''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

जब-जब सच कहना चाहा है अपनी जान पे बन आई है

>> Thursday, April 21, 2011

सच के हिस्से तन्हाई है
वक़्त बड़ा ये हरजाई है

मित्र समझ कर बात कही थी
अब दोनों में रुसवाई है

जब-जब सच कहना चाहा है
अपनी जान पे बन आई है

दौलत ने दो फाड़ कर दिया
कौन यहाँ किसका भाई है

किसने सच का साथ दिया है
झूठों की तो बन आई है. 

सुख को पकड़ रहा था मैं भी
पता चला वह परछाई है

हम न झुकेंगे रहेंगे भूखे
मरने की फितरत पाई है

पंकज रहना सुखी अकेले 
बस्ती में हाथापाई है

21 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा April 21, 2011 at 8:23 AM  

@किसने सच का साथ दिया है
झूठों की तो बन आई है.

सांच कहूँ तो मारन धावा
झूठ कहूँ तो जग पतियावा।

समयचक्र April 21, 2011 at 8:33 AM  

सच के हिस्से तन्हाई है
वक़्त बड़ा ये हरजाई है

बहुत सुन्दर रचना भाव प्रस्तुति....आभार

गौरव शर्मा "भारतीय" April 21, 2011 at 8:41 AM  

दौलत ने दो फाड़ कर दिया
कौन यहाँ किसका भाई है
वाह बेहतरीन पंक्ति...बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 21, 2011 at 10:52 AM  

मित्र समझ कर बात कही थी
अब दोनों में रुसवाई है


बहुत अच्छी गज़ल ..

राज भाटिय़ा April 21, 2011 at 11:35 AM  

दौलत ने दो फाड़ कर दिया
कौन यहाँ किसका भाई है
सत्य वचन जी

Udan Tashtari April 21, 2011 at 5:08 PM  

वाह गिरीश भाई..क्या खूब कहा...

वाणी गीत April 21, 2011 at 6:53 PM  

सच के हिस्से तन्हाई है ...
मित्र समझकर बात कही थी ,
अब दोनों में रुसवाई है ...

जैसे जख्मों को शब्द मिल गए हों ...
बेहतरीन !

संजय भास्‍कर April 21, 2011 at 7:22 PM  

सुन्दर प्रस्तुति....आभार

Unknown April 21, 2011 at 10:27 PM  

शानदार लिखा है आपने. बधाई स्वीकार करें
मेरे ब्लॉग पर आयें और अपनी कीमती राय देकर उत्साह बढ़ाएं
समझ सको तो समझो : अल्लाह वालो, राम वालो

शिवनाथ कुमार April 22, 2011 at 1:25 AM  

बहुत सही और सुन्दर अभिव्यक्ति !!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') April 22, 2011 at 2:39 AM  

बहुत बढ़िया ग़ज़ल भईया... सादर...

vandana gupta April 22, 2011 at 2:59 AM  

मित्र समझ कर बात कही थी
अब दोनों में रुसवाई है

जब-जब सच कहना चाहा है
अपनी जान पे बन आई है
सुख को पकड़ रहा था मैं भी
पता चला
वह परछाई है

शानदार गज़ल्।

Dr (Miss) Sharad Singh April 22, 2011 at 6:51 AM  

किसने सच का साथ दिया है
झूठों की तो बन आई है.

उम्दा शेर...
उम्दा ग़ज़ल....

Amit Chandra April 22, 2011 at 9:18 AM  

बेहतरीन प्रस्तुति। शानदार गजल। आभार।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' April 22, 2011 at 7:09 PM  

छोटी बहर की बहुत उम्दा गजल!
इसे गुनगुनाने मे आनन्द आ गया!

सहज साहित्य April 22, 2011 at 8:30 PM  

आज के ज़माने में सच कहना और फिर उस पर टिके रहना बहुत मुश्किल है ।बहुत प्रभावशाली ग़ज़ल है भाई पंकज जी ।

निवेदिता श्रीवास्तव April 22, 2011 at 10:17 PM  

आज के समय का यही सच है ....आभार !

वीना श्रीवास्तव April 23, 2011 at 6:20 AM  

किसने सच का साथ दिया है
झूठों की तो बन आई है.

सुख को पकड़ रहा था मैं भी
पता चला वह परछाई है

बहुत ही खूबसूरत शेर...वाह...

Rekha a Media Proffessional April 27, 2011 at 3:40 AM  

Pankaj ji aapne sach se roo-b-roo krwaya hai apni is prstuti se....Thanxxxxxxxxxx

Satish Saxena May 1, 2011 at 10:41 PM  

आपकी रचना पर अपने आपको तारीफ के लायक नहीं मानता हूँ ! बस इतना ही कहूँगा कि आपकी सरलता मन पर अमित प्रभाव डालने में सक्षम है !
सादर आभार आपका गिरीश भाई !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') May 4, 2011 at 6:02 AM  

सहजता और सरलता से समग्रता को रेखांकित कर देना तो कोई आपसे ही सीखे भईया... अद्भुत अभिव्यक्ति है.... सादर प्रणाम...

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP