''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / जो दगा देते हैं उनको प्यार क्यों करना

>> Wednesday, April 13, 2011

दस दिन बेहद परेशान रहा. सड़क खुदाई के कारण केबल कटा और नेट बंद. शिकायत की मगर सरकारी काम तो लखनवी अंदाज़ में ही होता है न. आराम के साथ हुआ. आज वह दिन आया और बेताबी के साथ अपने चाहने वालों के बीच फिर हाज़िर हूँ. मन की अभिव्यक्ति के इस मंच-ब्लॉग- के माध्यम से फिर एक ग़ज़ल पेश है- ('सुने न सुने कोई मेरी पुकार')

आँसुओं को व्यर्थ ही बेकार क्यों करना
जो दगा देते हैं उनको प्यार क्यों करना

दिल मेरा बिकता नहीं, ख्वाहिश नहीं कोई
खामखा इसको यहाँ बाज़ार क्यों करना

ज़िंदगी में जीत की संभावना है जब
हारने की बात को स्वीकार क्यों करना

पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना 

हम बुलाते ही रहे वे ही नहीं आए
इक यही है काम क्या हर बार क्यों करना 

9 टिप्पणियाँ:

Anupama Tripathi April 13, 2011 at 7:26 AM  

ज़िंदगी में जीत की संभावना है जब
हारने की बात को स्वीकार क्यों करना

पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना

sunder arthpoorna shayari.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') April 13, 2011 at 8:48 AM  

पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना

वाह भैया.... बढ़िया ग़ज़ल...
सादर प्रणाम.

shikha varshney April 13, 2011 at 9:13 AM  

पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना
सही बात
बढ़िया गज़ल.

AJMANI61181 April 13, 2011 at 9:26 AM  

हम बुलाते ही रहे वे ही नहीं आए
इक यही है काम क्या हर बार क्यों करना

bahut behatrin sir ji

charandeep ajmani
srinkhala saahitya manch pithora

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार April 13, 2011 at 11:01 AM  

आदरणीय गिरीश पंकज जी भाईसाहब
सादर सस्नेहाभिवादन !

सचमुच आपकी अनुपस्थिति बहुत शिद्दत से महसूस हो रही थी … अब सब ठीक-ठाक है न !

अच्छी ग़ज़ल मिल गई हमें तो…
ज़िंदगी में जीत की संभावना है जब
हारने की बात को स्वीकार क्यों करना

आपसे आत्मविश्वास बनाए रखने की प्रेरणा मिलती है हमेशा । पहले भी आपने ख़ुद्दारी भरे कई अश्'आर कहे हैं … आभार !

पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना

इसी में है समझदारी , … और यही तो है जीवन-दर्शन !
बहुत सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई !


* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *

- राजेन्द्र स्वर्णकार

विशाल April 13, 2011 at 11:36 AM  

हम बुलाते ही रहे वे ही नहीं आए
इक यही है काम क्या हर बार क्यों करना

बहुत खूब गिरीश जी.
बहुत ही खूब

M VERMA April 13, 2011 at 5:37 PM  

पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना
बहुत खूबसूरत गज़ल

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 13, 2011 at 11:18 PM  

आँसुओं को व्यर्थ ही बेकार क्यों करना
जो दगा देते हैं उनको प्यार क्यों करना

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

avanti singh December 30, 2011 at 6:50 AM  

बेहद खुबसुरत .....पत्थरों के इस नगर में कौन सुनता है
दिल के अपने दर्द का इज़हार क्यों करना

हम बुलाते ही रहे वे ही नहीं आए
इक यही है काम क्या हर बार क्यों करना

सुनिए गिरीश पंकज को

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