''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

नई ग़ज़ल / सच बोलता है वो मगर ये बोलता है क्यूं...?

>> Saturday, July 23, 2011

सुधी पाठक जानते ही है की उर्दू में तरही मिसरा दिया जाता है, जिस पर ग़ज़ल कहनी पड़ती है. जैसे हिंदी में ''समस्यापूर्ति'' की प्रथा रही है. मुझे पिछले दिनों एक लाइन दी गयी-''शायद वो मेरा ख़्वाब था, शायद ख़याल था''. इस पर पूरी ग़ज़ल कहनी थी. मैंने कोशिश की. वही कोशिश यहाँ पेश कर रहा हूँ. शायद इसे भी आपका स्नेह मिले. देखिये...


हर आदमी सुखी था वहां क्या कमाल था. 
''शायद वो मेरा ख़्वाब था, शायद ख़याल था''

रोटी के वास्ते बिकी बाज़ार में अस्मत
यूं भूख मेरी मिट गयी लेकिन मलाल था

जम्हूरियत को कब तलक देते रहें लहू
इंसान तो मरते रहे ज़िंदा सवाल था

सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था

मिल जाएगा इनाम तो ईमान को बेचा
जिसने लुटाया खुद को वो ही मालामाल था

वो आदमी सही है मेरा ये ख़याल था
लेकिन असलमें वो भी फरेबी का जाल था   

सच बोलता है वो मगर ये बोलता है क्यूं
साहब की नज़र में यही पंकज बवाल था

12 टिप्पणियाँ:

Unknown July 23, 2011 at 6:20 PM  

सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था

खूबसूरत शब्द , बधाई

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') July 23, 2011 at 8:36 PM  

सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था

बढ़िया ग़ज़ल भईया...
सादर...

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 23, 2011 at 10:23 PM  

बहुत खूबसूरत गज़ल ... आज सच कौन सुनना चाहता है ?

Dr (Miss) Sharad Singh July 23, 2011 at 10:38 PM  

यथार्थपरक बेहतरीन ग़ज़ल...

Amrita Tanmay July 24, 2011 at 12:36 AM  

Sach kahun to ....babal likha hai..

Dorothy July 24, 2011 at 3:04 AM  

खूबसूरत गजल...आभार.
सादर,
डोरोथी.

Dr Varsha Singh July 24, 2011 at 7:24 AM  

सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था

हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने

सागर July 25, 2011 at 7:49 PM  

sunder gazal....

udaya veer singh July 25, 2011 at 8:38 PM  

रोटी के वास्ते बिकी बाज़ार में अस्मत
यूं भूख मेरी मिट गयी लेकिन मलाल था
आपकी संवेदन्शीलता को सलाम , कथ्य ,शब्द दोनों ही प्रशंसनीय , शुभकामनायें जी /

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" July 25, 2011 at 9:24 PM  

shabd heen kar diya..pahle do char baar padhunga phir comment karunga..sadar pranam ke sath

vandana gupta July 26, 2011 at 4:26 AM  

बेहद लाजवाब गज़ल्…………हर शेर यथार्थ को उजागर करता हुआ।

महेन्‍द्र वर्मा July 27, 2011 at 9:03 AM  

सच के लिए लड़ा, मरा इन्साफ के लिए
वह आदमी नहीं था ज़िंदा मिसाल था

यथार्थ को उद्घाटित करती ग़ज़ल।

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP