नई ग़ज़ल / पाप इतना कमाने से क्या फायदा....
>> Saturday, January 29, 2011
ब्लागिंग में सक्रियता का प्रतिफल कोई पूछे तो मै दावे के साथ कह सकता हूँ, कि इसने मुझे व्यापक संतोष दिया है. प्रिंट की दुनिया में एक व्यंग्यकार-पत्रकार के नाते सीमित-परिचय-संसार था, लेकिन ब्लाग-लेखन के कारण दायरा तीव्र गति के साथ व्यापक हुआ. न केवल भारत वरन विदेश में रहने वाले लेखको-मित्रों से संपर्क हुआ. वैचारिक आदान-प्रदान का सेतु बन गया है ब्लॉग. हमारी अनुभूतियो को आपने सराहा और आपकी अनुभूतियाँ भी मुझ तक आईं. सद्भावना का वातावरण बना.जिनसे हम कभी मिले ही नहीं, उनसे मिलने की बेताबियाँ बढ़ी. उनके प्रति लगाव बढ़ा. वे लोग अपने लगने लगे. ब्लॉग-लेखन के कारण हजारो लोगो से जीवंत-रिश्ता बन गया है. पहले शायद मैंने ज़िक्र किया हो, कि मेरी गज़ले मेरे मित्र नागपालजी के साप्ताहिक समाचार(विज्ञापन की दुनिया, नागपुर) में नियमित रूप से छप रही है. वे मेरे ब्लॉग से गज़ले लेकर छाप रहे है. ग़ज़ल के नीचे मेरा मोबाइल नंबर भी रहता है. उसके कारण सामान्य पाठको के भी फोन आते रहते है. वे शेरों की तारीफ करते है तो हौसला बढ़ाता है. लगता है, और बेहतर लिखना चाहिए. इस अखबार की प्रसार संख्या चालीस हज़ार से ज्यादा है. इस तरह ब्लॉग के ज़रिये ही मैं लोगों तक पहुंचा. इसलिये मै कहता हूँ, कि ब्लॉग ने मुझे बहुत कुछ दिया. अब लोग ग़ज़ल सुनांने के लिये भी बुलाना चाहते है. धीरे-धीरे इधर-उधर जाने भी लगा हूँ. (कुछ कमाई भी शुरू हो गई है.लेकिन कितनी...? इस राज को राज ही रहने दें ) कुल मिला कर बात यह है कि अच्छे विचारों को अच्छे लोग पसंद करते ही है. ३-४ दिन बाद आज फिर एक ग़ज़ल पेशेखिदमत है.
पाप इतना कमाने से क्या फायदा
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा
हम बुलाते रहे वो न आये कभी
पत्थरों को मनाने से क्या फायदा
जब अँधेरे में डूबा हुआ हो नगर
घर में दीपक जलाने से क्या फायदा
जाने कब साँस अपनी ये थम जायेगी
दिल में नफ़रत बसाने से क्या फायदा
भीड़ है बस यहाँ काम की जो नहीं
ऐसे बोझिल ज़माने से क्या फायदा
आ भी जाओ नयन तक रहे हैं मेरे
अपने प्रिय को रुलाने से क्या फायदा
जिनकी नज़रें रहें सिर्फ जेबों तलक
उनसे यारी निभाने से क्या फ़ायदा
जो समझते नहीं अपने ज़ज्बात को
उनको कविता सुनाने से क्या फ़ायदा
18 टिप्पणियाँ:
क्या बात है बहुत खुब सर....बेहतरीन...बहुत ही सुंदर गजल आपकी...
पाप इतना कमाने से क्या फायदा
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा
हम बुलाते रहे वो न आये कभी
पत्थरों को मनाने से क्या फायदा
..बहुत सही ....
...सच कहा आने ब्लॉग्गिंग घर से बाहर एक अपना अलग संसार है ... अच्छे विचार, भावनाओं को देर सबेर सभी समझ लेते हैं ..
..आप निरंतर अग्रसर रहें यही हार्दिक शुभकामना है
सुंदर गजल है भाई साहब
आभार
बहुत खुब..आपकी गजल बहुत ही सुंदर है|आभार|
जो समझते नहीं अपने ज़ज्बात को
उनको कविता सुनने से क्या फ़ायदा
बहुत खुब..
पाप इतना कमाने से क्या फायदा
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा
वाह बेहतरीन..
प्रणाम,
मन को छु लेने वाले ग़ज़ल के लिए बधाई एवं आभार स्वीकार करें...
जब अँधेरे में डूबा हुआ हो नगर
घर में दीपक जलाने से क्या फायदा
बहुत सुंदर सोच -
सुंदर रचना
बेहतरीन ग़ज़ल .खासकर यह शेर ...
हम बुलाते रहे वो न आये कभी
पत्थरों को मनाने से क्या फायदा
आप की कलम को सलाम
जो समझते नहीं अपने ज़ज्बात को
उनको कविता सुनाने से क्या फ़ायदा
वाह जी बहुत सुंदर आप की कविता धन्यवाद
हम बुलाते रहे वो न आये कभी
पत्थरों को मनाने से क्या फायदा
वाह लाजवाब गज़ल है। हर इक शेर दिल को छूता हुया। बधाई आपको।
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल पंकज जी..
जाने कब साँस अपनी ये थम जायेगी ,
दिल में नफ़रत बसाने से क्या फायदा।
ग़ज़ल का हर शे‘र कुछ न कुछ संदेश अवश्य दे रहा है।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल।
हम बुलाते रहे वो न आये कभी
पत्थरों को मनाने से क्या फायदा
जब अँधेरे में डूबा हुआ हो नगर
घर में दीपक जलाने से क्या फायदा
सुंदर गज़ल हर शेर कमाल का है .....
जो समझते नहीं अपने ज़ज्बात को
उनको कविता सुनाने से क्या फ़ायदा..
एकदम हमारे दिल की बात कह दी आपने..
सुन्दर गज़ल.
और ब्लोगिंग वाकई अभिव्यक्ति का श्रेष्ट माध्यम है.
जाने कब साँस अपनी ये थम जायेगी
दिल में नफ़रत बसाने से क्या फायदा
..
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..
वाह भैया, गजल के रूप में खुबसूरत भावाभिव्यक्ति...
प्रणाम.
आदरणीय गिरीश जी भाईसाहब
सादर सस्नेहभिवादन !
बहुत शानदार ग़ज़ल है , बधाई !
आ भी जाओ, नयन तक रहे हैं मेरे
अपने प्रिय को रुलाने से क्या फायदा ?
बड़े कोमल एहसास का शे'र है … क्या बात है !
पूरी ग़ज़ल रवां-दवां है … मुबारकबाद !
और मुबारकबाद कुछ कमाई शुरू होने के लिए भी :) … कवि सम्मेलन - मुशायरों में जाने लगे हैं अब हमारे बड़े भैया ?! डबल मुबारकबाद !
… तब तो कहीं न कहीं हमारी मुलाकात की संभावना रहेगी …
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जो समझते नहीं अपने ज़ज्बात को
उनको कविता सुनाने से क्या फ़ायदा
बिलकुल सही कहा आपने.
हर शेर अच्छा है..
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