Tuesday, September 20, 2011

ग़ज़ल / हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ........

यह रचना फेसबुक पर भी दी है, मगर लगा, अपने प्रिय पाठकों-मित्रों के लिए ब्लॉग में भी देनी चाहिए. इसलिए...बताएं, कैसा प्रयास है? 
 
ज़िंदगी का जो हक है अदा मैं करूँ
हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ
 
ये अन्धेरा मिटाने दिया मैं बनूँ
काम अक्सर ही ऐसे खुदा मैं करूँ
 
काम हो जाये मकसद हमारा यही
तू अगर कर न पाए बता मैं करूँ
 
भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
 
उसकी फितरत मुझे अब पता चल गई
वो करे है ज़फ़ा तो वफ़ा मैं करूँ
 
जो यहाँ गिर पड़े मैं उठाऊँ उन्हें
आदमी हूँ अगर यह सदा मैं करूँ
 
प्यार करना हमेशा लगे है सज़ा
किन्तु पंकज यही फिर खता मैं करूँ

17 comments:

  1. ज़िंदगी का जो हक है अदा मैं करूँ
    हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ... bhaut khubsurat panktiya....

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  2. काम हो जाये मकसद हमारा यही
    तू अगर कर न पाए बता मैं करूँ

    भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
    रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ

    ....क्या सुन्दर भाव हैं ! लाज़वाब अभिव्यक्ति..

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  3. भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
    रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
    बेहतरीन सोच.

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  4. ज़िंदगी का जो हक है अदा मैं करूँ
    हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ

    आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर ग़ज़ल...

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  5. Waah ...

    हवा से उलझे कभी सायों से लड़े हैं लोग
    बहुत अज़ीम हैं यारों बहुत बड़े हैं लोग

    इसी तरह से बुझे जिस्म जल उठें शायद
    सुलगती रेत पे ये सोच कर पड़े हैं लोग

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  6. भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
    रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ


    वाह क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
    पूरी ग़ज़ल उम्दा है !

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  7. उसकी फितरत मुझे अब पता चल गई
    वो करे है ज़फ़ा तो वफ़ा मैं करूँ

    बहुत सुन्दर भाव संजोये अच्छी गज़ल

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  8. ये अन्धेरा मिटाने दिया मैं बनूँ
    काम अक्सर ही ऐसे खुदा मैं करूँ

    बड़ी मुक़द्दस सी ग़ज़ल है भईया...

    "आपकी ये तमन्ना सभीजन की हो
    आपकी ही तरहा ये दुआ मैं करूँ"

    सादर प्रणाम....

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  9. वाह !!! बेहतरीन अभिव्यक्ति सर... बहुत बढ़िया
    कुछ लोग हैं जिनकी टिप्पणियों के बिना मुझे हमेशा मेरी पोस्ट अधूरी सी लगती है आप भी उन्हीं में से एक हो समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है साथ ही आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी की प्रतीक्षा भी धन्यवाद.... :)
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  10. काम हो जाये मकसद हमारा यही
    तू अगर कर न पाए बता मैं करूँ

    भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
    रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
    वाह ...बहुत ही बढि़या ।

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  11. sabki soch aisi ban jaye to swarg door nahi isi dharti par hai.

    sunder abhivyakti.

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  12. भूखा-प्यासा न होवे पड़ोसी मेरा
    रोज़ खाने से पहले पता मैं करूँ
    बेहतरीन.

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  13. बहुत बहुत सुन्दर...

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  14. पहिली बार आज मौका मिला है ब्लॉग में आने का... आनंद आ गया आपकी ग़ज़ल पढ़कर जिसमें बड़ी सादगी से आपने आम आदमी के दर्द निवारण के लिए इंसान को अपने फ़र्ज़ व दायित्व बोध का स्मरण कराया है...
    आभार...

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  15. खुबसूरत ग़ज़ल....

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