नई ग़ज़ल,/ बढ़े बैंक-बैलेंस तुम्हारा
>> Tuesday, September 21, 2010
बहुत दिनों के बाद फिर हाज़िर हूँ आपकी अदालत में. आज ही एक नई ग़ज़ल कही है. सो, आपकी सेवा में प्रस्तुत है. देखें..शायद एकाध शेर पसंद आ जाये..सौभाग्य होगा मेरा.
गुस्सा कम हो प्यार ज़ियादा
सुन्दर हो संसार ज़ियादा
करना हो तो प्यार करो तुम
क्यों करना तकरार ज़ियादा
प्यार वही होता है सच्चा
बढ़ता जो हर बार ज़ियादा
चुभन मिली जिसको काँटों की
फूलों का हक़दार ज़ियादा
ऊपर वाला मेहरबान है
तो फिर बनो उदार जियादा
बढ़े बैंक-बैलेंस तुम्हारा
दोस्त बनें दो-चार ज़ियादा
कट जाते हैं अपने सारे
गर नफ़रत की धार ज़ियादा
रिश्ते भी अब हुए बिकाऊ
घर कम है बाज़ार ज़ियादा
बोल अगर हों मीठे पंकज
जीवन हो रसदार ज़ियादा
13 टिप्पणियाँ:
आदरणीय गिरीश पंकज जी
नमस्कार !
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई !
इस शे'र ने दिल ले लिया …
प्यार वही होता है सच्चा
बढ़ता जो हर बार ज़ियादा
बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इस कदर बेहतरीन लिखेंगे पंकज ,
होगी आगे खुदी से तकरार जियादा
nice
अच्छी पंक्तिया लिखी है ...
इसे भी पढ़े और कुछ कहे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/86.html
har sher laajavaab
badhaaI
बहुत अच्छी है ग़ज़ल
ये शेर बहुत भाया
चुभन मिली जिसको काँटों की
फूलों का हक़दार जियादा
http://veenakesur.blogspot.com/
सुंदर गजल है भाई साहब
कई दि्नों की गैर हाजरी के बाद
"प्यार वही होता है सच्चा
बढ़ता हो हर बार जियादा"
बहुत खूब ...
भई इस गज़ल को बैंक वालो को सुनाया या नही राजभाषा मास में ?
सही है भाई ....
हाल ये है अपने गुलशन का
फूल हैं कम और ख़ार ज़िआदा
फ़ितरत देख यहाँ मित्रों की
दोस्ती कम .. व्यापार ज़िआदा
बहुत अच्छी बातें बताती सुन्दर गज़ल ..
प्यार वही होता है सच्चा
बढ़ता जो हर बार जियादा
true !
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