ग़ज़ल / अपने जब ठुकराते हैं ...आँसू साथ निभाते हैं
>> Saturday, March 12, 2011
अपने जब ठुकराते हैं
आँसू साथ निभाते हैं
अपनों से धोखे खा कर
हम केवल पछताते हैं
दिल ही दिल में रोते हम
बाहर से मुस्काते हैं
यादें आतीं सहलाने
जब सारे बिसराते हैं
प्यार खजाना है अपना
जी भर इसे लुटते हैं
अब जा कर ये समझे हैं
सुख-दुःख आते-जाते हैं
प्यार-वफाओं के किस्से
सुनकर बस मुस्काते हैं
कविता मत समझो इसको
दिल का दर्द सुनाते हैं
अपने तो खुदगर्ज़ हुए
बेगाने अपनाते हैं
अब तो आओ निर्मोही
कब से तुम्हें बुलाते हैं
सुविधाओं की जूठन है
कितने कष्ट उठाते हैं
खुद्दारी का क्या सुख है
आओ, हम बतलाते हैं
उल्टा है यह दौर शिष्य अब
गुरुओं को समझाते हैं
तन्हाई में पंकज जी
हम खुद से बतियाते हैं
15 टिप्पणियाँ:
उल्टा है यह दौर शिष्य अब
गुरुओं को समझाते हैं
सही बात कही है ...सटीक और उम्दा गज़ल
खुद्दारी का क्या सुख है
आओ, हम बतलाते हैं
बहुत सुंदर .....उम्दा गज़ल
अपनों से धोखे खा कर
हम केवल पछताते हैं
बेगानो से धोखा मिले तो दुख कम होता हे, ओर जब अपने सगो से धोखा मिले तो आत्मा तक दुखी हो जाती हे, बहुत सुंदर गजल धन्यवाद
सुख-दुःख आते-जाते हैं...
बस इतना ही सच है
कविता मत समझो इसको
दिल का दर्द सुनाते हैं
अच्छी रचना हर शेर खुबसूरत , मुबारक हो
छोटी बहर में बड़ी बात...बधाई.
अपनों से धोखा खा कर हम पछताते हैं ,
कविता नहीं दिल का दर्द सुनते हैं ...
लाजवाब !
अपने तो खुदगर्ज़ हुए
बेगाने अपनाते हैं
आजकल की परम्परा यही है।
समाज की विसंगतियों को रेखांकित करती अच्छी ग़ज़ल।
कविता मत समझो इसको
दिल का दर्द सुनाते हैं
बहुत सुन्दर गज़ल है। हर शेर लाजवाब। बधाई।
bahut sundar ..
प्यार-वफाओं के किस्से
सुनकर बस मुस्काते हैं
बहुत खूब.
सलाम
bahut sunda rachana...
सम्मानिय गिरीश जी
प्रणाम !
अपनों से धोखे खा कर
हम केवल पछताते हैं
बेगानो से धोखा मिले तो दुख कम होता हे, ओर जब अपने सगो से धोखा मिले तो आत्मा तक दुखी हो जाती हे, बहुत सुंदर गजल !
सादर
भैया सादर प्रणाम...
हरेक शेर एक किताब की तरह है....
जाने कितने अर्थ समेटे हुए महसूस होते हैं...
सादर आभार.
कविता मत समझो इसको
दिल का दर्द सुनाते हैं
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ....
फागुनी शुभकामनायें एवं आभार....
Post a Comment