''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

गीत / धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,

>> Sunday, January 9, 2011

११ जनवरी को सीखो के महान गुरू गुरु गोबिंद सिंह जी की जयन्ती है. पिछले साल मैंने गुरु गोबिंद जी पर एक चालीसा भी लिखी थी. साहित्य लेखन के साथ-साथ मेरा मन करता है कि समाज को गढ़ाने वाले नायको के बारे में भी कुछ लिखा जाये इसलिये कभीकभी कालम चल जाती है. एक गीत पेश है गुरु गोबिंद सिंह जी पर....

धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,
किया आपने अन्यायों का, कदम-कदम प्रतिकार..
आपकी दुनिया में जयकार...

महाकवि और महान योद्धा, सच्चे संत-सिपाही,
पूरा जीवन रहा आपका, इसकी नेक गवाही.
मारा हर पापी को लेकिन दुखियों से था प्यार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार..

तेगबहादुर जी के सुत ने, अपना फ़र्ज़ निभाया,
अत्याचारी मुगलों के, सम्मुख ना शीश झुकाया.
सवा लाख से एक लड़ाने, हरदम थे तैयार..
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार..

'दुष्टदमन' ने नए रूप में, जन्म लिया था सुंदर,
'नीलेवाला'', 'बालाप्रीतम' पर 'दशमेश' प्रलयंकर.
'पंथखालसा' स्थापित कर, रचा नया संसार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार...

जात-पात का भेद मिटाया, ऊँच-नीच को तोड़ा,
दलितजनों को गले लगा कर, युग के बोध को मोड़ा.
'पंजपियारे' खोज निकाले, चमकी जब तलवार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार..

तोड़ा मुगलों के गुरूर को, किया 'वंश' का दान,
अन्यायी से लड़े मगर थी, चेहरे पर मुस्कान.
झुक न पाए, टूट न पाए, थे महान किरदार..
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार...

गुरू बनाया ग्रन्थ साहिब को, पंथ नया दिखलाया,
व्यक्ति नहीं, विचार को पूजो, सबको यह समझाया.
देश-धर्म हित किया आपने, न्योछावर परिवार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार...

अनुपम योद्धा, ज्ञानी नायक की है गजब कहानी,
जब तक जीए सिंह सरीखे, हार कभी ना मानी.
चार दशक का जीवन लेकिन, सदियों तक विस्तार.
किया आपने अन्यायों का, कदम-कदम प्रीतिकार..

धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,
किया आपने अन्यायों का, कदम-कदम प्रतिकार..
आपकी दुनिया में जयकार...
आपकी दुनिया में जयकार.

4 टिप्पणियाँ:

nilesh mathur January 9, 2011 at 3:14 AM  

बहुत सुन्दर!

Dr. Zakir Ali Rajnish January 9, 2011 at 3:44 AM  

हमें गुरूगोविंद सिंह जी के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए।

---------
पति को वश में करने का उपाय।

महेन्‍द्र वर्मा January 9, 2011 at 7:24 AM  

अनुपम योद्धा, ज्ञानी नायक की है गजब कहानी,
जब तक जीए सिंह सरीखे, हार कभी ना मानी।

गुरु गोविंद सिंह जी की महिमा का वर्णन करती एक उत्तम रचना।
गुरुजी को मेरा नमन।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') January 19, 2011 at 9:06 AM  

"जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल..."
अनुकरणीय, अद्भुत... व्यक्तित्व को नमन.
सादर.

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP