''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / हमको हर सपना भरमाया करता है

>> Thursday, May 5, 2011

हमको वह विश्वास जिताया करता है
अक्सर जो भीतर से आया करता है

पत्थर की मूरत तो पत्थर है बिलकुल
ईश्वर का अहसास बचाया करता है

मैंने दोनों से यारी अब कर ली है
दुःख आता है, सुख भी आया करता है

जख्म मिले हैं अपनों से मिलते ही हैं
वक़्त हमारे घाव मिटाया करता है

अहसानों से दबा हुआ है बेचारा
उफ़ वो कितने बोझ उठाया करता है

उन पर ज्यादा यकीं नहीं करना अच्छा
हमको हर सपना भरमाया करता है

वह मेरा दुश्मन है लेकिन प्यारा है
मेरे ही गीतों का गाया करता है

इक दिन इस दुनिया में प्यार ही जीतेगा
रोज़ मुझे यह स्वप्न लुभाया करता है

पंकज इक राजा है अपनी दुनिया का
सदभावों को रोज लुटाया करता है

16 टिप्पणियाँ:

Amit Chandra May 5, 2011 at 9:14 AM  

इक दिन इस दुनिया में प्यार ही जीतेगा
रोज़ मुझे यह स्वप्न लुभाया करता है

शानदार गजल। आभार।

विशाल May 5, 2011 at 10:44 AM  

मैंने दोनों से यारी अब कर ली है
दुःख आता है, सुख भी आया करता है

बहुत खूब,गिरीश भाई

राज भाटिय़ा May 5, 2011 at 10:53 AM  

बहुत सुंदर रचना गरीश जी, आशा हे आज आप का ब्लाग जरुर ब्लाग परिवार पर होगा.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) May 5, 2011 at 11:24 AM  

जख्म मिले हैं अपनों से मिलते ही हैं
वक़्त हमारे घाव मिटाया करता है
सरल शब्द और गंभीर भाव,वाह ! क्या बात है.पहली ही बार आपके ब्लॉग में प्रवेश किया है.ऐसा लगा कि

जख्म वहाँ पर जाने से कतराते हैं
वह जख्मों को गीत बनाया करता है.
अब बेगानों की बस्ती में रहता है
उसका अपना केवल उसका साया है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 5, 2011 at 11:34 AM  

जख्म मिले हैं अपनों से मिलते ही हैं
वक़्त हमारे घाव मिटाया करता है


वक्त सच ही मरहम का काम करता है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति

nilesh mathur May 5, 2011 at 12:25 PM  

बहुत सुन्दर!

Dr Varsha Singh May 5, 2011 at 1:06 PM  

जख्म मिले हैं अपनों से मिलते ही हैं
वक़्त हमारे घाव मिटाया करता है

EXCELLENT...

Udan Tashtari May 5, 2011 at 1:58 PM  

वाह!! हम तो संग में गाने लगे पढ़ते पढ़्ते.

Rajeev Bharol May 5, 2011 at 3:44 PM  

Bahut hee achchee gazal hai Pankaj ji.

Satish Saxena May 5, 2011 at 11:28 PM  

पत्थर की मूरत तो पत्थर है बिलकुल
ईश्वर का अहसास बचाया करता है

क्या आनंद दिया है आज आपने भाई जी ! इतनी सरलता से आपने अपनी बात रच दी कि भरोसा सा नहीं होता !

शारदा अरोरा May 6, 2011 at 1:50 AM  

badhiya prastuti

vandana gupta May 6, 2011 at 5:04 AM  

हमको वह विश्वास जिताया करता है
अक्सर जो भीतर से आया करता है

पत्थर की मूरत तो पत्थर है बिलकुल
ईश्वर का अहसास बचाया करता है

आपकी हर गज़ल इतनी शानदार होती है कि डूब जाते है उसमे……………एक से बढकर एक शेर गढे हैं।

Dr. Zakir Ali Rajnish May 6, 2011 at 6:49 AM  

Man ko chhu jane wale sher.

............
ब्लॉग समीक्षा की 13वीं कड़ी।
भारत का गौरवशाली अंतरिक्ष कार्यक्रम!

रमेश शर्मा May 6, 2011 at 8:19 AM  

बेहद मर्मस्पर्शी और सच्ची सीख देने वाली पंक्तियाँ . ग्रहणीय संग्रहणीय स्मरणीय.... और विचारणीय भी ...

महेन्‍द्र वर्मा May 6, 2011 at 8:40 AM  

पंकज इक राजा है अपनी दुनिया का
सदभावों को रोज लुटाया करता है

महेन्‍द्र वर्मा May 6, 2011 at 8:42 AM  

पंकज इक राजा है अपनी दुनिया का
सदभावों को रोज लुटाया करता है

इस शेर में यथार्थ कुछ ज्यादा ही छलक रहा है, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने।

सुनिए गिरीश पंकज को

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