पीड़ा ही हर बार मिली है
ये कैसी सरकार मिली है
कुर्सी ये मक्कार मिली है
ये कैसी कायर दिल्ली है
बेबस और लाचार मिली है
दर्द न समझे ये जनता का
कुर्सी बड़ी ''छिनार'' मिली है
बदलेंगे अब बहुत हो गया
बड़ी खटारा कार मिली है
जीयें कैसे बोलो आखिर ?
कदम-कदम पर हार मिली है
बहते हैं अब खून के आंसू
बेगैरत सरकार मिली है
अच्छी कविता है आपकी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
पीड़ा ही हर बार मिली है
ReplyDeleteये कैसी सरकार मिली है
महंगाई की डायन खाए,
कुर्सी ये मक्कार मिली है
शब्दशः सच है...वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती ग़ज़ल.
SEEDHE SAADE SHABDON MEIN AAPKEE
ReplyDeleteSAAFGOOEE KEE DAAD DETAA HOON.
ये कैसी कायर दिल्ली है
ReplyDeleteबेबस और लाचार मिली है
शब्द शब्द पीड़ा छलक रही है.
दर्द न समझे ये जनता का
ReplyDeleteकुर्सी बड़ी ''छिनार'' मिली है
waah girish ji waah
बदलेंगे अब बहुत हो गया
ReplyDeleteबड़ी खटारा कार मिली है .
सम-सामयिक कविता के लिए बधाई .
महंगाई के इस काले युग में ,
ReplyDeleteजिन्दगी बड़ी लाचार मिली है
वर्तमान का सच उकेर दिया है इस गज़ल में ..
ReplyDeleteक्या बात है...वाह!
ReplyDeleteजीयें कैसे बोलो आखिर ?
ReplyDeleteकदम-कदम पर हार मिली है
बहुत ही अच्छी रचना ।
ये कैसी कायर दिल्ली है
ReplyDeleteबेबस और लाचार मिली है
उम्दा ग़ज़ल भईया....
सादर प्रणाम...
हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने !
ReplyDeleteलाजवाब रचना। मन प्रसन्न हो गया।
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कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
ek kavi man kee peeda hai yah..shandar prastuti .badhayee aaur sadar pranam ke sath
ReplyDeleteये कैसी कायर दिल्ली है
ReplyDeleteबेबस और लाचार मिली है
मम्मी जी के भारत की ,मंद बुद्धि बालक की ,काग भगोड़े की परछाईं जिस दिल्ली पर पड़ती हो जिसका प्रधान मंत्री दिखाऊ हो ,उठाऊ हो उस दिल्ली का ,दूध की रखवाली उस बिल्ली का सजीव चित्रण .