''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / मेरा देवता राम भी है तो....वही कभी रहमान हो गया

>> Saturday, May 21, 2011

फिर से लहूलुहान हो गया
फिर तेरा अहसान हो गया

दिल के बेहद छोटे थे वे
किनके घर मेहमान हो गया

कुर्सी क्या पाई उनको तो
खुद पर बड़ा गुमान हो गया

ठोकर खाई बार-बार तो
दुनिया क्या है ज्ञान हो गया 

अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया

मुझे देख वो ना मुस्काया
उसके मन का भान हो गया

अपनी शक्ति को पहचाना
लो मैं भी भगवान् हो गया

निंदक मुझको नहीं डराते
मैं उनसे अनजान हो गया

जिसके मन में करुणा जागी
वही शख्स इंसान हो गया 

झलक दिखा कर छिप जाते हो
प्रिय तुमसे परेशान हो गया

कीचड फेंको, गाली भी दो
यह कितना आसान हो गया

मेरा देवता राम भी है तो
वही कभी रहमान हो गया 

माँजा है हालात ने पंकज 
हर संकट वरदान हो गया

16 टिप्पणियाँ:

Kailash Sharma May 21, 2011 at 8:00 AM  

अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया

...बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर एक सटीक सन्देश देता और बहुत उम्दा..आभार

vandana gupta May 21, 2011 at 8:10 AM  

्बेहद उम्दा गज़ल्।

Amit Chandra May 21, 2011 at 9:21 AM  

हमेशा की शानदार। सादर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 21, 2011 at 10:07 AM  

जिसके मन में करुणा जागी
वही शख्स इंसान हो गया

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार May 21, 2011 at 10:07 AM  

आदरणीय गिरीश पंकज जी
सादर अभिवादन !

मेरा देवता राम भी है तो
वही कभी रहमान हो गया

अपनी शक्ति को पहचाना
लो मैं भी भगवान हो गया


वाह ! क्या बात है गिरीश भाईजी!


और
कीचड फेंको, गाली भी दो
यह कितना आसान हो गया

ऐसों को ही तो जवाब दिया है मैंने अपनी ताज़ा पोस्ट में …

अच्छी रचना है , बधाई !
हार्दिक शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

ASHOK BAJAJ May 21, 2011 at 11:09 AM  

जिसको माना था मैंने इन्सान ,
वो धन पाकर शैतान हो गया .

दीपक 'मशाल' May 21, 2011 at 5:55 PM  

har sher ek sabak laga...

DR. ANWER JAMAL May 21, 2011 at 6:58 PM  

राम तेरे लिए रहमान हो गया
समझ तू अब इंसान हो गया

क्यों कहा कि मैं भगवान हो गया
कैसे आपको झूठा गुमान हो गया

आइये ज़कात दीजिए नादारों को
और कहिए मैं मुसलमान हो गया

नई तहज़ीब के धोखे से बचाओ
गर बच्चा तुम्हारा जवान हो गया

लोकतंत्र की अजब है कहानी
लुटेरा ही प्रधान हो गया

ज़िक़्र ए मौला से है ज़िंदगी
दिल ए ग़ाफ़िल श्मशान हो गया

बीवी को माशूक़ बना लिया जबसे
जीना बहुत आसान हो गया

Nice post.

Dr Varsha Singh May 21, 2011 at 7:55 PM  

कीचड फेंको, गाली भी दो
यह कितना आसान हो गया

मेरा देवता राम भी है तो
वही कभी रहमान हो गया

Wow! Nice one...

Dr (Miss) Sharad Singh May 22, 2011 at 1:36 AM  

बहुत खूब...
उम्दा ग़ज़ल...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') May 22, 2011 at 2:48 AM  

बहुत सुंदर गज़ल भैया....
सादर....

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami May 22, 2011 at 10:38 AM  

"जिसके मन में करुणा जागी
वही शख्स इंसान हो गया "

क्या बात है ! बहुत शानदार !

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " May 23, 2011 at 2:22 AM  

बहुत सुन्दर गज़ल
sadar
laxmi narayan lahare

गौरव शर्मा "भारतीय" May 23, 2011 at 8:45 AM  

अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया

वाह बेहतरीन पंक्तियाँ.........आभार !!

महेन्‍द्र वर्मा May 23, 2011 at 9:10 AM  

ठोकर खाई बार-बार तो
दुनिया क्या है ज्ञान हो गया

अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया

ज़िंदगी का अनुभव समाहित है इन पंक्तियों में।
प्रेरणास्पद रचना के लिए बधाई , पंकज जी।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') May 28, 2011 at 8:17 AM  

शानदार गज़ल भैया.... सादर..

सुनिए गिरीश पंकज को

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