यह रचना फेसबुक पर भी दी है, मगर लगा, अपने प्रिय पाठकों-मित्रों के लिए ब्लॉग में भी देनी चाहिए. इसलिए...बताएं, कैसा प्रयास है? ज़िंदगी का जो हक है अदा मैं करूँ हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ
ये अन्धेरा मिटाने दिया मैं बनूँ
काम अक्सर ही ऐसे खुदा मैं करूँ
काम हो जाये मकसद हमारा यही
तू अगर कर न पाए बता मैं करूँ
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
उसकी फितरत मुझे अब पता चल गई
वो करे है ज़फ़ा तो वफ़ा मैं करूँ
जो यहाँ गिर पड़े मैं उठाऊँ उन्हें
आदमी हूँ अगर यह सदा मैं करूँ
प्यार करना हमेशा लगे है सज़ा
किन्तु पंकज यही फिर खता मैं करूँ
काम अक्सर ही ऐसे खुदा मैं करूँ
तू अगर कर न पाए बता मैं करूँ
रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
वो करे है ज़फ़ा तो वफ़ा मैं करूँ
आदमी हूँ अगर यह सदा मैं करूँ
किन्तु पंकज यही फिर खता मैं करूँ
bahut sunder abhivyakti...
ReplyDeleteज़िंदगी का जो हक है अदा मैं करूँ
ReplyDeleteहर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ... bhaut khubsurat panktiya....
काम हो जाये मकसद हमारा यही
ReplyDeleteतू अगर कर न पाए बता मैं करूँ
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
....क्या सुन्दर भाव हैं ! लाज़वाब अभिव्यक्ति..
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
ReplyDeleteरोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
बेहतरीन सोच.
ज़िंदगी का जो हक है अदा मैं करूँ
ReplyDeleteहर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ
आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर ग़ज़ल...
Waah ...
ReplyDeleteहवा से उलझे कभी सायों से लड़े हैं लोग
बहुत अज़ीम हैं यारों बहुत बड़े हैं लोग
इसी तरह से बुझे जिस्म जल उठें शायद
सुलगती रेत पे ये सोच कर पड़े हैं लोग
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
ReplyDeleteरोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
वाह क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
पूरी ग़ज़ल उम्दा है !
उसकी फितरत मुझे अब पता चल गई
ReplyDeleteवो करे है ज़फ़ा तो वफ़ा मैं करूँ
बहुत सुन्दर भाव संजोये अच्छी गज़ल
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteये अन्धेरा मिटाने दिया मैं बनूँ
ReplyDeleteकाम अक्सर ही ऐसे खुदा मैं करूँ
बड़ी मुक़द्दस सी ग़ज़ल है भईया...
"आपकी ये तमन्ना सभीजन की हो
आपकी ही तरहा ये दुआ मैं करूँ"
सादर प्रणाम....
वाह !!! बेहतरीन अभिव्यक्ति सर... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteकुछ लोग हैं जिनकी टिप्पणियों के बिना मुझे हमेशा मेरी पोस्ट अधूरी सी लगती है आप भी उन्हीं में से एक हो समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है साथ ही आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी की प्रतीक्षा भी धन्यवाद.... :)
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
काम हो जाये मकसद हमारा यही
ReplyDeleteतू अगर कर न पाए बता मैं करूँ
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
sabki soch aisi ban jaye to swarg door nahi isi dharti par hai.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
ReplyDeleteरोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
बेहतरीन.
बहुत बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteपहिली बार आज मौका मिला है ब्लॉग में आने का... आनंद आ गया आपकी ग़ज़ल पढ़कर जिसमें बड़ी सादगी से आपने आम आदमी के दर्द निवारण के लिए इंसान को अपने फ़र्ज़ व दायित्व बोध का स्मरण कराया है...
ReplyDeleteआभार...
खुबसूरत ग़ज़ल....
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