नई ग़ज़ल/ बाप से भी ये घूस वसूलें......
>> Thursday, October 21, 2010
साहब....'शार्टकट' में ''साब जी'' भी. हमारे यहाँ ये शब्द व्यंग्य में भी कहा जाता है. बहुत पहले एक फ़िल्मी गीत लोकप्रिय हुआ था-''साला मैं तो साहब बन गया, साहब बनके कैसा तन गया''. साहब बन कर अक्सर लोग तन जाते है. ऐसे ही तनने वाले लोगो को समर्पित है आज कुछ शेर. मनुष्य मनुष्य बना रहे, इससे उसका क्या बिगड़ जाता है. ठीक है, कोई साहब बन गया तो क्या यह ज़रूरी है कि वह मनुष्य ही न रहे. खैर, बात लम्बी हो जायेगी. ब्लॉग के माध्यम से अपनी लघु रचनाएँ ही देना चाहता हूँ. लम्बी रचना पढ़ने का अवकाश कहाँ है. बहरहाल, पेश है नई ग़ज़ल. देखें, कुछ सुधी पाठको को जाँच जाये शायद....
बस कहने को बड़े साब जी
भीतर से पर सड़े साब जी
निकल न पाएँगे पापों से
इतना भीतर गड़े साब जी
बात है सच्ची लेकिन जिद है
झूठ पे अपनी अड़े साब जी
हमने सच क्या बोल दिया बस
डंडा ले कर चढ़े साब जी
उनकी थाह नहीं पाओगे
इतनी परतें मढ़े साब जी
मुफ्तखोर हैं, कामचोर हैं
फिर भी तो हैं बड़े साब जी
देख-देख उनकी बेशर्मी
लोग शर्म से गड़े साब जी
ज्ञान की बूँदें टिक ना पाईं
ऐसे चिकने घड़े साब जी
झूठों से हैं बड़े मुलायम
सच्चों से हैं कड़े साब जी
बाप से भी ये घूस वसूलें
अगर वक़्त कुछ पड़े साब जी
लूट, झूठ सारे छलछंदर
कहाँ पाठ ये पढ़े साब जी
6 टिप्पणियाँ:
saab logon ke liyen jo alfaz aapne istemal kiye hen sch voh adhiktm kuch aek apvadon ko chodkr isi laayq hen. akhtar khan akela kota rajsthan
आपने हकीक़त बयां कर दी है... बहुत खूब!
सच दिखाती सुन्दर रचना।
साब जी आपका जवाब नहीं..मजेदार रचना...बधाई
नीरज
निकल न पाएँगे पापों से
इतना भीतर गड़े साब जी
मुफ्तखोर हैं, कामचोर हैं
फिर भी तो हैं बड़े साब जी
ज्ञान की बूँदें टिक ना पाईं
ऐसे चिकने घड़े साब जी
बहुत सुन्दर गज़ल है। वाह साब जी।
बस कहने को बड़े साब जी
भीतर से पर सड़े साब जी
.........मजेदार रचना
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