्रतिबद्ध हो कर लिखते है, उनके लिये रचना परिवर्तन का माध्यम होती है.कोशिश करता हूँ कि कुछ ऐसा लिखूं,कि लोग उसे कुछ समय तक तो याद रख सकें. लेकिन ऐसा सौभाग्य कम लोगों को ही मिल पाता है. फिर भी मेरा काम है लिखना. लिखते रहना. कभी कविता, कभी ग़ज़ल, कभी व्यंग्य. विधा कोई भी हो, लक्ष्य है वैचारिक परिवर्तन. बहरहाल, फिर कुछ दिन विराम के बाद हाजिर हूँ एक नई ग़ज़ल के साथ. पता नहीं ये आपको कितनी पसंद आती है.
फूल सरीखे अच्छे लोग
बन कर खुशबू बहते लोग
निकलेंगे फिर जुल्म मिटाने
ले सूरज के झंडे लोग
प्यार बाँटने वाले क्या हैं
हर युग में जो चमके लोग
वो सुगंध जो ख़त्म न होती
ऐसे भी कुछ रहते लोग
नेकी रहती सब पे भरी
बात पते की कहते लोग
धारा के विपरीत हमेशा
बहते हैं कुछ बहके लोग
मर कर मर जाते हैं झूठे
जिंदा रहते सच्चे लोग
चुप रहते हैं अकसर देखा
अपनों से दुःख सहके लोग
इक दिन मिल जायेगी मंजिल
सोच यही बस चलते लोग
मत घबराना संघर्षों से
बनते हैं कुछ तप के लोग
कायरपन की बात न पूछो
वार करे हैं छिप के लोग
निर्मल मन वालों तक पंकज
आ जाते है चल के लोग
8 टिप्पणियाँ:
ऐसी उम्दा गज़लें आपकी
बार बार हैं पढ़ते लोग.
आप सूर्य बन चमको भईया
दुआ यही सब करते लोग.
... behatreen ... laajawaab !!!
नयी चेतना सी जागृत करती सुन्दर गज़ल
ग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार
क्षमा वीरस्य भूषणं .
aapki yah rachna nai chetanaa jaagrit karati hai....behtarin..laajavaab
सोच को एक नई दिशा देती रचना।
पढ़कर अभिभूत हूँ, टिपण्णी करने का सहस तो कर ही नहीं सकता बस आपको प्रणाम करता हूँ.................!!
अन्दर अपने हमको अक्सर,
मिलते कैसे कैसे लोग ...
सुन्दर रचना ...
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