''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल/ तुम्हारे नैन में तो प्यार की गंगा समाई है.....

>> Tuesday, February 1, 2011


मोहब्बत हमें ज़िंदा रखती है. हौसला देती है. सहारा मिलता है इससे. मोहब्बत के कारण लोग मुसीबते भी झेल जाते हैं. 'एक से भले दो' वाली बात. मोहब्बत सच्ची हो तो फिर बात ही क्या. पर आजकल ऐसी मोहबतें मिलती कहाँ है? मिलावट का ज़माना है. धोखा देना फितरत-सी होगई है. यह सब 'परम्परा' भी है. फिर भी ऐसे लोग है, जिन्हें सच्ची मोहब्बतें मिली और वे अपना जीवन जी गए. मोहब्बत केवल भौतिक-दैहिक नहीं होती, वह आध्यात्मिक-आत्मिक भी होती है. मीरा की तरह. और मन उसी में मगन रहता है. मै दोनों तरह की मोहब्बत को महत्त्व देता हूँ. जीवन में हम कितने रूप देखते है मोहब्बत के. घर-बाहर कितने ही लोग हमें प्यार करतेहै और हम उनसे प्यार करते है. प्यार हमें मनुष्य बनाये रखता है. मगर सच यह भी है कि खुदगर्ज़ हो गए तो प्यार के कारण लोग अपराधी भी बन जाते है. फिर वह प्यार नहीं, वासना है. नासमझी है. प्यार त्याग करता है, वह प्रतिकार नहीं करता. प्यार सहने की शक्ति देता है. पता नहीं क्यों अचानक प्यार पर लिखने का मन हो गया. कारण समझ में नहीं आ रहाहै, लेकिन कुछ तो कारण होगा. शायद एक कारण यही है, कि मुझे ब्लागिंग से प्यार हो गया है. और मेरी लेखनी से भी कुछ लोग प्यार करने लगे है. और मैं भी उनकी लेखनी से प्यार करने लगा हूँ. ज़िंदा रहने के लिये इतना पर्याप्त है. तो...आज.....लीक से बिल्कुल हट कर कुछ शेर मोहब्बत के नाम. वैसे बहुत पहले मैंने एक ग़ज़ल कही थे-''सुबहमोहब्बत, शाम मोहब्बत, अपना तो है काम मोहब्बत''. मगर आज नए रंग के साथ, कुछ नए शेर...इस भरोसे के साथ, कि दिलसे कहे गए इन शेरों को ''महाशेरों'' की शुभकामनायें मिलेंगी

तुम्हारे नैन में तो प्यार की गंगा समाई है
इसी के वास्ते मैंने यहाँ डुबकी लगाई है

मुझे मत भूल जाना तुम हमेशा डर रहे मन में
सुना है के वफा का इक सिला बस बेवफाई है

मैं तुझको देख लेता हूँ ये आँखें बंद करके भी
खुली आँखों से कब तूने कभी सूरत दिखाई है

अगर हो साथ सच्चा तो सफ़र आसां हुआ अक्सर
कोई जब पोंछता आँसू लगे यह भी खुदाई है

न उजड़े ये मेरा गुलशन महकता ही रहे हरदम 
तुम्हारे साथ मैंने प्यार की दुनिया बसाई है

मोहब्बत में बड़ी ताकत सभी कहते ख़ुदा है ये
जिसे मिल जाये बरकत ज़िंदगी में उसने पाई है

दिलों के खेल ऐसे हैं समझ में आ नहीं सकते 
कभी होता मिलन इसमें कभी मिलती जुदाई है

अभी तो प्यार हम कर लें यहाँ कल किसने देखा है
ये साँसों की सड़क है और आगे अंधी खाई है.

