ग़ज़ल / चेहरे से मुसकान नदारद क्यों उनसे बेकार मिले हैं
>> Thursday, March 31, 2011
हमको ऐसे यार मिले हैं
जिनसे हरदम वार मिले हैं
दुश्मन भी शरमा जाएगा
कैसे रिश्तेदार मिले हैं
जिन हाथों ने प्यार दिया है
ऐसे भी दो-चार मिले हैं
लगता है पहचान पुरानी
जबकि पहली बार मिले हैं
जिसने संघर्षों को पूजा
उसको स्वागत-द्वार मिले हैं
चेहरे से मुसकान नदारद
क्यों उनसे बेकार मिले हैं
अब तक दिल से मिल न पाए
मिलने को सौ बार मिले हैं
टुकडे-टुकडे बँटे हुए हैं
खुदगर्ज़ परिवार मिले हैं
लुटा दिया जनहित में सब कुछ
हाँ ऐसे दिलदार मिले हैं
मर गए लेकिन भीख न माँगी
कुछ महान खुद्दार मिले हैं
खाओ-पीयो मुँह मत खोलो
ये कैसे अधिकार मिले हैं
नंगापन ही बड़ी ख़बर है
हमको वे अख़बार मिले हैं
नफ़रत, साजिश और ये आँसू
उफ कितने उपहार मिले हैं
कथनी-करनी में है अंतर
ढोंगी रचनाकार मिले हैं
बिछ गए सत्ता की चौखट पर
नए-नए फनकार मिले हैं
6 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन ..प्रत्येक पंक्ति सटीक है.
बहुत खूब।
दुनिया में हर किस्म के लोग होते हैं, आपकी रचना इसी बात को प्रदर्शित करती है।
गहरी सोच।
शुभकामनाएं आपको।
किस शेर की तारीफ करुँ..सब के सब जबरदस्त!!
नंगापन ही बड़ी ख़बर है
हमको वे अख़बार मिले हैं
नफ़रत, साजिश और ये आँसू
उफ कितने उपहार मिले हैं
वाह!!
चेहरे से मुसकान नदारद
क्यों उनसे बेकार मिले हैं
behtreen
जिसने संघर्षों को पूजा
उसको स्वागत-द्वार मिले हैं
चेहरे से मुसकान नदारद
क्यों उनसे बेकार मिले हैं.......
वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !. ...
नफ़रत, साजिश और ये आँसू
उफ कितने उपहार मिले हैं
कथनी-करनी में है अंतर
ढोंगी रचनाकार मिले हैं.....
सही लिखा आपने...
सच की तस्वीर दिखाती ग़ज़ल के लिए
आपको हार्दिक बधाई।
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