ग़ज़ल / प्यार में इनकार तो पहला कदम-सा है
>> Monday, April 4, 2011
प्यार की भाषा रहे मनुहार की भाषा
सच कहें तो है यही संसार की भाषा
नफरतों के वार से दुनिया नहीं बचनी
चाहिए हमको सदा इक प्यार की भाषा
जीतने का हौसला लेकर चले हैं हम
व्यर्थ क्यों बोलें हमेशा हार की भाषा
प्यार से जिनसे मिलो निकले सयाने वे
हमसे ही कहने लगे व्यापार की भाषा
प्यार में इनकार तो पहला कदम-सा है
बाद में हो जाए वो इकरार की भाषा
जोड़ दे गर दो दिलों को है सही अलफ़ाज़
तोड़ दे रिश्ते तो है बेकार की भाषा
तोड़ कर के जो सभी सीमाएं बढ़ती हैं
दरअसल है प्यार ही व्यवहार की भाषा
ग्रन्थ कितने ही पढ़े हैं डिगरियां पाईं
ढाई आखर में छिपी थी 'सार' की भाषा
हमको आखिर क्यों मिले सम्मान सरकारी
बोलता पंकज कहाँ सरकार की भाषा
8 टिप्पणियाँ:
आदरणीय भाईजी गिरीश पंकज जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
नव संवत्सर का शुभारंभ आपने अपने चिर परिचित श्रेष्ठ सृजन के प्रसाद से किया है … आभार !
बहुत अच्छी रचना है …
जीतने का हौसला लेकर चले हैं हम
व्यर्थ क्यों बोलें हमेशा हार की भाषा
आत्मविश्वास सच्चे गुणी की पहचान है … बहुत ख़ूब !
ग्रन्थ कितने ही पढ़े हैं डिगरियां पाईं
ढाई आखर में छिपी थी 'सार' की भाषा
नये कबीर को प्रणाम !
हमको आखिर क्यों मिले सम्मान सरकारी
बोलता पंकज कहाँ सरकार की भाषा
जन-जन के हृदय में आपको जो स्नेह और सम्मान प्राप्त है , उसके समक्ष सरकारी सम्मान तुच्छ है …
आत्म-सम्मान बेचने वाले ही अक्सर सरकारी सम्मानों से सर्वत्र सम्मानित होते पाये जाते हैं …
आप-हम जैसे सरस्वती के स्वाभिमानी वरद् सुपुत्र नहीं … !!
नव संवत्सर के लिए मंगलकामनाएं हैं -
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत उम्दा रचना...आनन्द आ गया.
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
प्यार से जिनसे मिलो निकले सयाने वे
हमसे ही कहने लगे व्यापार की भाषा
वाह क्या बात है ..बहुत बढ़िया.
@प्यार में इनकार तो पहला कदम-सा है
बाद में हो जाए वो इकरार की भाषा ।
लौट आए वो दिन :)
सराहनीय ग़ज़ल।
हर शेर एक सूक्ति के समान है।
प्यार से जिनसे मिलो निकले सयाने वे
हमसे ही कहने लगे व्यापार की भाषा...
प्यार का व्यापार ..क्या बात है ...
हमेशा की तरह बेहतरीन !
बहुत अच्छी बात.....सुंदर...., नमन !
ग्रन्थ कितने ही पढ़े हैं डिगरियां पाईं
ढाई आखर में छिपी थी 'सार' की भाषा
सम्मानिया गिरीश जी
आप को आप का शेर ही नज़र करता हुआ प्रणाम करता हूँ , सभी शेर उम्दा है . सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई .
साधुवाद
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