वे भी दुनियादार हो गए
बस मतलब के यार हो गए
लगा फ़ायदा हो जायेगा
फ़ौरन ही बाज़ार हो गए
मुस्काना ही भूल गए हैं
कहाँ के थानेदार हो गए
दौलत पा कर फूल गए हैं
क्या अजीब किरदार हो गए
पहले सज्जन-से लगते थे
अब तो बस अखबार हो गए
जिसकी कोइ क़द्र नहीं है
हम तो ऐसा प्यार हो गए
बहार से वे मस्त-मस्त हैं
भीतर से बीमार हो गए
वक़्त ने उनको बदल दिया है
झूठों के सरदार हो गए
पद की माया भी क्या माया
ऐंठन में सरकार हो गए
फूट रही है उन्हे जवानी
जबकि 'फिफ्टी' पार हो गए
परिवर्तन होगा, बस निकलें
लो हम भी तैयार हो गए
माँ -बाप वृद्धाश्रम में हैं
बेटे क्यों गद्दार हो गए
हर पल नैतिकता की बातें
पंकज तुम बेकार हो गए
बहुत बढिया!!
ReplyDelete"पहले सज्जन-से लगते थे
ReplyDeleteअब तो बस अखबार हो गए"
क्या बात है ! बहुत खूब!
खूबसूरत गज़ल ...बहुत कुछ कह गयी आपकी यह रचना
ReplyDeleteमाँ -बाप वृद्धाश्रम में हैं
ReplyDeleteबेटे क्यों गद्दार हो गए
हर पल नैतिकता की बातें
पंकज तुम बेकार हो गए
यथार्थ की सुन्दर प्रस्तुति...
♥
ReplyDeleteलगा फ़ायदा हो जायेगा
फ़ौरन ही बाज़ार हो गए
सच है … ज़माने का यही चलन है अब …
गिरीश जी बहुत भाव भरी ग़ज़ल के लिए आभार एवं बधाई !
हार्दिक शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
गिरीश जी, बडी गजब की गजल रची है आपने। सचमुच मजाआ गया।
ReplyDelete------
आप चलेंगे इस महाकुंभ में...?
...खींच लो जुबान उसकी।
आभार ||
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति पर
बहुत-बहुत बधाई ||
अर्ज किया है-
ReplyDeleteशे‘र आपके लगते जैसे,
चाकू और कटार हो गए।
लगा फ़ायदा हो जायेगा
ReplyDeleteफ़ौरन ही बाज़ार हो गए
क्या शेर है भईया....
खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर प्रणाम....
WAAH GIRISH JI WAAH...BEJOD GHAZAL.
ReplyDeleteआपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Bahut hi jaandaar Rachna.. Aabhar..
ReplyDeleteलगा फैयदा हो जाएगा,
ReplyDeleteफौरन ही बाज़ार होगाए।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.....
समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को हम सब कि और से नवरात्र कि हार्दिक शुभकामनायें...
.http://mhare-anubhav.blogspot.com/