Friday, September 16, 2011

महंगाई की डायन खाए, कुर्सी ये मक्कार मिली है

पीड़ा ही हर बार मिली है 
ये कैसी सरकार मिली है

महंगाई की डायन खाए,
कुर्सी ये मक्कार मिली है

ये कैसी कायर दिल्ली है
बेबस और लाचार मिली है

दर्द न समझे ये जनता का
कुर्सी बड़ी ''छिनार'' मिली है

बदलेंगे अब बहुत हो गया
बड़ी खटारा कार मिली है   
 
जीयें कैसे बोलो आखिर ?
कदम-कदम पर हार मिली है  

बहते हैं अब खून के आंसू
बेगैरत सरकार मिली है 

15 comments:

  1. अच्छी कविता है आपकी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. पीड़ा ही हर बार मिली है
    ये कैसी सरकार मिली है
    महंगाई की डायन खाए,
    कुर्सी ये मक्कार मिली है

    शब्दशः सच है...वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती ग़ज़ल.

    ReplyDelete
  3. SEEDHE SAADE SHABDON MEIN AAPKEE
    SAAFGOOEE KEE DAAD DETAA HOON.

    ReplyDelete
  4. ये कैसी कायर दिल्ली है
    बेबस और लाचार मिली है
    शब्द शब्द पीड़ा छलक रही है.

    ReplyDelete
  5. दर्द न समझे ये जनता का
    कुर्सी बड़ी ''छिनार'' मिली है

    waah girish ji waah

    ReplyDelete
  6. बदलेंगे अब बहुत हो गया
    बड़ी खटारा कार मिली है .

    सम-सामयिक कविता के लिए बधाई .

    ReplyDelete
  7. महंगाई के इस काले युग में ,
    जिन्दगी बड़ी लाचार मिली है

    ReplyDelete
  8. वर्तमान का सच उकेर दिया है इस गज़ल में ..

    ReplyDelete
  9. जीयें कैसे बोलो आखिर ?
    कदम-कदम पर हार मिली है

    बहुत ही अच्‍छी रचना ।

    ReplyDelete
  10. ये कैसी कायर दिल्ली है
    बेबस और लाचार मिली है

    उम्दा ग़ज़ल भईया....
    सादर प्रणाम...

    ReplyDelete
  11. हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने !

    ReplyDelete
  12. ek kavi man kee peeda hai yah..shandar prastuti .badhayee aaur sadar pranam ke sath

    ReplyDelete
  13. ये कैसी कायर दिल्ली है
    बेबस और लाचार मिली है
    मम्मी जी के भारत की ,मंद बुद्धि बालक की ,काग भगोड़े की परछाईं जिस दिल्ली पर पड़ती हो जिसका प्रधान मंत्री दिखाऊ हो ,उठाऊ हो उस दिल्ली का ,दूध की रखवाली उस बिल्ली का सजीव चित्रण .

    ReplyDelete