बहुत दिन से तेरे दीदार को तरसें मेरी अखियाँ
अचानक फूल को देखा तो तेरी याद आई है

हमारा दिल है वृंदावन बजे है प्यार की बंसी 
यहाँ राधा के संग में रास करता वो कन्हाई है 

जो होना है तो होगा एक दिन बिल्कुल हकीक़त है
विरह के नाम से लेकिन नज़र ये डबडबाई है

छिपा ले प्यार सीने में मगर छिपता कहाँ पंकज 
नज़र है चीज़ कुछ ऐसी ख़ुदा ने जो बनाई है

चित्र गूगल से साभार 

23 टिप्पणियाँ:

shikha varshney February 1, 2011 at 6:00 AM  

छिपा ले प्यार सीने में मगर छिपता कहाँ पंकज
नज़र है चीज़ कुछ ऐसी ख़ुदा ने जो बनाई है

bahut khoob..
umdaa gazal.

Sushant Jain February 1, 2011 at 6:03 AM  

बहुत दिन से तेरे दीदार को तरसें मेरी अखियाँ
अचानक फूल को देखा तो तेरी याद आई है

priyatam ke chehre ko phool kahna bahut sunder laga, parantu, Sahsa yad karna ajeeb kyuki aksar sahitya me priyatam ko bhoola hi nahi pate hai...

Er. सत्यम शिवम February 1, 2011 at 6:38 AM  

लाजवाब.....क्या बात है...प्यार की असलियत बयां है आपकी इस रचना में......आभार

Anupama Tripathi February 1, 2011 at 7:47 AM  

छिपा ले प्यार सीने में मगर छिपता कहाँ पंकज
नज़र है चीज़ कुछ ऐसी ख़ुदा ने जो बनाई है


सीधे दिल से निकली है आपकी ग़ज़ल -
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

vandana gupta February 1, 2011 at 9:15 AM  

तुम्हारे नैन में तो प्यार की गंगा समाई है
इसी के वास्ते मैंने यहाँ डुबकी लगाई है

अभी तो प्यार हम कर लें यहाँ कल किसने देखा है
ये साँसों की सड़क है और आगे अंधी खाई है.

हमारा दिल है वृंदावन बजे है प्यार की बंसी
यहाँ राधा के संग में रास करता वो कन्हाई है

मोहब्बत की एक अनुपम अभिव्यक्ति……………हर शेर मोहब्बत मे डूबा हुआ खुद ही बोल रहा है………बहुत सुन्दर ।

Dr Varsha Singh February 1, 2011 at 10:31 AM  

बहुत अच्छी ग़ज़ल है। सुंदर रचना के लिए साधुवाद!

वाणी गीत February 1, 2011 at 5:08 PM  

छिपा ले प्यार दिल में मगर छिपता कहाँ है ...
नजर जो चीज खुदा ने बनाई है ...

प्यार की गंगा आप पर यूँ ही मेहरबान रहे ..
बहुत अच्छी ग़ज़ल !

निर्मला कपिला February 1, 2011 at 9:21 PM  

हर एक शेर लाजवाब। बधाई आपको।

शिवम् मिश्रा February 1, 2011 at 11:26 PM  


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - ठन-ठन गोपाल - क्या हमारे सांसद इतने गरीब हैं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

रमेश शर्मा February 2, 2011 at 5:46 AM  

ye aane wale velentaaeen day kee Aahat hai. vasanti bayar bahne lagi hai sirji

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') February 2, 2011 at 7:55 AM  

"बसंत की छटा अब छाने लगी है.
मस्ती पवन को महकाने लगी है."

