''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / आओ थोड़ा रूमानी हों ये मौसम भी कुछ कहता है

>> Sunday, April 17, 2011

अपने चेहरे पर रीझा है
जीने का यह ढंग अच्छा है

हरदम ऐठे-ऐठे रहना
वो इंसां जाने कैसा है

मुसकाना तो मुफ़्त मिला है
क्या इसमें लगता पैसा है

अपने से जो कर ले यारी
कभी नहीं रहता तन्हा है

दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है

क्यों मानूं हैं लोग पराए
हर कोई अपना लगता है

प्यार कभी था इस दुनिया में
सचमुच यह सुन्दर किस्सा है

देख के दुनिया हँसता-रोता
हम हैं भ्रम में वो बच्चा है

आओ थोड़ा रूमानी हों
ये मौसम भी कुछ कहता है

मंज़िल उस तक चल कर आती
जो हरदम चलता रहता है

दुश्मन का भी दिल जीतेंगे
पंकज का अपना फंडा है

12 टिप्पणियाँ:

महेन्‍द्र वर्मा April 17, 2011 at 8:21 AM  

मंज़िल उस तक चल कर आती
जो हरदम चलता रहता है

बहुत खूब...
आपकी ग़ज़लों में जीवन सूत्र भी समाहित होते हैं।

Dr (Miss) Sharad Singh April 17, 2011 at 8:40 AM  

दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है....

गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई

गौरव शर्मा "भारतीय" April 17, 2011 at 9:05 AM  

मंज़िल उस तक चल कर आती
जो हरदम चलता रहता है
वाह बेहतरीन पंक्तियाँ...
मानो इन पंक्तियों में सारी बातें कह दी गयी है...
बधाई स्वीकार करें !!

Sunil Kumar April 17, 2011 at 9:27 AM  

दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है
सादगी और सच्चाई से कही गयी दिल की बात अच्छी लगी| बधाई.....

Rahul Singh April 17, 2011 at 9:42 AM  

कायल कर देने वाला फंडा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 17, 2011 at 10:08 AM  

दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है


सुन्दर गज़ल ...

Udan Tashtari April 17, 2011 at 10:32 AM  

बेहतरीन गज़ल...

ब्लॉ.ललित शर्मा April 17, 2011 at 7:40 PM  

@दुश्मन का भी दिल जीतेंगे
पंकज का अपना फंडा है

सुंदर गजल के लिए आभार
हनुमान जयंती की शुभकामनाएं।

Shah Nawaz April 17, 2011 at 8:50 PM  

देख के दुनिया हँसता-रोता
हम हैं भ्रम में वो बच्चा है

खूबसूरत ग़ज़ल है... बहुत खूब!

राज भाटिय़ा April 18, 2011 at 1:52 AM  

क्यों मानूं हैं लोग पराए
हर कोई अपना लगता है

प्यार कभी था इस दुनिया में
सचमुच यह सुन्दर किस्सा है

अतिसुंदर भावाभिव्यक्ति, धन्यवाद

आचार्य परशुराम राय April 18, 2011 at 11:50 AM  

बहुत ही प्रेरणाभरी गज़ल है। आभार।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') April 20, 2011 at 4:12 AM  

"दुश्मन का भी दिल जीतेंगे
पंकज का अपना फंडा है"

वाह भईया.... सारी दुनिया आपका फंडा अपना ले उसे स्वर्ग बनते देर न लगेगी....

खुबसूरत ग़ज़ल... सादर प्रणाम...

सुनिए गिरीश पंकज को

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