''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / कब तलक दिल्ली नपुंसक-सी रहेगी?

>> Wednesday, September 7, 2011

खून का जैसे समन्दर गया है
आदमी कितना भयंकर बन गया है

मर रहे विस्फोट में नित आदमी
रक्तरंजित आज मंजर बन गया है

हाथ को बांधे हुए है आज दिल्ली
देश का ये क्या मुकद्दर बन गया है

कब तलक दिल्ली नपुंसक-सी रहेगी?
कौन है, क्या ''पाक'' से वो डर गया है?

खून करना क्या जिहादी काम है?
धर्म भी अब हाय बर्बर बन गया है

सिर्फ पागलपन में हत्याएं हुई हैं
मज़हबी? कितना सितमगर बन गया है

अब तलक ज़िंदा यहाँ आतंक है?
देश मेरा माफियाघर बन गया है

जान लेते लोग अपनों की यहाँ पर
आदमी कैसा 'जनावर' बन गया है

'पाप' कर के हाथ जोड़े या खुदा
आदमी क्या एक जोकर बन गया है

शर्म दिल्ली अब करो कुछ शर्म तुम
बस घडा है पाप का ये भर गया है

10 टिप्पणियाँ:

shikha varshney September 7, 2011 at 8:25 AM  

पाप' कर के हाथ जोड़े या खुदा
आदमी क्या एक जोकर बन गया hai.
vakai..
sharm bhi ab inko aati nahi hai.
dheet is kadar ye vatan ho gaya hai.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार September 7, 2011 at 8:39 AM  





आदरणीय गिरीश जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

अच्छी रचना है…
जान लेते लोग अपनों का यहाँ पर
आदमी कैसा 'जनावर' बन गया है

'जनावर' का प्रयोग बहुत भाया ।

पूरी रचना में भाव शिल्प पर भारी हैं … बधाई !
शर्म दिल्ली अब करो कुछ शर्म तुम
बस घडा है पाप ये भर गया है


मैंने भी लिखा था -
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
आतंकी-गद्दारों की
मेवों से करती मनुहार !
भारत मां के बेटों का
करना चाहो नरसंहार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !

इस लिंक द्वारा अवश्य देखें ।

… और, अंत में आपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Sunil Kumar September 7, 2011 at 8:39 AM  

सही सवाल है आपका और उत्तर भी दे दिया .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार September 7, 2011 at 8:43 AM  

…और हां ,
मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी आपकी प्रतीक्षा है…

यहां हैं दो राष्ट्रभक्ति रचनाएं
… एक सूचना के साथ !

Unknown September 7, 2011 at 9:12 AM  

खून करना क्या जिहादी काम है?
धर्म भी अब हाय बर्बर बन गया है

वह गिरीश जी बेहद खूबसूरत शेर लिखे है . काव्य की उत्क्रिस्ट कृति बधाई

Satish Saxena September 7, 2011 at 8:42 PM  

बहुत खूब पंकज भाई !
शुभकामनायें आपको !

नीरज गोस्वामी September 8, 2011 at 4:41 AM  

बेजोड़ रचना...

नीरज

वाणी गीत September 8, 2011 at 6:34 PM  

यह दुहराव इतनी बार हुआ कि कोई प्रतिक्रिया देना बेमानी सा लगता है , अब तो बस कुछ कर ही दिखाया जाये!

Dr (Miss) Sharad Singh September 9, 2011 at 1:33 AM  

सच को रेखांकित करती रचना....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') September 10, 2011 at 11:25 PM  

जन जन आक्रोश है भईया आपकी रचना....
सादर प्रणाम...

सुनिए गिरीश पंकज को

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