इस दुनिया में शातिर हैं तो अच्छे भी मिल जाते हैं
जैसे कभी-कभी 'सहरा' में फूल नए खिल जाते हैं
मेहनतवाली सूखी रोटी हमको लगती घी से तर
मुफ़्तखोर इस दुनिया में यह बात समझ ना पाते हैं
बहुत अधिक जो मीठा बोले समझो कुछ तो गड़बड़ है
ऐसे लोगों से भी बचना ज्ञानीजन समझाते हैं
जितनी नफ़रत पाली जिसने उतना घुलता रहता है
प्यार बाँटने वाले सबके दिल में जगह बनाते हैं
अगर दोस्त न मिल पाएं तो मेरे पास चले आना
मैं किताब हूँ साथ मेरे ज्ञानी ही वक्त बिताते हैं
धोखा दे कर कामयाब होते हैं माना लोग मगर
अपनी करनी पर आखिर में लोग बहुत पछताते हैं
दुःख में भी जो हँस पाता है वो सच्चा इंसान लगे
ऐसे लोगों से मिलने भगवान् उतर कर आते हैं
माना के प्यारा है अपना लेकिन इतना मत चाहो
बहुत अधिक मीठे में अक्सर कीड़े भी पड़ जाते हैं
उतनी ही तेज़ी है अच्छी जितनी को हम रोक सकें
वरना कुछ नादां फ़ोकट में अपनी जान गंवाते हैं
अपने हाथों पर यकीन करते हैं सच्चे लोग यहाँ
इक दिन वे मंजिल पाते हैं, पंकज राह बनाते हैं
♥
ReplyDeleteआदरणीय भाईजी गिरीश पंकज जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
ग़ज़ल क्या है … सम्पूर्ण दर्शन है …
जितनी ता'रीफ़ करूं … कम है …
मेहनतवाली सूखी रोटी हमको लगती घी से तर
मुफ़्तखोर इस दुनिया में यह बात समझ ना पाते हैं
हमने तो अनुभव किया है इसका …
धोखा दे कर कामयाब होते हैं माना लोग मगर
अपनी करनी पर आखिर में लोग बहुत पछताते हैं
दुःख में भी जो हँस पाता है वो सच्चा इंसान लगे
ऐसे लोगों से मिलने भगवान् उतर कर आते हैं
क्या बात है गिरीश भैया !
भाव पक्ष पूरी तरह उभर कर सामने आया है …
हार्दिक साधुवाद !
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत अधिक जो मीठा बोले समझो कुछ तो गड़बड़ है
ReplyDeleteऐसे लोगों से भी बचना ज्ञानीजन समझाते हैं
Nice .
गर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिसरी क़ंद गरी, क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख मुनक़्क़ा सोंठ मिरच, क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
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जाने क्यों हर गम बड़ा
और हर ख़ुशी छोटी लगे
खुद का दिल जब साफ़ न हो
हर नियत खोटी लगे
हो ज़हन में जो भी
दिखता है वही हर एक जगह
भूख जब हो जोर की
तो चाँद भी रोटी दिखे
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सुना है इन्सान के दुःख दर्द का इलाज मिला है
क्या बुरा है अगर ये अफ़वाह उड़ा दी जाए
किसी ने सच ही कहा है
वो भूख से मरा था
फ़ुटपाथ पे पड़ा था
चादर उठा के देखा तो पेट पे लिखा था
सारे जहां से अच्छा
सारे जहां से अच्छा
हिन्दुस्तां हमारा
हिन्दुस्तां हमारा
भूख लगे तो चाँद भी रोटी नज़र आता है
आगे है ज़माना फिर भी भूख पीछे पीछे
सारी दुनिया की बातें दो रोटियों के नीचे
किसी ने सच ही कहा ...
माँ पत्थर उबालती रही कड़ाही में रात भर
बच्चे फ़रेब खा कर चटाई पर सो गए
चमड़े की झोपड़िया में आग लगी भैया
बरखा न बुझाए बुझाए रुपैया
किसी ने सच ही कहा ...
वो आदमी नहीं मुक़म्मल बयां है
माथे पे उसके चोट का गहरा निशां है
इक दिन मिला था मुझको चिथड़ों में वो
मैने जो पूछा नाम कहा हिन्दुस्तान है हिन्दुस्तान है
चं लोग दुनिया में नसीब लेके आते हैं
बाकी बस आते हैं और यूं ही चले जाते हैं
जाने कब आते हैं और जाने कब जाते हैं
किसी ने सच ही कहा ...
ये बस्ती उन लोगों की बस्ती है
जहां हर गरीब की हस्ती एक एक साँस लेने को तरसती है
इन ऊँची इमारतों में घिर गया आशियाना मेरा
ये अमीर मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
भूख लगे तो चाँद ...
ऐसे काम कीजिए, जिससे आपको दुआ मिले
इस दुनिया में शातिर हैं तो अच्छे भी मिल जाते हैं
ReplyDeleteजैसे कभी-कभी 'सहरा' में फूल नए खिल जाते हैं
हर शेर उम्दा....एक से बढकर एक......मतला तो बहुत ही खूबसूरत है!
वाह... एक मुकम्मल गजल...
ReplyDeleteअपने हाथों पर यकीन करते हैं सच्चे लोग यहाँ
ReplyDeleteइक दिन वे मंजिल पाते हैं, पंकज राह बनाते हैं.. sundar rachna....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशानदार और लाजबाब
ReplyDeleteसुन्दर और सही बात, आभार!
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteआप भी मेरे फेसबुक ब्लाग के मेंबर जरुर बने
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MITRA-MADHUR
अगर दोस्त न मिल पाएं तो मेरे पास चले आना
ReplyDeleteमैं किताब हूँ साथ मेरे ज्ञानी ही वक्त बिताते हैं
यह शेर तो अनमोल रतन है।
ग़ज़ल का हर शेर एक जीवन सूत्र है।
"बहुत अधिक मीठे में अक्सर कीड़े भी पड़ जाते हैं ।"
ReplyDeleteकडवा सच।
मेहनतवाली सूखी रोटी हमको लगती घी से तर
ReplyDeleteमुफ़्तखोर इस दुनिया में यह बात समझ ना पाते हैं
वाह भईया... चुन चुन के मोती जड़े हैं आपने इस ग़ज़ल में... बहुत प्रवाही प्रभावी और बहुत सरस...
सादर प्रणाम...
अपने हाथों पर यकीन करते हैं सच्चे लोग यहाँ
ReplyDeleteइक दिन वे मंजिल पाते हैं, पंकज राह बनाते हैं
....sach apni raah khud hi banani hoti hai..
bahut sundar sakaratmak rachna prastuti hetu aabhar
वा वाह....वा वाह ....पंकज भाई !
ReplyDeleteआनंद आ गया !
शुभकामनायें आपको !