गीत / धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,
>> Sunday, January 9, 2011
११ जनवरी को सीखो के महान गुरू गुरु गोबिंद सिंह जी की जयन्ती है. पिछले साल मैंने गुरु गोबिंद जी पर एक चालीसा भी लिखी थी. साहित्य लेखन के साथ-साथ मेरा मन करता है कि समाज को गढ़ाने वाले नायको के बारे में भी कुछ लिखा जाये इसलिये कभीकभी कालम चल जाती है. एक गीत पेश है गुरु गोबिंद सिंह जी पर....
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,
किया आपने अन्यायों का, कदम-कदम प्रतिकार..
आपकी दुनिया में जयकार...
महाकवि और महान योद्धा, सच्चे संत-सिपाही,
पूरा जीवन रहा आपका, इसकी नेक गवाही.
मारा हर पापी को लेकिन दुखियों से था प्यार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार..
तेगबहादुर जी के सुत ने, अपना फ़र्ज़ निभाया,
अत्याचारी मुगलों के, सम्मुख ना शीश झुकाया.
सवा लाख से एक लड़ाने, हरदम थे तैयार..
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार..
'दुष्टदमन' ने नए रूप में, जन्म लिया था सुंदर,
'नीलेवाला'', 'बालाप्रीतम' पर 'दशमेश' प्रलयंकर.
'पंथखालसा' स्थापित कर, रचा नया संसार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार...
जात-पात का भेद मिटाया, ऊँच-नीच को तोड़ा,
दलितजनों को गले लगा कर, युग के बोध को मोड़ा.
'पंजपियारे' खोज निकाले, चमकी जब तलवार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार..
तोड़ा मुगलों के गुरूर को, किया 'वंश' का दान,
अन्यायी से लड़े मगर थी, चेहरे पर मुस्कान.
झुक न पाए, टूट न पाए, थे महान किरदार..
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार...
गुरू बनाया ग्रन्थ साहिब को, पंथ नया दिखलाया,
व्यक्ति नहीं, विचार को पूजो, सबको यह समझाया.
देश-धर्म हित किया आपने, न्योछावर परिवार.
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार...
अनुपम योद्धा, ज्ञानी नायक की है गजब कहानी,
जब तक जीए सिंह सरीखे, हार कभी ना मानी.
चार दशक का जीवन लेकिन, सदियों तक विस्तार.
किया आपने अन्यायों का, कदम-कदम प्रीतिकार..
धन्य-धन्य गुरु गोबिंदसिंघ जी, धन्य-धन्य अवतार,
किया आपने अन्यायों का, कदम-कदम प्रतिकार..
आपकी दुनिया में जयकार...
आपकी दुनिया में जयकार.
4 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर!
हमें गुरूगोविंद सिंह जी के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए।
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पति को वश में करने का उपाय।
अनुपम योद्धा, ज्ञानी नायक की है गजब कहानी,
जब तक जीए सिंह सरीखे, हार कभी ना मानी।
गुरु गोविंद सिंह जी की महिमा का वर्णन करती एक उत्तम रचना।
गुरुजी को मेरा नमन।
"जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल..."
अनुकरणीय, अद्भुत... व्यक्तित्व को नमन.
सादर.
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