नई ग़ज़ल / आओ थोड़ा रूमानी हों ये मौसम भी कुछ कहता है
>> Sunday, April 17, 2011
अपने चेहरे पर रीझा है
जीने का यह ढंग अच्छा है
हरदम ऐठे-ऐठे रहना
वो इंसां जाने कैसा है
मुसकाना तो मुफ़्त मिला है
क्या इसमें लगता पैसा है
अपने से जो कर ले यारी
कभी नहीं रहता तन्हा है
दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है
क्यों मानूं हैं लोग पराए
हर कोई अपना लगता है
प्यार कभी था इस दुनिया में
सचमुच यह सुन्दर किस्सा है
देख के दुनिया हँसता-रोता
हम हैं भ्रम में वो बच्चा है
आओ थोड़ा रूमानी हों
ये मौसम भी कुछ कहता है
मंज़िल उस तक चल कर आती
जो हरदम चलता रहता है
दुश्मन का भी दिल जीतेंगे
पंकज का अपना फंडा है
12 टिप्पणियाँ:
मंज़िल उस तक चल कर आती
जो हरदम चलता रहता है
बहुत खूब...
आपकी ग़ज़लों में जीवन सूत्र भी समाहित होते हैं।
दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है....
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई
मंज़िल उस तक चल कर आती
जो हरदम चलता रहता है
वाह बेहतरीन पंक्तियाँ...
मानो इन पंक्तियों में सारी बातें कह दी गयी है...
बधाई स्वीकार करें !!
दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है
सादगी और सच्चाई से कही गयी दिल की बात अच्छी लगी| बधाई.....
कायल कर देने वाला फंडा.
दुःख में डूबा है वो लेकिन
दुनिया के आगे हँसता है
सुन्दर गज़ल ...
बेहतरीन गज़ल...
@दुश्मन का भी दिल जीतेंगे
पंकज का अपना फंडा है
सुंदर गजल के लिए आभार
हनुमान जयंती की शुभकामनाएं।
देख के दुनिया हँसता-रोता
हम हैं भ्रम में वो बच्चा है
खूबसूरत ग़ज़ल है... बहुत खूब!
क्यों मानूं हैं लोग पराए
हर कोई अपना लगता है
प्यार कभी था इस दुनिया में
सचमुच यह सुन्दर किस्सा है
अतिसुंदर भावाभिव्यक्ति, धन्यवाद
बहुत ही प्रेरणाभरी गज़ल है। आभार।
"दुश्मन का भी दिल जीतेंगे
पंकज का अपना फंडा है"
वाह भईया.... सारी दुनिया आपका फंडा अपना ले उसे स्वर्ग बनते देर न लगेगी....
खुबसूरत ग़ज़ल... सादर प्रणाम...
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