नई ग़ज़ल / सच बोलता है वो मगर ये बोलता है क्यूं...?
>> Saturday, July 23, 2011
सुधी पाठक जानते ही है की उर्दू में तरही मिसरा दिया जाता है, जिस पर ग़ज़ल कहनी पड़ती है. जैसे हिंदी में ''समस्यापूर्ति'' की प्रथा रही है. मुझे पिछले दिनों एक लाइन दी गयी-''शायद वो मेरा ख़्वाब था, शायद ख़याल था''. इस पर पूरी ग़ज़ल कहनी थी. मैंने कोशिश की. वही कोशिश यहाँ पेश कर रहा हूँ. शायद इसे भी आपका स्नेह मिले. देखिये...
हर आदमी सुखी था वहां क्या कमाल था.
''शायद वो मेरा ख़्वाब था, शायद ख़याल था''
रोटी के वास्ते बिकी बाज़ार में अस्मत
यूं भूख मेरी मिट गयी लेकिन मलाल था
जम्हूरियत को कब तलक देते रहें लहू
इंसान तो मरते रहे ज़िंदा सवाल था
सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था
मिल जाएगा इनाम तो ईमान को बेचा
जिसने लुटाया खुद को वो ही मालामाल था
वो आदमी सही है मेरा ये ख़याल था
लेकिन असलमें वो भी फरेबी का जाल था
सच बोलता है वो मगर ये बोलता है क्यूं
साहब की नज़र में यही पंकज बवाल था
12 टिप्पणियाँ:
सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था
खूबसूरत शब्द , बधाई
सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था
बढ़िया ग़ज़ल भईया...
सादर...
बहुत खूबसूरत गज़ल ... आज सच कौन सुनना चाहता है ?
यथार्थपरक बेहतरीन ग़ज़ल...
Sach kahun to ....babal likha hai..
खूबसूरत गजल...आभार.
सादर,
डोरोथी.
सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था
हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने
sunder gazal....
रोटी के वास्ते बिकी बाज़ार में अस्मत
यूं भूख मेरी मिट गयी लेकिन मलाल था
आपकी संवेदन्शीलता को सलाम , कथ्य ,शब्द दोनों ही प्रशंसनीय , शुभकामनायें जी /
shabd heen kar diya..pahle do char baar padhunga phir comment karunga..sadar pranam ke sath
बेहद लाजवाब गज़ल्…………हर शेर यथार्थ को उजागर करता हुआ।
सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था
यथार्थ को उद्घाटित करती ग़ज़ल।
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