''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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महंगाई की डायन खाए, कुर्सी ये मक्कार मिली है

>> Friday, September 16, 2011

पीड़ा ही हर बार मिली है 
ये कैसी सरकार मिली है

महंगाई की डायन खाए,
कुर्सी ये मक्कार मिली है

ये कैसी कायर दिल्ली है
बेबस और लाचार मिली है

दर्द न समझे ये जनता का
कुर्सी बड़ी ''छिनार'' मिली है

बदलेंगे अब बहुत हो गया
बड़ी खटारा कार मिली है   
 
जीयें कैसे बोलो आखिर ?
कदम-कदम पर हार मिली है  

बहते हैं अब खून के आंसू
बेगैरत सरकार मिली है 

15 टिप्पणियाँ:

Pallavi saxena September 16, 2011 at 7:47 AM  

अच्छी कविता है आपकी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

Dr (Miss) Sharad Singh September 16, 2011 at 7:54 AM  

पीड़ा ही हर बार मिली है
ये कैसी सरकार मिली है
महंगाई की डायन खाए,
कुर्सी ये मक्कार मिली है

शब्दशः सच है...वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती ग़ज़ल.

PRAN SHARMA September 16, 2011 at 8:22 AM  

SEEDHE SAADE SHABDON MEIN AAPKEE
SAAFGOOEE KEE DAAD DETAA HOON.

shikha varshney September 16, 2011 at 8:39 AM  

ये कैसी कायर दिल्ली है
बेबस और लाचार मिली है
शब्द शब्द पीड़ा छलक रही है.

Unknown September 16, 2011 at 8:45 AM  

दर्द न समझे ये जनता का
कुर्सी बड़ी ''छिनार'' मिली है

waah girish ji waah

ASHOK BAJAJ September 16, 2011 at 9:43 AM  

बदलेंगे अब बहुत हो गया
बड़ी खटारा कार मिली है .

सम-सामयिक कविता के लिए बधाई .

ASHOK BAJAJ September 16, 2011 at 9:47 AM  

महंगाई के इस काले युग में ,
जिन्दगी बड़ी लाचार मिली है

संगीता स्वरुप ( गीत ) September 16, 2011 at 10:32 AM  

वर्तमान का सच उकेर दिया है इस गज़ल में ..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ September 16, 2011 at 11:03 AM  

क्या बात है...वाह!

सदा September 17, 2011 at 3:16 AM  

जीयें कैसे बोलो आखिर ?
कदम-कदम पर हार मिली है

बहुत ही अच्‍छी रचना ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') September 18, 2011 at 12:16 AM  

ये कैसी कायर दिल्ली है
बेबस और लाचार मिली है

उम्दा ग़ज़ल भईया....
सादर प्रणाम...

Dr Varsha Singh September 18, 2011 at 1:49 AM  

हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने !

Dr. Zakir Ali Rajnish September 18, 2011 at 6:32 PM  

लाजवाब रचना। मन प्रसन्‍न हो गया।

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कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्‍मुक्‍त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" September 18, 2011 at 9:48 PM  

ek kavi man kee peeda hai yah..shandar prastuti .badhayee aaur sadar pranam ke sath

virendra sharma September 18, 2011 at 10:30 PM  

ये कैसी कायर दिल्ली है
बेबस और लाचार मिली है
मम्मी जी के भारत की ,मंद बुद्धि बालक की ,काग भगोड़े की परछाईं जिस दिल्ली पर पड़ती हो जिसका प्रधान मंत्री दिखाऊ हो ,उठाऊ हो उस दिल्ली का ,दूध की रखवाली उस बिल्ली का सजीव चित्रण .

सुनिए गिरीश पंकज को

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