नई कविता/ भेडियों से सावधान...
>> Wednesday, September 22, 2010
सफ़ेद खरगोशो, भेडियों से सावधान...
(ज़रूरी नहीं, कि ये साफ़ किया जाये कि भेडिये कौन है.
मीडिया, धर्म या मज़हब और समाज के कुछ भेडिये...?
बड़ा व्यापक है यह शब्द...खतरनाक है यह शब्द भेड़िया...
देखा जाय तो भेड़िया और शेर से भी ज्यादा )बड़ा व्यापक है यह शब्द...खतरनाक है यह शब्द भेड़िया...
इस डरे-सहमे समय में
कुछ और लोग हमें डरा रहे हैं बार-बार..
लगातार, कि बच के रहना
आ सकते हैं भेडिये
आतंक फ़ैलाने.
भेडिये जिनकी कोई जात नहीं होती..
भेडिये जिनकी कोई पात नहीं होती.
भेडिये जिनका कोई नहीं उसूल..
भेडिये जिनका सपना है लहूलुहान सड़कें
और
निष्प्राण-से होते जा रहे पूजास्थल या इबादतगाहें
भेडिये चाहते हैं केवल लहू पीना.
इसलिए बनाते है ऐसा माहौल कि
सफ़ेद खरगोश आपस में ही भिड कर
मारे जाते है.
खरगोशों को समझ में नहीं आती भेडियों की चालाकियां..
सियारों का भ्रम पैदा करने वाली आवाज़े.
कुत्तों की हिलती हुई दुमें
रंग भगवा हो या हरा...
हर रंग के पीछे छिप कर बैठे है.
हथियारबंद शिकारी
अपने ही लोगो के माँस खाने पर आमादा
करते रहते है अपने दांत पैनें
इस कठिन समय में जबकि भेडिये चालाक है,
खरगोशों को भी चालाक होना पड़ेगा.
प्यार...
सद्भावना...
उदारता...
विवेक...
न्याय...
इन सबके सहारे काटना है सफ़र.
वर्ना भेडिये भड़काते है.
वास्ता देते हैं धर्मका
और भक्तिभाव या इबादत में डूबे खरगोश
बाहर निक़ल कर लगाने लगाते हैं नारे
और मारे जाते है.
मिल जाता है भेडियों को मौका और वे
डट कर लहू पीते हैं.
खरगोशो, सावधान...
चेता रहा हूँ...
भेडिये बैठे है घात लगा कर...
बचना है तुमको...
अगर रहना है जिंदा....
अगर बचना चाहते हो सुख-शांति..
धरती का प्यार...
बनो उदार
भूल कर बीती बातें
नए इतिहास का निर्माण करो.
13 टिप्पणियाँ:
सार्थक और समसामयिक पोस्ट ..बहुत अच्छी ...एक चेतावनी देती हुई
आप की कविता के एक एक शव्द से सहमत है जी, आप ने बिलकुल सही लिखा, सावधान करने के लिये धन्यवाद
प्रभावशाली रचना भईया. आभार
आप शायद मेरा पोस्ट "आओ नज़्म बने रहें" नहीं पढ़ पाए हैं. वक़्त मिले तो पढ़कर मार्गदर्शन जरुर कीजियेगा. प्रणाम.
भेड़िये और खरगोश के बिम्ब मे बहुत खूबसूरत बात कही है ।
उम्दा लेखन के लिए आभार
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
बहुत सटीक बात कही..
खरगोशों को भी चालाक होना पड़ेगा.
प्यार...
सद्भावना...
उदारता...
विवेक...
न्याय...
इन सबके सहारे काटना है सफ़र.
Bahut sahi kaha.
बिलकुल सही बात कही है। धन्यवाद।
इस कठिन समय में जबकि भेडिये चालाक है,
खरगोशों को भी चालाक होना पड़ेगा.
सही बात कही..खरगोशों को भी चालाक होना पड़ेगा...
सार्थक और समसामयिक रचना
खरगोशो, सावधान...!!!
इस सामयिक कविता के लिए आभार !
जो आप जैसा सशक्त कवि ही लिख सकता है !
आज मैंने भी ऐसा ही कुछ लिखा है ,आपका ध्यान चाहूंगी
Girish bhai achchhee kavita. ye bhediye aadmiyon kee khaal lapete hain, unheen kee bhasha men baat karte hain aur mushkil se mushkil ghadee men bhee daant naheen katkatate, bas mauke ke intjaar men rahate hain. avasar paate hee ye bheja to chabaate hee hain, aanten aur haddiyan bhee nigal jaate hain taki koi shak kee gunjaaish n rahe. daant itanaa saph rakhte hain ki khoon ke katare kee jhalak n mile aur baad men cheekhate bhee hain ki ghurahoo gayab hai, use khojaa naheen ja raha. bade chalaak ho gaye hain ye bhediye.
सच है| आज कुछ लोग भेड़िया बन कर घात लगाए बैठे है| इस आतंकी माहौल में हमें सावधान रहने की ज़रूरत है...बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद चाचा जी..प्रणाम
वाह क्या बात है ..........बेहद सार्थक एवं प्रभावी रचना !!
बधाई स्वीकार करें !!
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