Tuesday, May 22, 2012

दिल का क्या कब कौन सुहाए

आज कोल्हापुर के लिए निकलना है. २५-२६ को वहां विश्वविद्यालय में महान साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी की जन्मशती पर दो दिवसीय संगोष्ठी है. मुझे शुभारम्भ का सौभाग्य मिला है. अब सप्ताह भर की छुट्टी. मिलते हैं ब्रेक के बाद. तब तक यह कविता मित्रों को समर्पित -
दिल का क्या कब कौन सुहाए
बात यही कुछ समझ न आए
सुबह सुहानी खूब सुहाए 
उजियाला भीतर बस जाए
हर दिन हो सबका ही सुन्दर 
 दर्द किसी को नहीं सताए
सब लगते हैं समझदार अब
किसको जा कर को समझाए
सब के सब उस्ताद लगे हैं 
 ज्ञान कोई अब पचा न पाए
रहो मौन यह सबसे उत्तम 
 जाए दुनिया जहां भी जाए
अपने बन कर दगा करे हैं 
 इन लोगों से राम बचाए
उसको अब पहचान लिया है 
 फिर भी देखा तो मुस्काए

17 comments:

  1. सब लगते हैं समझदार अब
    किसको जा कर को समझाए
    सब के सब उस्ताद लगे हैं
    ज्ञान कोई अब पचा न पाए

    बहुत सटीक लिखे हैं सर!


    सादर

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  2. भैय्या गिरीश जी को अब तक
    जितना भी समझ सकी समझी
    पर अपनी समझ से बाहर
    समझने का क्षमता...
    मैं अपने आप में नहीं पाती
    सादर

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  3. अपने बन कर दगा करे हैं
    इन लोगों से राम बचाए
    उसको अब पहचान लिया है
    फिर भी देखा तो मुस्काए

    वाह ,,,, बहुत अच्छी सटीक प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  4. हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं...

    नीरज

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  5. इस वक्त मौन धारणा ही सबसे सरल उपाय हैं ...

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  6. सब लगते हैं समझदार अब
    किसको जा कर को समझाए
    सब के सब उस्ताद लगे हैं
    ज्ञान कोई अब पचा न पाए...bahut hee shandaar baat hahi hai aapne..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

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  7. सरल शब्दों में जीवन का निचोड़.. अति सुंदर

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  8. सब के सब उस्ताद लगे हैं
    ज्ञान कोई अब पचा न पाए
    रहो मौन यह सबसे उत्तम
    जाए दुनिया जहां भी जाए

    बिलकुल सही कहा है .... अच्छी प्रस्तुति

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  9. सुन्दर प्रस्तुति...
    सुन्दर रचना:-)

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  10. अपने बन कर दगा करे हैं
    इन लोगों से राम बचाए
    उसको अब पहचान लिया है
    फिर भी देखा तो मुस्काए
    इस दुनिया में कई बार मुखोटा लगा कर जीना पड़ता है ...मस्तिष्क कहता है कह डालो दिल कहता है चलो छोडो
    बहुत उम्दा प्रस्तुति

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  11. और करें भी तो क्या......
    आभार भाई जी !

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  12. सब के सब उस्ताद लगे हैं
    ज्ञान कोई अब पचा न पाए...

    बहुत ही सुन्दर... वाह! भईया शानदार अशार हैं...
    सादर प्रणाम.

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  13. हर दिन हो सबका ही सुन्दर
    दर्द किसी को नहीं सताए....

    बहुत सुन्दर शेर... सभी अशार शानदार...
    सादर.

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