एक समय था जब देश देश की तरह चला करता था. अब तो लगता है देश किसी बड़े सेठ की दूकान है, जो अपने लाभ की ही चिंता में लगा रहता है. दुःख होता है कि हमारी सरकार को आम नागरिक की बिलकुल चिंता नहीं. महंगाई बढ़ती ही जा रही है. देश में ऐसे करोड़ों लोग है, जिनको महंगाई-भत्ता नहीं मिलता. वे लोग कहाँ जाएँ, क्या करे? खैर, हम कुछ नहीं कर सकते. केवल एक कविता लिख सकते है. या जानते हुए भी की इससे कुछ नहीं हो सकता.
जनता जाये भाड़ में, अब ऐसा है दौर,
दिल्ली छीने जा रही, अब तो मुंह का कौर.
देश देश ना अब रहा, जैसे कोई दुकान,
दिल्ली मानों सेठ है, बेच रही सामान .
घटा सह कर भी अगर, दे राहत सरकार.
जनता करती है सदा, तब उसकी जयकार.
लोकतंत्र का हो गया , कैसा सत्यानाश,
छः दशकों के बाद अब, लगता जैसे लाश.
बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
सबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान
कैसे अब जीवन जिये , हैरत में इंसान.
दूर बहुत बदलाव है, दुखिया हिन्दुस्तान
महँगाई से भिड गया, टांका ऐसा यार
जब चाहे उसके लिए, खडी हुई सरकार.
जब चाहे उसके लिए, खडी हुई सरकार.
जनता जाये भाड़ में, अब ऐसा है दौर,
दिल्ली छीने जा रही, अब तो मुंह का कौर.
देश देश ना अब रहा, जैसे कोई दुकान,
दिल्ली मानों सेठ है, बेच रही सामान .
घटा सह कर भी अगर, दे राहत सरकार.
जनता करती है सदा, तब उसकी जयकार.
लोकतंत्र का हो गया , कैसा सत्यानाश,
छः दशकों के बाद अब, लगता जैसे लाश.
बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
सबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान
कैसे अब जीवन जिये , हैरत में इंसान.
दूर बहुत बदलाव है, दुखिया हिन्दुस्तान
बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
ReplyDeleteसबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान
कैसे अब जीवन जिये , हैरत में इंसान.
दूर बहुत बदलाव है, दुखिया हिन्दुस्तान
दोहों में हिंदुस्तान का दर्द साफ दिखाई दे रहा है।
सही है जी ये महँगाई तो मार डाले रही है...बढिया रचना है।
ReplyDeleteसत्य को कहती खूबसूरत गजल ...
ReplyDelete(बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
ReplyDeleteसबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान)
दिल्ली के शैतान, बदलते नितनव मुखड़े,
समझ सकें वो काश, बिलखते जन के दुखड़े
बापू का हर ख्वाब, टूटता रोती तकली
उनके 'उन' पर आज, गिराते निर्मम बिजली॥
करारे दोहों में देश का दर्द अभिव्यक्त कर दिया भईया...
सादर प्रणाम.
खूबसूरत गजल ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल,सुंदर पोस्ट,....
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
जनता जाये भाड़ में, अब ऐसा है दौर,
ReplyDeleteदिल्ली छीने जा रही, अब तो मुंह का कौर.
सरकार का हाथ आपकी जेब में .
बेहतरीन ||
ReplyDeleteसार्थक रचना ....
ReplyDeleteदोहों में आम इंसान के दर्द की झलक.
ReplyDeleteबेहतरीन.
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआप को सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया,"राजपुरोहित समाज" आज का आगरा और एक्टिवे लाइफ
,एक ब्लॉग सबका ब्लॉग परिवार की तरफ से सभी को भगवन महावीर जयंती, भगवन हनुमान जयंती और गुड फ्राइडे के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ॥
आपका
सवाई सिंह{आगरा }