''सद्भावना दर्पण'

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गांवों की शान से ही छत्तीसगढ़ की आन ...

>> Friday, January 21, 2011

नईदुनिया, रायपुर के  20-1-२०११ में प्रकाशित लेख

5 टिप्पणियाँ:

महेन्‍द्र वर्मा January 21, 2011 at 5:00 AM  

गांव हैं तो हम हैं....
बल्किुल सही कहा आपने। छत्तीसगढ़ का गौरव उसके गांवों में ही बसता है।
गांव और ग्रामीण संस्कृति का संरक्षण आवश्यक है।
जब गांव ही नहीं रहेंगे तो शहर वाले किसे अपना शहरीपन दिखाएंगे?

shikha varshney January 21, 2011 at 6:21 AM  

असली भारत तो आज भी गांवों में ही बसता है.पर कब तक बचा रहेगा पता नहीं.

गौरव शर्मा "भारतीय" January 21, 2011 at 6:46 AM  

वाकई हमें अपने जड़ों की ओर लौटना होगा, अपने गाँव को उजड़ने से बचाना होगा नहीं तो ग्रामीण भारत की स्थिति भविष्य में अकल्पनीय होगी जिसके जिम्मेदार हम स्वयं होंगे |
बेहद प्रभावी एवं सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें |

डॉ. मोनिका शर्मा January 21, 2011 at 7:51 AM  

सच में गाँव से ही हैं हम ..... हमारे गाँव आज भी देश की रीढ़ हैं...... आपका आलेख पढ़कर अच्छा लगा

Rahul Singh January 21, 2011 at 5:18 PM  

प्रगति और विकास की कीमत.

सुनिए गिरीश पंकज को

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