''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल/ केवल सर्जक रह जाएँगे, उनको कहाँ मिटाए मौत

>> Wednesday, March 23, 2011

पिछले कुछ सालों अनेक अवसर आये हैं, जब मेरे बेहद प्रिय लोग अकाल मौत मरे. जिनके लिए आँसू बरबस ही बह गए. ये वे लोग थे, जो मेरे सगे नहीं थे, उन्होंने कभी मेरा कोई आर्थिक हित नहीं किया, और न मैंने उन्हें किसी तरह का लाभ पहुँचाया. बस, दिल मिलता था. अचानक किसी की हत्या कर दी गई, को सड़क हादसे का शिकार हो गया. अभी हाल ही में पत्रकार साथी आलोक तोमर का चला जाना भी इसी तरह का हादसा ही था. कुछ दिन पहले मैसूर में रहने वाली ए-जानकी जबरदस्त हृदयाघात के कारन चल बसी. हालांकि वे सत्तर की हो चुकी थी, लेकिन जबदस्त जिजीविषा थी उनमे. इन्होने मुंशी प्रेमचंद की अनेक कहानियों के हिंदी अनुवाद किये थे. मेरा सौभाग्य है कि उन्होंने मेरे व्यंग्य-उपन्यास ''माफिया'' का भी हिदी अनुवाद किया.(जो अभी प्रकाश्य है) जानकीजी को अनुवाद के लिए अगले महीने साहित्य अकादेमी सम्मान भी मिलने वाला था, लेकिन कहा गया है न, ''सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं'', तो आदमी बहुत कुछ सोचता है, और अचानक कूच कर जाता है. मृत्यु के इस कटुसत्य पर खूब लिख गया है. बेहतर लिखा गया है. आज भी लोग लिखते ही रहते है. मेरे मन में भी कुछ उमड़ा.अपने विचार आप तक पहुंचा रहा हूँ-
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सबको इक दिन आए मौत
हमको यह बतलाए मौत

नेक काम कर लो तुम जल्दी
जाने कब आ जाए मौत

दुनिया झूठी मैं हूँ सच्ची
सदियों से समझाए मौत

कौन बचा इसके पंजे से
इक दिन सबको खाए मौत

पद, पैसा ये सारी माया
सबसे ध्यान हटाए मौत

जो इतराया वो पछताया
गीत यही इक गाए मौत

हम तो रहते झूठलोक में
लेकिन सत्य सुनाए मौत

कितनों को यह निगल चुकी है
रोजाना मुसकाए मौत

चलते-फिरते स्वस्थ रहें बस
हमको तभी उठाए मौत

कायर को यह खा जाती है
वीरों से घबराए मौत 

सीना ताने खड़े हुए हैं
हमको नहीं डराए मौत

भले जनों को मार न पाई
बस बैठी पछताए मौत

जो ज्ञानी है वो हँसता है
इतना ना इतराए मौत

हम तो बस तैयार खड़े हैं
आना हो, आ जाए मौत

पंकज सर्जक रह जाएँगे
उनको कहाँ मिटाए मौत

13 टिप्पणियाँ:

Kailash Sharma March 23, 2011 at 7:03 AM  

चलते-फिरते स्वस्थ रहें बस
हमको तभी उठाए मौत
...
सार्वभौमिक सत्य का बहुत सुन्दर चित्रण..सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

Bhojpurikhoj.Com March 23, 2011 at 7:49 AM  

आज आपने जिन्दगी की सच्चाई खोलकर सामने रख दी है , अक्सर अच्छे कार्य करने वाले लोगो को भगवान जल्दी बुला लेते हैँ ।
मौत जैसी सच्चाई के आगोश को जिसने भी स्वीकार लिया है वही महान है ।

Regard's
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shikha varshney March 23, 2011 at 8:00 AM  

sachchee gazal.

महेन्‍द्र वर्मा March 23, 2011 at 9:12 AM  

हम तो बस तैयार खड़े हैं
आना हो, आ जाए मौत

पंकज सर्जक रह जाएँगे
उनको कहाँ मिटाए मौत

कवि का यही आत्मबल उसे युगों युगों तक जीवित रखता है।
सिरजनहार को मौत का कैसा भय?

Dr Varsha Singh March 23, 2011 at 10:00 AM  

जो ज्ञानी है वो हँसता है
इतना ना इतराए मौत..

बहुत सही कहा आपने....

Dr. Yogendra Pal March 23, 2011 at 10:53 AM  

आपने बखूबी अपने मन के भावों को व्यक्त किया है

अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!

राज भाटिय़ा March 23, 2011 at 11:12 AM  

चलते-फिरते स्वस्थ रहें बस
हमको तभी उठाए मौत
बहुत सुंदर गजल जी,

संगीता स्वरुप ( गीत ) March 23, 2011 at 11:52 AM  

हम तो रहते झूठलोक में
लेकिन सत्य सुनाए मौत

कितनों को यह निगल चुकी है
रोजाना मुसकाए मौत


सत्य के दर्शन कराती अच्छी गज़ल

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') March 24, 2011 at 9:09 AM  

कितनी अच्छी बातें सहज भाव से कह गए हैं भैया...
अद्भुत ग़ज़ल...
"शाश्वत का सार्थक बयान यह,
जीवन के संग आये मौत."
सादर प्रणाम.

रमेश शर्मा March 26, 2011 at 1:39 AM  

sachchee aur achchhee rachnaa.

sach kaa saamnaa karaate rachnaa.

badhaaee.

Atul Shrivastava March 26, 2011 at 11:04 AM  

बहुत अच्‍छी और भावभरी रचना।
पंकज जी, किसी महापुरूष की बातें आपकी रचना पढकर याद आ गईं, 'जब हम पैदा होते हैं तो हम रोते हैं और दूसरे हंसते हैं, हमें जीवन में ऐसे कर्म करने चाहिए कि जब हम मरें तो हम हंसते हुए दुनिया से रूखसत हों और दूसरे रोते रहें।'
बहुत अच्‍छी रचना।
शुभकामनाएं आपको।

VIVEK VK JAIN March 28, 2011 at 11:17 AM  

satya h.....

कितनों को यह निगल चुकी है
रोजाना मुसकाए मौत

विशाल March 28, 2011 at 7:13 PM  

जो ज्ञानी है वो हँसता है
इतना ना इतराए मौत

हम तो बस तैयार खड़े हैं
आना हो, आ जाए मौत

बहुत खूब लिखा है.
सलाम

सुनिए गिरीश पंकज को

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