''सद्भावना दर्पण'

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व्यंग्य/ उफ़ ये आम आदमी भी न...

>> Friday, January 7, 2011

नई दुनिया, रायपुर (७-१-२०११) मे प्रकाशित व्यंग्य 
साहित्यानुरागियों के अवलोकनार्थ..

6 टिप्पणियाँ:

Taarkeshwar Giri January 7, 2011 at 6:52 AM  

एक बेहतरीन लेख, और एक अच्छा सा मुद्दा. लेकिन आपके अन्दर हिम्मत नहीं हैं, तभी तो अपने किसी नेता या मंत्री का नाम लेने कि बजाय क ख ग का इस्तेमाल किया हैं.aap ne K KH Ga

सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट) January 7, 2011 at 6:57 AM  

अच्छा व्यंग्य ! बेहतर लेखनी ..बधाई !

Patali-The-Village January 7, 2011 at 8:59 PM  

आज के नेताओं की सच्चाई उजागर करती रचना| धन्यवाद|

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') January 8, 2011 at 8:08 AM  

अच्छा व्यंग्य है भईया. बधाई.

विनोद कुमार पांडेय January 8, 2011 at 7:48 PM  

मँहगाई पर एक धारदार व्यंग्य....राजनेता का खुराफाती दिमाग़ क्या क्या न सोच लेन्न...आम आदमी ही नही मंहगाई से तो वो खुद को भी परेशान बता रहे है जबकि खुद वो ही मँहगाई बढ़ने के ज़िम्मेदार है..

जबरदस्त रचना..बहुत बहुत बधाई..प्रणाम

Sushant Jain January 31, 2011 at 11:45 AM  

Aapke vyangya bahut kase huye h. Netao ko ye vyangya jarur chubhenge..

सुनिए गिरीश पंकज को

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