राज भाटिय़ा February 2, 2011 at 7:57 AM  

छिपा ले प्यार सीने में मगर छिपता कहाँ पंकज
नज़र है चीज़ कुछ ऐसी ख़ुदा ने जो बनाई है
वाह जी बहुत खुब. धन्यवाद इस सुंदर गजल के लिये

शरद कोकास February 2, 2011 at 9:10 AM  

बिलकुल मौसम की गज़ल है भाई ।

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami February 3, 2011 at 3:22 AM  

मोहब्बत में बड़ी ताकत सभी कहते ख़ुदा है ये
जिसे मिल जाये बरकत ज़िंदगी में उसने पाई है
क्या खूब गजल ! सुन्दर अभिव्यक्ति | बधाई |

AJMANI61181 February 3, 2011 at 8:29 AM  

pankaj ji i m charandeep from pithora nice romantic ghazal
aap hi ki aankhon ka madhumaas padhkar mujhe meter aur ghazal ka basic gyan hua
aapne ek baar pithora rest house me charcha ki thi ki kaise aapki vo line safar ke dauraan bani
" loktantra sharminda hai
raja ab tak jinda hai

meri ek ghazal padhiye aur guideline dijiye


बेबस है कितना इंसान आजकल
कौडियो में बेचे है ईमान आजकल

जिंदगी की कीमत कुछ न रही
बिकता है मौत का सामान आजकल

कौमी एकता की मिलती नहीं मिसाल
राम और रहीम है परेशान आजकल

किताबी बाते किताबो में रहने दो
जीतता है झूठा बयान आजकल

आदमी को हम कहाँ ढूंढ़ते चरण
आदमी का चेहरा शैतान आजकल

Anonymous February 3, 2011 at 9:05 AM  

मैं तुझको देख लेता हूँ ये आँखें बंद करके भी
खुली आँखों से कब तूने कभी सूरत दिखाई है
क्या ही खुबसूरत अभिव्यक्ति है ! आप तो सिद्ध हस्त हैं ,चाहे राग हो या बैराग ! आभार

Er. सत्यम शिवम February 4, 2011 at 4:03 AM  

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Minakshi Pant February 4, 2011 at 8:04 PM  

आज पहली बार आपके ब्लॉग मै आना हुआ और आना सार्थक हो गया बहुत खुबसुरत लिखते हैं आप हर शब्द जेसे धागे मै पिरोये मोती जेसा हो ! बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल पड़ कर अच्छा लगा और प्यार हाँ लोग न जाने प्यार के नाम से घबराते क्यु हैं प्यार के तो कई रूप होते हैं पर लोगो के दिमाग मै इसके गलत रूप की ही छवि बेठी हुई है कोई प्यार का नाम ले ले तो सोचते हैं पता नहीं क्या बात हो गई जबकि हर रिश्ता प्यार से ही शुरू और प्यार मै ही खत्म होता है !

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया !

mridula pradhan February 4, 2011 at 9:34 PM  

अचानक फूल को देखा तो तेरी याद आई है
wah.itni komak upma di hai ki dil ko choo gayee.

POOJA... February 4, 2011 at 10:54 PM  

शायद आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ...
बड़ी ख़ुशी हुई...
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...
वाह...

केवल राम February 4, 2011 at 11:15 PM  

बहुत दिन से तेरे दीदार को तरसें मेरी अखियाँ
अचानक फूल को देखा तो तेरी याद आई है
एक दम दिल के करीब पाया इन पंक्तियों को ..

आदरणीय गिरीश पंकज जी
सादर नमस्कार
आपकी गजल का हर शेर भावपूर्ण है ...गजल विधा का आपका ज्ञान इतनी बढ़िया गजल में झलक रहा है ...आशा है ...आपकी लेखनी से हमें और भी इस तरह की अमूल्य रचनाएँ पढने को मिलेंगी ...आपका आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) February 5, 2011 at 1:25 AM  

बहुत खूबसूरत भावों से भरी गज़ल

विशाल February 6, 2011 at 5:01 AM  

बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल.हर शेर उम्दा,खासकर...

छिपा ले प्यार सीने में मगर छिपता कहाँ पंकज
नज़र है चीज़ कुछ ऐसी ख़ुदा ने जो बनाई है

आपकी कलम को सलाम.

सुनिए गिरीश पंकज को

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