नई ग़ज़ल / मेरा देवता राम भी है तो....वही कभी रहमान हो गया
>> Saturday, May 21, 2011
फिर से लहूलुहान हो गया
फिर तेरा अहसान हो गया
दिल के बेहद छोटे थे वे
किनके घर मेहमान हो गया
कुर्सी क्या पाई उनको तो
खुद पर बड़ा गुमान हो गया
ठोकर खाई बार-बार तो
खुद पर बड़ा गुमान हो गया
ठोकर खाई बार-बार तो
दुनिया क्या है ज्ञान हो गया
अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया
मुझे देख वो ना मुस्काया
उसके मन का भान हो गया
अपनी शक्ति को पहचाना
लो मैं भी भगवान् हो गया
मैं उनसे अनजान हो गया
जिसके मन में करुणा जागी
वही शख्स इंसान हो गया
झलक दिखा कर छिप जाते हो
प्रिय तुमसे परेशान हो गया
कीचड फेंको, गाली भी दो
यह कितना आसान हो गया
मेरा देवता राम भी है तो
वही कभी रहमान हो गया
माँजा है हालात ने पंकज
हर संकट वरदान हो गया
16 टिप्पणियाँ:
अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया
...बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर एक सटीक सन्देश देता और बहुत उम्दा..आभार
्बेहद उम्दा गज़ल्।
हमेशा की शानदार। सादर।
जिसके मन में करुणा जागी
वही शख्स इंसान हो गया
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
आदरणीय गिरीश पंकज जी
सादर अभिवादन !
मेरा देवता राम भी है तो
वही कभी रहमान हो गया
अपनी शक्ति को पहचाना
लो मैं भी भगवान हो गया
वाह ! क्या बात है गिरीश भाईजी!
और
कीचड फेंको, गाली भी दो
यह कितना आसान हो गया
ऐसों को ही तो जवाब दिया है मैंने अपनी ताज़ा पोस्ट में …
अच्छी रचना है , बधाई !
हार्दिक शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जिसको माना था मैंने इन्सान ,
वो धन पाकर शैतान हो गया .
har sher ek sabak laga...
राम तेरे लिए रहमान हो गया
समझ तू अब इंसान हो गया
क्यों कहा कि मैं भगवान हो गया
कैसे आपको झूठा गुमान हो गया
आइये ज़कात दीजिए नादारों को
और कहिए मैं मुसलमान हो गया
नई तहज़ीब के धोखे से बचाओ
गर बच्चा तुम्हारा जवान हो गया
लोकतंत्र की अजब है कहानी
लुटेरा ही प्रधान हो गया
ज़िक़्र ए मौला से है ज़िंदगी
दिल ए ग़ाफ़िल श्मशान हो गया
बीवी को माशूक़ बना लिया जबसे
जीना बहुत आसान हो गया
Nice post.
कीचड फेंको, गाली भी दो
यह कितना आसान हो गया
मेरा देवता राम भी है तो
वही कभी रहमान हो गया
Wow! Nice one...
बहुत खूब...
उम्दा ग़ज़ल...
बहुत सुंदर गज़ल भैया....
सादर....
"जिसके मन में करुणा जागी
वही शख्स इंसान हो गया "
क्या बात है ! बहुत शानदार !
बहुत सुन्दर गज़ल
sadar
laxmi narayan lahare
अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया
वाह बेहतरीन पंक्तियाँ.........आभार !!
ठोकर खाई बार-बार तो
दुनिया क्या है ज्ञान हो गया
अपना समझा था जिस घर को
वहीं मेरा अपमान हो गया
ज़िंदगी का अनुभव समाहित है इन पंक्तियों में।
प्रेरणास्पद रचना के लिए बधाई , पंकज जी।
शानदार गज़ल भैया.... सादर..
Post a Comment