बहुत संभल कर 'आना' बिटिया
>> Tuesday, April 10, 2012
बहुत संभल कर 'आना' बिटिया
बिगड़ा इधर ज़माना बिटिया
बिगड़ा इधर ज़माना बिटिया
बहलाने वाले है ढेरों
अपनी राह पे जाना बिटिया
पग-पग पर हैं यहाँ छलावे
मन को मत भरमाना बिटिया
नयी हवा में बह मत जाना
अपनी राह बनाना बिटिया
तुम भी हो कल की निर्माता
सबको यह समझाना बिटिया
दादी-नानी की 'पोटलियाँ'
उसको नहीं गुमाना बिटिया
(ब्लॉगर शिखा वार्ष्णेय द्वारा अपनी बेटी के जन्मदिन पर लिखी गयी कविता को पढ़ने के बाद)
11 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना....आभार
सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.
मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .
बेहतरीन भाव पुर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब सीख देती प्रस्तुति,....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
bitiyon ke liye behtarin sadesh..unke sadhe kadam hee jamane ke kadam ko saadhne wale hain..sadar badhayee aaur amantran ke sath..aap manendragarh me rahte hain main pendra me rahta hoon..aapse to mulakat bhee sambav hai
बहुत बेहतरीन रचना है बधाई स्वीकारें।
बहुत सुंदर संदेश मयी सार्थक रचना आभार समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
नयी हवा में बह मत जाना
अपनी राह बनाना बिटिया
बिटिया को सार्थक संदेश देती सुंदर रचना
ह्रदयस्पर्शी रचना, गिरीश जी!
सुंदर सार्थक सृजन.
नयी हवा में बह मत जाना
अपनी राह बनाना बिटिया
बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए हुए
उत्कृष्ट प्रस्तुति।
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