नई ग़ज़ल/ काश मिले मंदिर में अल्ला....
>> Friday, September 24, 2010
देश में प्यार रहे, अमन की बाहर रहे. हमारा देश इसके लिये सदा तैयार रहे. नफ़रत का अंत हो. प्यार का बसंत हो. खुशिया दिग-दिगंत हो. ऐसा समाज चाहिए. कुछ ही लोग सिरफिरे होते है. अपने धर्म या मजहब के लिये रोते है. जबकि धरम-मज़हब इतने कमजोर नहीं, कि उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाये. लेकिन जो मूर्ख है उन्हें समझने से क्या फायदा? और जो समझदार हैं, उनको तो कुछ समझने की भी ज़रुरत नहीं. बहरहाल फिर कुछ शेरों के साथ पेश है एक सामायिक ग़ज़ल....देखें...कुछ जमे तो मेरा सौभाग्य...
सुन्दर एक जहान मिले
चेहरों पर मुसकान मिले
काश मिले मंदिर में अल्ला
मस्जिद में भगवान मिले
वह घर पावन जिसमे गीता
बाइबिल और कुरान मिले
आते खाली जाते खाली
जितने भी इनसान मिले
धर्म-जात के झगड़े ना हों
ऐसा हिन्दुस्तान मिले
धनवालों के भीतर भी
सुन्दर इक इनसान मिले सुख हम भीतर खोजेंगे
बाहर सब परेशान मिले
दान दे सकें हम सबको
क्यों सबका अहसान मिले
बस्ती में घर खोज रहा
वैसे बहुत मकान मिले
18 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया ......
अच्छी पंक्तिया की रचना की है ........
कृपया इसे भी पढ़े :-
क्या आप के बेटे के पास भी है सच्चे दोस्त ????
पढ़े जो हम पंकज की ग़ज़ल,
तो हमको भी आराम मिले ...
लिखते रहिये ...
पढेँ जो गजल आपकी,
उनको भी आराम मिले
धर्म के नाम पर लङने वालोँ को ,
हराम मिले
Likhte rahiye, संक्षिप्त सटीक और बेबाक
सरजी मै तो कभी कभार टिप्पणी दे देता हूँ क्योँकी आपकी तरह मुझे कुछ लिखना नही आता है ।
Comments by: Admin of etips blog group.
achchhi rachana
बहुत सुन्दर ...भगवान एयर अलाह तो मंदिर मस्जिद बदल भी लें पर इंसानों का क्या जो पत्थर की इमारत को पूजते हों ..
... ab kyaa kahen ... bas dubakee lagaa kar jaa rahe hain ... adbhut bhaav ... behatreen gajal !!!
सुंदर गजल,
कौमी एकता का भाव लिए हुए
आभार भाई साहब
पंकज जी काश आप की बात सब की समझ मै आ जाये तो यही सब को स्वर्ग मिल जाये, इस अति सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद
काश ऐसा होता ........बहुत ही सुन्दर रचना !!
बेहतरीन गज़ल.
ऐसा ही हिन्दुस्तान मिले ...
सकारात्मक आशावादी रचना के लिए साधुवाद ...!
मौजूं और सार्थक, बधाई.
सद् भावना का सुंदर संदेश
इतनी छोटी बहर की ग़ज़ल में इलनी बड़ी-बड़ी बातें ... बहुत खूब... ऐसा चमत्कार आप ही कर सकते हैं।
"जात पात की रेखा खींचे बैठा है नादान.
धरती बांटी, खुद को बांटा, बाँट लिया भगवान्.
मंदिर मस्जिद दरअसल इंसानों की रचना है भईया इसीलिए इनमें इतने टंटे हैं.
"बुल्लेशाह शहु अन्दर मिलिया
दुनिया फिरे लुकाई हो."
मंदिर और मस्जिद में अल्लाह और भगवान् की तलाश ऐसा ही है जैसे पानी में रेखाचित्र बनाना.
आपके इन पवित्र भावनाओं को प्रणाम.
काश मिले मंदिर में अल्ला
मस्जिद में भगवान मिले
सुंदर भावों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल..पढ़ने के बाद दिल खुश हो जाता है...प्रणाम चाचा जी
क़ौमी एकता के भावों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल के लिये गिरिश भाई को मुबारक बाद।
Thanks due to the fact that this discriminative article, it's absolutely conspicuous blogs
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