''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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>> Thursday, July 12, 2012

ऐसा हुआ वैसा हुआ है / जो हुआ अच्छा हुआ है
हो गया खुदगर्ज़ कितना / आदमी कैसा हुआ है


वो अँधेरे से लड़ेगा / दीप इक जलता हुआ है
लक्ष्य तक पहुंचेगा इक दिन / आदमी चलता हुआ है
लग रहा कितना भला वो / गैर था, अपना हुआ है
ज़िंदगी है इक परीक्षा / ठीक क्या पर्चा हुआ है
वो सफल हो जायेगा जो / स्वप्न कुछ बुनता हुआ है
क्या पता कैसा दिखेगा / घर अभी बनता हुआ है
वो सही लेखक मगर क्यूं / सब कहें बहका हुआ है
सड रहा पानी अरे तुम / देख लो ठहरा हुआ है

4 टिप्पणियाँ:

सदा July 13, 2012 at 12:47 AM  

लग रहा कितना भला वो / गैर था, अपना हुआ है
ज़िंदगी है इक परीक्षा / ठीक क्या पर्चा हुआ है
गहन भाव लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति।

shikha varshney July 13, 2012 at 1:52 AM  

बहुत खूब..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') July 13, 2012 at 6:13 AM  

सड रहा पानी अरे तुम / देख लो ठहरा हुआ है....

बहतु बढ़िया आदरणीय बड़े भईया....
सादर प्रणाम....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" July 17, 2012 at 1:04 AM  

lajabab rachna..

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