''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / कायरों को ही मज़ा आता है छिप कर वार में

>> Sunday, February 6, 2011

मित्रो, बिना किसी भूमिका के फिर एक नई ग़ज़ल..क्योकि बात बोलेगी, हम नहीं.  आपका प्रेम बना रहे, इसी आशा के साथ...
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दर्द मेरे और तेरे ढल गए अशआर में
हम कहाँ से अब कहाँ तक आ गए हैं प्यार में

तुमसे है उम्मीद कितनी ज़िंदगी में हमसफ़र
छोड़ कर ऐसे ना जाना तुम कभी मँझधार में
 
ज़िंदगी में तब सुकूँ मिलता है सच्चा दोस्तो
नेकनीयत ही भरी हो गर किसी किरदार में 
 
सामने जो भी गलत है तुम इसे बदलो तुरत
युग यहाँ पर बीत जाते हैं किसी अवतार में
 
दौड़ना अच्छा है लेकिन हादसों का डर भी हो
कुछ तो काबू रख सकेंगे हर घड़ी रफ़्तार में 
 
ज़िंदगी में हर घड़ी बस एक गुंजाइश रहे
इसलिये तो जीत भी हम खोज लेते हार में
 
रोज़ हम देखा-सुना करते हैं वो भी चल बसे
क्यों किसी से हम करें नफ़रत यहाँ बेकार में 
 
तुम संभल कर के चलो क्योंकि समय बलवान है
कब कहाँ आवाज़ होती है समय की मार में 
 
खुद असल में चीज़ क्या है वो सभी को है पता
खोजता रहता है फिर भी गलतियाँ दो-चार में 
 
मर्द हो तो सामने आओ लड़ो कुछ बात है
कायरों को ही मज़ा आता है छिप कर वार में 

नफरतो की आड़ पंकज एक दिन गिर जायेंगी 
छेद इतने कर दिए है प्रेम से दीवार में

16 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा February 6, 2011 at 6:47 AM  

@नफरतो की आड़ पंकज एक दिन गिर जायेंगी
छेद इतने कर दिए है प्रेम से दीवार में ॥

वाह भैया बहुत ही गजब का शेर बन पड़ा है।
आनंद आ गया। एक दम स्लोमोशन में ।

शुभकामनाएं

vandana gupta February 6, 2011 at 7:00 AM  

बहुत ही खूबसूरत गज़ल्……………हर शेर लाजवाब्।

राज भाटिय़ा February 6, 2011 at 7:07 AM  

बहुत सुंदर जी, धन्यवाद

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) February 6, 2011 at 7:55 AM  

नफरतो की आड़ पंकज एक दिन गिर जायेंगी
छेद इतने कर दिए है प्रेम से दीवार में

क्या बात कह दी है जनाब! गज़ब की शायरी है| आजकल आपका ही उपन्यास माफिया पढ़ रहा हूँ|
बहुत बहुत बधाई|

महेन्‍द्र वर्मा February 6, 2011 at 8:22 AM  

तुम संभल कर के चलो क्योंकि समय बलवान है,
कब कहाँ आवाज़ होती है समय की मार में।

क्या खूब लिखा है आपने।
एक-एक शेर एक-एक सूक्ति के समान है।

shikha varshney February 6, 2011 at 8:27 AM  

नफरतो की आड़ पंकज एक दिन गिर जायेंगी
छेद इतने कर दिए है प्रेम से दीवार में
उम्दा गज़ल..

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami February 6, 2011 at 10:24 AM  

ज़िंदगी में हर घड़ी बस एक गुंजाइश रहे
इसलिये तो जीत भी हम खोज लेते हार में
लाजवाब |

Kailash Sharma February 7, 2011 at 1:44 AM  

ज़िंदगी में हर घड़ी बस एक गुंजाइश रहे
इसलिये तो जीत भी हम खोज लेते हार में

बहुत खूबसूरत गज़ल..हरेक शेर सारगर्भित..

विशाल February 7, 2011 at 8:31 AM  

उम्दा ग़ज़ल.सभी शेर बढ़िया ....खास कर ...

सामने जो भी गलत है तुम इसे बदलो तुरत
युग यहाँ पर बीत जाते हैं किसी अवतार में

सलाम.

वाणी गीत February 7, 2011 at 3:40 PM  

कायरों को ही मजा आता है छिप कर वार करने में ...
नफरतों की आड़ एक दिन गिर जायेगी ...इतने छेड़ कर दिए प्रेम की देवर में ...

सभी शेर लाजवाब !

नीरज गोस्वामी February 7, 2011 at 11:50 PM  

रोज़ हम देखा-सुना करते हैं वो भी चल बसे
क्यों किसी से हम करें नफ़रत यहाँ बेकार में

पंकज जी इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी दाद कबूल करें...

नीरज

Dorothy February 8, 2011 at 2:43 AM  

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.

Dorothy February 8, 2011 at 2:43 AM  

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') February 15, 2011 at 8:01 AM  

नफरतो की आड़ पंकज एक दिन गिर जायेंगी
छेद इतने कर दिए है प्रेम से दीवार में ॥
वाह भैया...
सादर प्रणाम.

Beqrar February 18, 2011 at 9:19 AM  

बहूत उम्दा पंकज जी बहूत खूब, हर शेर लाजवाब रहा

Beqrar February 18, 2011 at 9:19 AM  

बहूत उम्दा पंकज जी बहूत खूब, हर शेर लाजवाब रहा

सुनिए गिरीश पंकज को

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