दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
© गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.
एम.ए (हिंदी), पत्रकारिता (बी.जे.) में प्रावी ण्य सूची में प्रथम,लोककला संगीत में डिप्लोमा.
40 सालों से साहित्य एवं पत्रकारिता में समान रूप से सक्रिय. -सदस्य-साहित्य अकादेमी, दिल्ली( 2008-12)/प्रांतीय अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ राष्ट्र्भाषा प्रचार समिति
-विभिन्न विधाओं में कुल 54 पुस्तके प्रकाशित :
8 उपन्यास- मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया, और पालीवुड की अप्सरा. 15 व्यंग्य संग्रह- ईमानदारों की तलाश, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, ट्यूशन शरणम गच्छामि, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फार्मूले, नेता जी बाथरूम में, एवं ''मंत्री को जुकाम''., नवसाक्षरों के लिये 15 पुस्तकें बच्चो के लिये 7 किताबें, एक हास्य चालीसा, 3 ग़ज़ल संग्रह.
-कर्णाटक एवं मध्यप्रदेश में 10 लोग गिरीश पंकज के व्यग्य-साहित्य पर पीएच.डी. कर रहे है.प्रवास-अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिदाद, मारीशस, इंडोनेशिया, मलेशिया , श्रीलंका , भूटान, नेपाल आदि लगभग दस देशो का प्रवास.
-ईमेल- girishpankaj1@gmail.com
रेमाधव पब्लिकेशन, गाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित मेरा आठवाँ व्यंग्य-संग्रह
एक बेहतरीन लेख, और एक अच्छा सा मुद्दा. लेकिन आपके अन्दर हिम्मत नहीं हैं, तभी तो अपने किसी नेता या मंत्री का नाम लेने कि बजाय क ख ग का इस्तेमाल किया हैं.aap ne K KH Ga
मँहगाई पर एक धारदार व्यंग्य....राजनेता का खुराफाती दिमाग़ क्या क्या न सोच लेन्न...आम आदमी ही नही मंहगाई से तो वो खुद को भी परेशान बता रहे है जबकि खुद वो ही मँहगाई बढ़ने के ज़िम्मेदार है..
6 टिप्पणियाँ:
एक बेहतरीन लेख, और एक अच्छा सा मुद्दा. लेकिन आपके अन्दर हिम्मत नहीं हैं, तभी तो अपने किसी नेता या मंत्री का नाम लेने कि बजाय क ख ग का इस्तेमाल किया हैं.aap ne K KH Ga
अच्छा व्यंग्य ! बेहतर लेखनी ..बधाई !
आज के नेताओं की सच्चाई उजागर करती रचना| धन्यवाद|
अच्छा व्यंग्य है भईया. बधाई.
मँहगाई पर एक धारदार व्यंग्य....राजनेता का खुराफाती दिमाग़ क्या क्या न सोच लेन्न...आम आदमी ही नही मंहगाई से तो वो खुद को भी परेशान बता रहे है जबकि खुद वो ही मँहगाई बढ़ने के ज़िम्मेदार है..
जबरदस्त रचना..बहुत बहुत बधाई..प्रणाम
Aapke vyangya bahut kase huye h. Netao ko ye vyangya jarur chubhenge..
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